सोमवार, 25 मार्च 2013

बिहार के पूर्णिया में जली थी होलिका



भगवान नरसिंह के अवतार से जुड़ा खंभा आजकल माणिक्य स्तंभ कहलाता है।

अनेक पौराणिक कथाएं जुड़ी हैं बिहार से। होली के एक दिन पूर्व होने वाले होलिका दहन का भी सम्बन्ध बिहार से है। वास्तव में होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाता है। असुर राज हिरण्यकश्यप की बहन होलिका का दहन बिहार में हुआ था। तभी से प्रतिवर्ष होलिका दहन की परंपरा चल पड़ी। यहां पूर्णतः जंगल वाला यानी पूर्ण अरण्य वाला एक क्षे़त्र था जो कालान्तर में पूर्णिया कहलाया। अभी यह बिहार का एक जिला है। इस जिले के बनमनखी प्रखंड के सिकलीगढ़ में वह स्थान है जहां भगवान विष्णु के प्रिय भक्त प्रह्लाद को होलिका अपनी गोद में लेकर आग में बैठी थी। होलिका तो भस्म हो गई मगर प्रह्लाद को भगवान विष्णु ने बचा लिया। भगवान विष्णु ने उसी समय नरसिंह के रूप में अवतरित होकर हिरण्यकश्यप का वध किया था।
पौराणिक कथा के अनुसार, सिकलीगढ़ में हिरण्यकश्यप का राजमहल था। इसी राजमहल में अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए भगवान विष्णु राजमहल के एक खंभे से नरसिंह के रूप में अवतरित हुए थे। भगवान नरसिंह के अवतार से जुड़ा खंभा आजकल माणिक्य स्तंभ कहलाता है जो आज भी यहां मौजूद है। इसे कई बार तोड़ने का प्रयास भी हुआ मगर यह स्तंभ झुक तो गया, टूटा नहीं। झूके हुए स्तम्भ को आप चित्र में भी देख सकते हैं। पूर्णिया जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर स्थित सिकलीगढ़ जहां प्राचीन काल में 400 एकड़ के दायरे में कई टीले थे, जो अब 100 एकड़ में ही सिमट गए हैं। इन टीलों की खुदाई में कई पुरातन वस्तुएं निकली हैं। गोरखपुर के गीता प्रेस की धार्मिक पत्रिका ‘कल्याण’ के 31वें वर्ष के विशेषांक में सिकलीगढ़ को भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार का स्थल बताया गया। इसकी प्रामाणिकता के कई साक्ष्य हैं। यहीं हिरन नदी बहती है जो हिरण्यकश्यप के नाम से सम्बद्ध है। कुछ वर्षाे पहले तक नरसिंह स्तंभ में एक छेद था जिसमें पत्थर डालने से वह हिरन नदी में पहुंच जाता था। यहां भीमेश्वर महादेव का भव्य मंदिर है। पौराणिक मान्यता है कि हिरण्यकश्यप का भाई हिरण्याक्ष वराह क्षेत्र का राजा था। वराह क्षेत्र अब नेपाल में पड़ता है। जिस स्तम्भ से भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया था, वह आजकल ‘प्रह्लाद स्तंभ’ कहलाता है। इस स्तम्भ का रख-रखाव के लिए बनाए गए ‘प्रह्लाद स्तंभ विकास ट्रस्ट’ के अध्यक्ष बद्री प्रसाद साह के अनुसार, यहां साधु-सन्तों का जमावड़ा रहता है। भागवत पुराण के सप्तम स्कंध के अष्टम अध्याय में भी माणिक्य स्तंभ स्थल का जिक्र मिलता है। भागवत पुराण के अनुसार, इसी खंभे से भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की थी और दुष्ट हिरण्यकश्यप का वध किया था।

सिकलीगढ़ में राख और मिट्टी से होली खेली जाती है। होलिका के भस्म होने और प्रह्लाद के चिता से सकुशल वापस आने पर प्रह्लाद के समर्थकों ने चिता की राख और मिट्टी एक-दूसरे को लगाकर खुशी मनाई थी। तभी से यहां राख और मिट्टी से होली खेली जाती है। यहां होलिका दहन के दिन दूर-दराज से हजारों श्रद्धालु होलिका दहन के समय उपस्थित होते हैं और राख-मिट्टी से होली खेलते हैं।

सिकलीगढ़ में भगवान विष्णु के प्रिय भक्त प्रह्लाद को होलिका अपनी गोद में लेकर आग में बैठी थी।

उपेक्षित है सिकलीगढ़ टीला
बिहार के पूर्णिया जिलास्थित बनमनखी अनुमंडल में सैकड़ों एकड़ में फैले टीले आज भी अपनी पौराणिकता का परिचय दे रहा है। पर, इस ओर न बिहार साकार का और न ही पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का ही ध्यान गया है। इस कारण यह उपेक्षित है। बड़े-बड़े ईटों से बने इन टीलों को अनधिकृत रूप से तोड़कर इसके पौराणिक स्वरूप को नष्ट किया जा रहा है। भागवत पुराण के अनुसार, यहां हिरण्यकश्यप का राजमहल था। भगवान विष्णु ने यहीं नरसिंह अवतार लेकर अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की थी और हिरण्यकश्यप का वध किया था।

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