सोमवार, 28 अक्तूबर 2013

पटना धमाके पर राजनीति जारी : जनता की सुधि नहीं





-शीतांशु कुमार सहाय
यह लोकतन्त्र है। यहाँ हर चीज राजनीति से जुड़ी है। हर चीज पर राजनीति होती है। लिहाजा पटना में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ओर से प्रधानमंत्री के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी की हुंकार रैली से पूर्व हुए 7 विस्फोटों पर भी राजनीतिक सुर सुनाई दे रहे हैं। पक्ष व विपक्ष के नेताओं की ओर से संवाददाता सम्मेलन आयोजित कर या सोशल वेबसाइटों के जरिये अपने सुर अलाप रहे हैं। रविवार को भाजपा नेताओं के हुंकार के बीच आम जनता के बीच से जो चीत्कार उठी, उस पर किसी का ध्यान नहीं है। ध्यान होगा भी कैसे, क्योंकि फिलहाल बिहार में चुनाव तो है नहीं कि कुछ बातें जनता के पक्ष में भी की जाये! ऐसी ही घटना यदि उन 5 राज्यों में होती, जहाँ विधान सभाओं के चुनाव हैं तो इन नेताओं के सुर बिल्कुल अलग होते। जनता के पक्ष में नेताओं के सुर न अलापने के पीछे तर्क केवल यही है कि इन दिनों नेताओं की नजर में बिहारी मतदाता नहीं हैं। वर्तमान सन्दर्भ ने यह जता दिया कि राजनीति की नजर में जनता के 2 रूप हैं- एक तो आमजनता है, जिसकी सुधि लेना वाजिब नहीं समझते राजनीतिज्ञ और दूसरा रूप है मतदाता का। इनमें दूसरा रूप सभी दलों को पसन्द है। तभी तो सभी दलों ने साबित कर दिया कि उन्हें जनता का आम रूप नहीं मतदाता रूप पसन्द है।
विस्फोट के बाबत भाजपा के सुर में रूखापन है। वहीं, केन्द्र में सत्तासीन काँग्रेस व बिहार में सत्ता से चिपकी जनता दल युनाइटेड के सुर में गजब का ओछापन दीख रहा है। काँग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने रविवार को ट्विटर पर लिखा कि दोषी का पता लगाना नीतीश कुमार के लिए चुनौती है। वे नीतीश को नसीहत देते हैं कि बम धमाकों के लिए जिम्मेदार लोगों को जल्द न पकड़ा गया तो बिहार में नरेन्द्र मोदी हीरो हो जायेंगे। दिग्विजय ने शब्द तीर चलाया कि नरेन्द्र मोदी की लॉन्चिंग के लिए यह परफेक्ट सेटिंग है। उनके सुर बताते हैं कि धमाके में आतंकी की नहीं, बल्कि भाजपा की सेटिंग है। इसी तरह रविवार को ही जदयू सांसद
साबिर अली ने भी धमाके के लिए भाजपा को जिम्मेदार ठहराया। सरकार और प्रशासन को क्लीन चिट देते हुए वे कहते हैं कि बिहार में भाजपा के सत्ता से अलग होने से ही ऐसी घटना घटी। पर, जब जाँच एजेंसियों ने पड़ताल आगे बढ़ायी तो इण्डियन मुजाहिदीन (आईएम) के हाथ होने की बात सामने आयी। आईएम का तहसीन अख्तर उर्फ मोनू के अलावा 2 अन्य आतंकी इम्तियाज व तारिक पुलिस की पकड़ में आये हैं। इनसे महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ मिल रही हैं। ऐसे में काँग्रेस के बयान बहादुर दिग्विजय व जदयू के साबिर के भाजपा पर लगाये आरोप निराधार सिद्ध हुए। अब वे कुछ नया कहने को अवश्य विचार कर रहे होंगे। ऐसी घटनाओं के बाबत त्वरित प्रतिक्रिया स्वरूप विपक्षियों पर आरोप तय करने से नेताओं को बाज आना चाहिये।

यों भाजपा ने कई प्रश्न बिहार सरकार से पूछे हैं। पार्टी को लगता है कि सुरक्षा में भारी चूक थी जबकि केन्द्र ने पुख्ता सुरक्षा की नसीहत दी थी। हालाँकि किसी केन्द्रीय सूचना से सोमवार को बिहार के एक वरीय आरक्षी अधिकारी ने इंकार किया है, जैसा रविवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था। इस बीच बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि विस्फोट तभी आरंभ हो गये थे जब नरेन्द्र मोदी पटना के हवाई अड्डे पर आये भी नहीं थे। उनकी बात मानें तो धमाके के बाद रैली को रद्द करने से भगदड़ मच सकती थी, इसलिये मोदी व अन्य नेताओं ने काफी विचार के बाद रैली को संबोधित किया। वैसे गौर करें भाजपा के अरुण जेटली के प्रश्नों पर तो पता चलता है कि गाँधी मैदान में नरेंद्र मोदी की रैली के लिए सुरक्षा के इंतजाम नाकाफी थे। इतनी बड़ी रैली थी लेकिन पुलिस का कोई भी बड़ा अधिकारी मौके पर मौजूद नहीं था। प्रशासनिक चूक का इससे बड़ा सबूत नहीं हो सकता; क्योंकि इतनी बड़ी भीड़ को संभालने के लिए गाँधी मैदान पर कोई बड़ा सुरक्षा एक्सपर्ट नहीं था। कोई भी बड़ा पुलिस अधिकारी भाजपा नेताओं से नहीं मिला। मोदी पर हमले का अलर्ट केन्द्र द्वारा 23 सितंबर को ही सभी राज्यों को दिया गया था। सरकार क्यों अपनी नाकामी छिपाने के लिए अलर्ट की बात से इनकार कर रही है? धमाके के बाद सोमवार भी जिंदा बम मिले तो रविवार को पुलिस ने कैसे तलाशी ली थी?

अरुण जेटली के बिहार सरकार से प्रश्न-
-नीतीश सरकार ने गृह मंत्रालय के अलर्ट के बाद भी कोई कार्रवाई क्यों नहीं की?
-मोदी पर हमले का अलर्ट 23 सितंबर को ही सभी राज्यों को दिया गया था। सरकार क्या अपनी नाकामी छिपाने के लिए अलर्ट की बात से इनकार कर रही है?
-धमाके के बाद आज भी जिंदा बम मिले, तो रविवार को पुलिस ने कैसे तलाशी ली थी?
-आतंकी गांधी मैदान तक बम ले जाने में कैसे कामयाब हुए?
-गांधी मैदान के पास बम निरोधक दस्ता क्यों नहीं तैनात था?
-गांधी मैदान के किसी गेट पर मेटल डिटेक्टर क्यों नहीं था?
-बोरा और झोला लेकर पहुंच रहे लोगों की तलाशी क्यों नहीं ली जा रही थी?
-राज्य का खुफिया विभाग क्या कर रहा था?
-पहला बम फटने के बाद भी पुलिस हरकत में क्यों नहीं आई?


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