शनिवार, 26 अक्तूबर 2013

2 पत्र और प्रश्न हजार : एसोचैम और पीसी पारेख के पत्र से खलबली




-शीतांशु कुमार सहाय
इन दिनों खलबली मची है केन्द्रीय सरकार के महकमे में। साथ ही सरकार पर आक्रामक होता जा रहा है उद्योग जगत। इस पसोपेश के केन्द्र में हैं 2 पत्र। एक ताजा पत्र है और दूसरा एक पुराना पत्र है जो इन दिनों सरकारी गलियारे से बाहर आकर सरकार के गले की फांस बन गया है। ताजा पत्र शुक्रवार को उद्योगपतियों का संगठन वाणिज्य एवं उद्योग मंडल (एसोचैम) ने प्रधानमंत्री के नाम जारी किया। यह खुला पत्र है जिसमें कोयला घोटाले में फंसे उद्योगपति कुमार मंगलम बिड़ला की तरफदारी की गयी है। कोयला घोटाले की पड़ताल कर रही केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआइ) ने जब बिड़ला पर प्राथमिकी दर्ज की तो एसोचैम की भौंहें तन गयीं। पूरा उद्योग व वाणिज्य जगत बिड़ला के समर्थन में दीखने लगा। नतीजतन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के नाम एक खुली चिट्ठी लिखकर कड़े शब्दों में अपनी नाराजगी जतायी है। दूसरा पत्र पीसी पारेख का है जिसे उन्होंने वर्ष 2005 में कोयला सचिव रहते उस वक्त के केन्द्रीय मंत्रिमंडल सचिव को लिखी थी।



कांग्रेस नेतृत्व वाली केन्द्र में सत्तासीन मनमोहन सिंह की सरकार का शासन काल नित्य उजागर होने वाले घोटालों के लिए याद किया जाता रहेगा। प्रत्येक नया घोटाला पिछले घोटाले के रिकॉर्ड को तोड़ दे रहा है। इन दिनों सर्वाधिक चर्चित है कोयला घोटाला। इसमें शक की सूई प्रधानमंत्री के तरफ भी घूम रही है। इस घोटाले को जिस काल में अंजाम दिया गया, उस काल में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) प्रमुख शिबू सोरेन व मनमोहन सिंह बतौर कोयला मंत्री कार्यरत थे। शिबू ने इस घोटाले से अपने को बचाने के लिए झारखण्ड में झामुमो-भाजपा गठबन्धन वाली अर्जुन मुण्डा की सरकार को गिरा दिया। फिर कांग्रेस के साथ गठबन्धन कर अपने पुत्र हेमन्त सोरेन को झारखण्ड का मुख्यमंत्री बनवा दिया। बाद में कोयला विभाग का प्रभार प्रधानमंत्री के पास आ गया। मनमोहन सिंह के कोयला मंत्री रहते ही ज्यादा घपले हुए पर अब तक उनके विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज नहीं की गयी है। उन्हें या अन्य बड़ी हस्तियों को बचाने के लिए घोटाले से सम्बन्धित कई संचिकाओं को ही नष्ट कर दिया गया। सीबीआइ व न्यायालय को संचिकाएं गुम होने की सूचना तो दे दी गयी पर संचिकाओं को हिफाजत के साथ रखने की जिम्मेदारी जिस अधिकारी या कर्मचारी की थी, उसके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की गयी। ऐसे में प्रश्न उठता है कि संचिकाएं गुम हुईं कि गुम कर दी गयीं। तत्कालीन कोयला सचिव पीसी पारेख ने जो पत्र 2005 में उस वक्त के कैबिनेट सचिव बीके चतुर्वेदी को लिखी थी, उसमें कोयला मंत्रालय पर गंभीर प्रश्न खड़े किये गये थे। पारेख के पत्र के अनुसार, कोयला मंत्रालय को माफिया चला रहे हैं। गौरतलब है कि उस वक्त के कोयला मंत्री शिबू सोरेन ने पारेख पर नेताओं को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया था। सोरेन इस बात से भी नाराज थे कि पारेख उनके मौखिक आदेश नहीं मानते थे। पूर्व कोयला सचिव पीसी पारेख का साफ कहना है कि प्रधानमंत्री का नाम डाले बिना सीबीआई चार्जशीट दाखिल कर ही नहीं सकती है। एक पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रह्मण्यम ने भी पीसी पारेख के दावों का समर्थन किया है। सुब्रह्मण्यम ने कहा कि पत्र के बावजूद कोयला माफिया पर कार्रवाई न होने का मतलब है कि केन्दीय सरकार की मंशा साफ नहीं है।

पारेख ने कहा था कि मौजूदा तंत्र में कोयला  माफिया को संरक्षण देकर बड़े पैमाने पर काला धन पैदा किया जा रहा है। जो सांसद संविधान की शपथ लेते हैं, वो आइएएस अफसरों व सार्वजनिक निगमों के अफसरो को अपनी जरूरतों के लिए ब्लैकमेल करने में लगे हैं। ये देश का दुर्भाग्य है कि देश में ऐसा कोई सिस्टम नहीं है जो ऐसे नेताओं की गलत हरकतों पर लगाम लगा सके। अपने पत्र के लीक होने पर पारेख ने फिर कहा है कि अब भी सिस्टम में बदलाव नहीं हुआ है। पारदर्शिता में कमी से अपराध बढ़ा है और देश में अब भी कई कोयला खदानें ऐसी हैं जहां देश के हितों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। इस बीच एसोचैम ने अखबारों में विज्ञापन देकर सरकार पर आरोप लगाया और नसीहत दी जो देश में पहली बार हुआ है।


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