बुधवार, 13 अक्तूबर 2010

चित्रगुप्त का यह रहस्य भी जानिये Know The Secrets of Lord Chitragupta

जो व्यक्ति के जीवन को नियमित करती है, अच्छे-बुरे कर्मो का फल प्रदान करती है, न्याय करती है। उसी दिव्य देव शक्ति का नाम चित्रगुप्त है। चित्रगुप्तजी कायस्थों के जनक हैं। एक बार जब ब्रह्मा ध्यानस्थ थे, उनके अंग से अनेक वर्णों से चित्रित लेखनी और मसि पात्र लिए एक पुरुष उत्पन्न हुआ, इन्हीं का नाम चित्रगुप्त था। ब्रह्मा की काया से उत्पन्न होने के कारण इन्हें कायस्थ भी कहते हैं। चित्रगुप्त ने ब्रह्मा से अपने कार्य के सम्बन्ध में पूछा। ब्रह्मा पुन: ध्यानस्थ हो गये। योग निद्रा के अवसान के उपरान्त ब्रह्मा ने चित्रगुप्त से कहा कि यमलोक में जाकर मनुष्यों के पाप और पुण्य का लेखा तैयार करो। उसी समय से ये यमलोक में पाप और पुण्य की गणना करते हैं। अम्बष्ट, माथुर तथा गौड़ आदि इनके बारह पुत्र हुए। गरुड़ पुराण में यमलोक के निकट ही चित्रलोक की भी कल्पना की गयी है। कार्तिक मास की शुक्ल द्वितीया को इनकी पूजा होती है। इसीलिए इसे यमद्वितीया भी कहा जाता है। शापग्रस्त राजा सुदास इसी तिथि को इनकी पूजा करके स्वर्ग के भागी हुए। भीष्म पितामह ने भी इनकी पूजा करके इच्छा मृत्यु का वर प्राप्त किया था। चित्रगुप्त के पिता मित्त नामक कायस्थ थे। इनकी बहन का नाम चित्रा था, पिता के देहावसान के उपरान्त प्रभास क्षेत्र में जाकर सूर्य की तपस्या की, जिसके फल से इन्हें ज्ञानोपलब्धि हुई। यमराज ने इन्हें न्यायालय में लेखक का पद दिया। उसी समय से ये चित्रगुप्त नाम से प्रसिद्ध हुए। यमराज ने इन्हें धर्म का रहस्य समझाया। चित्रलेखा की सहायता से चित्रगुप्त ने अपने भवन की इतनी अधिक सज्जा की कि देवशिल्पी विश्वकर्मा भी स्पर्धा करने लगे। वर्तमान समय में कायस्थ जाति के लोग चित्रगुप्त के ही वंशज कहे जाते हैं।


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