मंगलवार, 7 मई 2013

झारखण्ड में ताल ठोंक रहे राजनीतिक दल


 

वर्तमान झारखण्ड विधान सभा में दलों की स्थिति

    यदि कांग्रेस कोयला घोटाला व रेल रिश्वत काण्ड से उबर गई तो 18 जुलाई से पहले झारखण्ड विधान सभा का निर्वाचन हो जाएगा। आज झारखण्ड में राष्ट्रपति शासन के 4 माह 20 दिन हो गए। संवैधानिक रूप से राष्ट्रपति शासन की अवधि 6 माह की ही होती है। इस बीच विधान सभा का निर्वाचन न हुआ तो अगले 6 महीने के लिये इसे विस्तारित किया जा सकता है। यों 6-6 माह के अन्तराल पर इसे कई बार भी विस्तारित किया जा सकता है। पर, अधिक विस्तार सरकार की खामियों को उजागर करता है। लिहाजा केन्द्र की कांग्रेसी नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन की सरकार राज्य में राष्ट्रपति शासन को लम्बा नहीं खींचना चाहती। ऐसा ही पिछले दिनों लोकसभा में गृह मंत्री पी चिदम्बरम भी स्वीकार कर चुके हैं। साथ ही गृह मंत्रालय ने एक मसौदा भी तैयार कर लिया है जिसे कभी भी केन्द्रीय मंत्रिमण्डल पारित कर राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिये भेज सकता है। इस स्वीकृति के बाद राज्य की निलम्बित विधान सभा भंग हो जाएगी। ऐसा होने पर ज्यादा उम्मीद है कि 18 जुलाई से पूर्व चुनाव करा लिये जाएंगे; क्योंकि उक्त तिथि को राष्ट्रपति शासन की 6 माह की मियाद पूरी हो रही है। केन्द्र सरकार के इस कवायद के प्रकाश में आते ही राज्य के सभी राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं। बैठकों व सम्मेलन के दौर जोर-शोर से चल पड़े हैं। साथ ही दल बदलने का सिलसिला भी जारी है। सभी अपने को विकास का साथी व जनता का हितैषी बताने लगे हैं। नेता अपने नए-पुराने कीर्तिमानों को खोज-खोजकर जनता के सामने ला रहे हैं और विरोधियों को पटखनी देने का उपाय ढूंढ रहे हैं।
    12 वर्ष से अधिक उम्र के झारखण्ड में स्थिर सरकार का जनस्वप्न पूरा नहीं हो पाया है। कोई सरकार 5 वर्षों की संवैधानिक अवधि पूरी न कर सकी। जो भी सरकारें बनीं उनमें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), झारखण्ड मुक्ति मोर्चा (झामुमो), ऑल झारखण्ड स्टूडेण्ट्स यूनियन (आजसू), जनता दल (युनाइटेड), राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस आदि शामिल रही हैं। इन दलों की अस्थिर सरकारों को जनता झेल चुकी है, उनके रग-रग से वाकिफ है। पर, निर्वाचन में ये शून्य पर आउट तो नहीं होंगे। इन दलों के दलदल में झारखण्ड विकास मोर्चा (झाविमो) कुछ अलग नजर आ रहा है। झारखण्ड के प्रथम मुख्य मंत्री बाबूलाल मराण्डी ने भाजपा से नाता तोड़कर झाविमो का गठन किया था। हाल ही में वे एक बार फिर से झाविमो के अध्यक्ष बन गए हैं। राज्य में सर्वाधिक 860 दिनों तक शासन करने का कीर्तिमान उन्हीं के नाम है। पुनः पार्टी का कमान सम्भालने के बाद मराण्डी ने कार्यकर्ताओं को चुनाव के प्रति सजग किया। अन्य दल भी अपनी सजगता में लगातार वृद्धि कर रहे हैं। इस संदर्भ में राष्ट्रीय दलों से आगे हैं क्षेत्रीय दल। सत्ता का सर्वाधिक स्वाद चख चुका क्षेत्रीय दल झामुमो है जिसने गठबन्धन सहयोगी भाजपा से समर्थन खींचकर अर्जुन मुण्डा की सरकार गिरा दी और राज्य को राष्ट्रपति शासन के भरोसे छोड़ दिया। वह अपनी काबिलियत से ज्यादा भाजपा को कोसकर ही चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश करेगी। वैसे झामुमो विधान सभा क्षेत्रवार अपनी पैठ बनाने में लगी है। संताल परगना सहित कई क्षेत्रों में उसकी बैठकें हो रही हैं। इस बीच आजसू युवाओं को दल में शामिल करने पर ज्यादा जोर दे रही है। आजसू प्रमुख सुदेश महतो भी सहयोगियों के साथ चुनावी गहमागहमी में जोर-आजमाइश कर रहे हैं। वैसे जनता को गिनाने के लिए उनके पास कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है। इस बीच जदयू व राजद फिलहाल खामोश हैं। जदयू नीतीश कुमार की बिहारी उपलब्धियों को गिनाकर मत बटोरेगी जबकि राजद सबकी खामियों को उजागर कर केवल लालू के भरोसे ही कुछ सीट बढ़ाने की फिराक में है।
    नजर डालें राष्ट्रीय दलों पर तो भाजपा व कांग्रेस दोनों की अधिकतर उर्जा आन्तरिक कलह को सलटाने में ही खप जा रही है। भाजपा का कलह तो सतह पर है। रवीन्द्र के प्रदेशाध्यक्ष बनते ही बौखलाए यशवन्त सिन्हा ने पार्टी छोड़ने की धमकी दे डाली जिसे फिलहाल तो सलटा लिया गया है पर चुनाव के दौरान नजारा कुछ और होगा। राज्य में भाजपा मुख्यतः दो गुटों में बंटी है। एक छोर पर यशवन्त तो दूसरे छोर पर अर्जुन मुण्डा के साथ रवीन्द्र दीख रहे हैं। इनमें मुण्डा गुट प्रबल दिखाई दे रहा है। वैसे पार्टी झामुमो को सरकार गिराने का दोषी बताकर व कांग्रेस के भ्रष्टाचारों को ही उजागर कर जीतने की प्रयास करेगी। यों कांग्रेस की स्थिति ठीक नहीं दीख रही। वह कोयला घोटाला व रेल रिश्वत काण्ड से उबरने में ही लगी है। ऊपर से वोट फॉर नोट काण्ड में भी कांग्रेस की काफी फजीहत हो रही है। पर, वह चाहती है कि राज्य में जल्द चुनाव हो। ऐसे में वह छवि सुधारने को छटपटा रही है पर प्रदेशाध्यक्ष प्रदीप कुछ विशेष नहीं कर पा रहे हैं। इस बीच जनता उचित मौके पर जवाब देने को तमाम राजनीतिक पैंतरेबाजी पर पैनी नजर रख रही है।

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