सोमवार, 5 अगस्त 2013

झारखण्ड की बदहाल स्वास्थ्य सेवाएँ


शीतांशु कुमार सहाय
    इन दिनों स्तनपान सप्ताह चल रहा है। इस दौरान झारखण्ड की स्वास्थ्य सेवाओं, विशेषकर बच्चों व माँ के स्वास्थ्य प्रकरण की पड़ताल आवश्यक जान पड़ती है। झारखण्ड को बिहार से अलग करने का एकमात्र कारण विकास को ही माना गया। पर, अब तक विकास के किसी भी खाँचे में यह फिट नहीं बैठ रहा है। विकास के सभी क्षेत्र बदहाल हैं। सड़क, बिजली व पेयजल की हालत तो बदतर है ही, स्वास्थ्य का क्षेत्र तो और भी बदहाल है। राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं व जागरूकता के अभाव में प्रत्येक वर्ष हजारों बच्चे और माँ की मृत्यु हो जाती है। इसे कम किया जा सकता है, रोका जा सकता है मगर सरकारी स्तर पर वैसा प्रयास नहीं हो रहा है। यह निश्चय ही खेदजनक है। जब सरकारी स्तर पर सार्थक प्रयास नहीं हुए तब यूनिसेफ ने राज्य के एक दैनिक समाचार पत्र के साथ स्वास्थ्य जागरूकता का प्रशंसनीय कार्य आरम्भ कर दिया है। इस अभियान में जो तथ्य सामने आ रहे हैं, वे बड़े चौंकाने वाले हैं। बच्चों व माँ के स्वास्थ्य के प्रति स्थिति अत्यन्त खतरनाक है। जहाँ तक गर्भवती स्त्री और प्रसव के तरीकों की बात है तो अब भी अधिकतर प्रसव घर में ही बड़े अस्वास्थ्यकर तरीके से हो रहे हैं। संस्थागत प्रसव बहुत कम हो रहा है।

    इस सन्दर्भ की पड़ताल से पता चलता है कि स्वास्थ्य सेवाओं की कमी से प्रति वर्ष 46 हजार बच्चे असमय ही काल के गाल में समा जाते हैं। इनमें 19 हजार बच्चों की मौत जन्म के मात्र 28 दिनों के अन्दर ही हो जाती है। इस सन्दर्भ में सरकारी आँकड़े का अवलोकन करें तो विदित होता है कि जन्म लेने वाले प्रति एक हजार बच्चों में 55 बच्चे जीवन का 5वाँ दिन भी नहीं देख पाते हैं। 24 बच्चे जन्म के 28 दिनों के अन्दर मर जाते हैं तो 38 बच्चे अपना पहला वर्षगाँठ भी नहीं मना पाते। मतलब यह कि प्रति हजार नवजात बच्चों में 79 की मौत एक माह के अन्दर निश्चित है। एक वर्ष पूरा होते-होते कम-से-कम 117 बच्चे काल-कवलित हो जाते हैं। अगर थोड़ी सावधानी बरती जाए, जागरूकता फैलाई जाए, सरकारी स्वास्थ्य संस्थाएँ ठीक से कार्य करें, बच्चों को माँ नियमित स्तनपान कराए, समय पर टीके लगाए जाएँ, कुपोषण व संक्रमण से बचने के उपाय किये जाएँ और संस्थागत प्रसव हो तो निश्चय ही 46 हजार जानें बचाई जा सकती हैं। प्रतिदिन कम-से-कम 126 नवजातों की प्राण रक्षा हो सकती है। जाहिर है कि इस रक्षा की कुंुजी सरकार के पास है और वह प्रयत्नशील नहीं है या उसका तन्त्र उचित तरीके से कार्य नहीं कर रहा है। वास्तव में सरकार के पास नियम-कानूनों की कमी नहीं है पर उसे सही तरीके से लागू करने वाले तन्त्र की लगाम का प्रबन्धन ही नहीं हो पा रहा है। यही कारण है कि झारखण्ड में 62 प्रतिशत प्रसव अकुशल दाई कराती हैं या फिर घरों में असुरक्षित तरीके से कराए जाते हैं। यह स्वास्थ्य व स्वच्छता की दृष्टि से उचित नहीं है। इससे माँ-बच्चों में जानलेवा संक्रमण का खतरा बना रहता है। केवल 37.6 प्रतिशत प्रसव ही सरकारी या निजी अस्पतालों में होते हैं। कुशल और प्रशिक्षित हाथों से प्रसव होने पर माँ व बच्चों की मृत्यु-दर को काफी कम किया जा सकता है। माँ व बच्चों के स्वास्थ्य के क्षेत्र में राज्य के जिलों की स्थिति को देखें तो पूर्वी सिंहभूम सबसे आगे दीखता है। सबसे बुरा हाल सिमडेगा का है। पूर्वी सिंहभूम के आगे होने का एक कारण यह भी है कि जिले के जमशेदपुर क्षेत्र में टाटा के अस्पताल व निजी अस्पतालों की व्यवस्था अच्छी है। वित्त वर्ष 2012-13 में जहाँ तक प्रसव के लिए सिजेरियन ऑपरेशन यानी सी-सेक्शन की बात है तो इसमें सबसे आगे है हजारीबाग जहाँ 401 सिजेरियन हुए। राँची में 256, पलामू में 186, साहेबगंज में 157, गोड्डा में 138, गिरिडीह में 135 और दुमका में 109 महिलाओं के सिजेरियन हुए। सबसे शर्मनाक स्थिति पाकुड़ की है जहाँ एक भी सिजेरियन नहीं हुआ।

    झारखण्ड में मातृ-शिशु स्वास्थ्य के क्षेत्र में कुछ काम हुए भी हैं। संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने और ऑपरेशन की आवश्यकता वाली गर्भवती महिलाओं के सुरक्षित प्रसव के लिए पिछली राज्य सरकार ने फर्स्ट रेफरल यूनिट (एफआरयू) की व्यवस्था की जहाँ सर्जन होते हैं और ऑपरेशन की व्यवस्था होती है। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों (पीएचसी) को एफआरयू की तरह विकसित किया गया है। राज्य के 188 पीएचसी में से 17 को पहले एफआरयू बनाया गया था। वर्ष 2012-13 में इनकी संख्या 46 की गयी है। इस कारण सिजेरियन की संख्या बढ़ी है। राज्यभर के एफआरयू में वर्ष 2011-12 में 889 सिजेरियन हुए जो वर्ष 2012-13 में बढ़कर 1926 हो गए। वर्तमान वित्त वर्ष 2013-14 में 5 हजार सिजेरियन का लक्ष्य सरकार ने रखा है। अब देखना है कि नवनियुक्त स्वास्थ्य मंत्री राजेन्द्र प्रसाद सिंह के नेतृत्व में स्वास्थ्य विभाग यह लक्ष्य प्राप्त करता है या नहीं। वैसे यूनिसेफ के नेतृत्व में झारखण्ड में चल रहे स्वास्थ्य जागरूकता अभियान को तमाम गाँव-शहर तक फैलाने के लिए राज्य सरकार को भी सहयोग करना चाहिये। इससे हजारों झारखण्डियों के प्राण बचाए जा सकते हैं। 

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