रविवार, 21 दिसंबर 2014

शीतांशु सहाय लिखित नृत्यनाटिका ‘बुद्धं शरणम्’ मंचित / Dance Drama "Buddham Sharanam" By Sheetanshu Sahay

झारखण्ड के देवघर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र ‘इंडियन पंच’ के शनिवार 20 दिसम्बर 2014 के अंक में प्रकाशित
बुद्ध के चरित्र में विशाल कुमार तिवारी व अंगुलीमाल के चरित्र में राम कुमार मोनार्क
 
बुद्ध की शरण में अंगुलीमाल व अन्य भक्तगण
 
नृत्यनाटिका ‘बुद्धं शरणम्’ का आमंत्रण पत्र
 
 


शनिवार, 20 दिसंबर 2014

दूल्हे ने लड़कीवालों से माँगा अनोखा 'दहेज' / Unique 'Dowry'


शीतांशु कुमार सहाय।
बिहार के शेखपुरा जिले के एक गाँव में एक युवक ने दहेज के रूप में 250 पौधे लगाने की शर्त रखकर पर्यावरण की रक्षा के लिए नया संदेश देने की कोशिश की है। शेखपुरा जिले के सदर प्रखंड के बादशाहपुर गाँव के रहनेवाले डॉ. प्रभात कुमार सिन्हा के बेटे डॉ. निशीथ कुमार ने अपनी शादी के लिए लड़कीवालों से दहेज के रूप में 250 पौधे लगाने की शर्त रखी। लड़कीवालों के लिए हालाँकि यह हैरानी वाली बात थी लेकिन पर्यावरण के प्रति जागरूक निशीथ के विषय में जब पता चला तब उन्हें गौरव महसूस हुआ। लड़कीवालों ने दूल्हे की माँग तुरंत मान ली। दूल्हा निशीथ और दुल्हन डॉ. जैसलीन जोधपुर में डॉक्टर हैं। दूल्हे के पिता राँची में डॉक्टर हैं और दुल्हन भी राँची की ही रहनेवाली है। लड़कीवाले द्वारा माँग मान लेने पर डॉ. निशीथ और डॉ. जैकलीन 15 दिसंबर को शादी हो गई। लड़कीवाले भी अपने किए गए वायदे के अनुसार शुक्रवार को बादशाहपुर गाँव पहुँचे और गाँववालों की मदद से दूल्हे की जमीन पर आम, अमरूद, नींबू सहित कई प्रकार के 250 पौधे लगाए। डॉ. जैकलिन के पिता डॉ. रविकांत सिन्हा भी पौधे लगाकर गर्व महसूस कर रहे हैं। इधर, इस अनूठी पहल को लेकर गाँववाले भी प्रसन्न हैं। गाँव के राजवंश सिंह कहते हैं, 'पर्यावरण की रक्षा और धरती को हरा-भरा रखने के लिए यह अनोखी पहल है। इससे समाज में एक नया संदेश जाएगा।' उन्होंने कहा कि इस पहल का अगर गाँव के सभी लोग ऐसा ही करें तो दहेज जैसी कुरीति समाप्त हो जाएगी, वहीं धरती भी हरी-भरी हो जाएगी। बिहार के भागलपुर जिले के धरहरा गाँव की पहचान जहाँ बेटियों के जन्म पर पौधरोपण करने के रूप में बनी है। वहाँ बेटी के जन्म के बाद लोग 10 पौधे लगाते हैं। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी धरहरा जाकर वहाँ के लोगों की तारीफ कर चुके हैं।

झारखंड विधानसभा निर्वाचन 2014 का एक्जिट पोल : भाजपा को 52 सीटें / Jharkhand Assembly Election 2014 Exit polls : BJP 52 Seats



शीतांशु कुमार सहाय। 
झारखंड में पांचवे चरण का मतदान समाप्त होने के बाद एक्जिट पोल के जरिए अलग-अलग चैनलों के अलग-अलग दावे शुरु हो गए हैं। एबीपी न्यूज के एक्जिट पोल में भाजपा को 52 सीटें मिलने की संभावना जताई गई है वहीं इंडिया टीवी के एक्जिट पोल में भाजपा को 37 से लेकर 45 सीटें मिलने की संभावना जताई गई है। इसी चैनल ने संभावना जताई है कि चुनाव में झामुमो दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी और उसे न्यूनतम 15 और अधिकतम 23 सीटें मिल सकती हैं। हालांकि एबीपी न्यूज झामुमो को बस दस सीटें मिलने की संभावना जता रहा है। इंडिया टीवी के एक्जिट पोल में झाविमो को चार से लेकर आठ सीटें मिलने की संभावना जताई गई है वहीं एबीपी न्यूज के पोल में झाविमो को छह और कांग्रेस को नौ सीटें मिलने की संभावना है। इंडिया टीवी के एक्जिट पोल में कांग्रेस तीन से लेकर अधिकतम नौ सीटों पर सिमटती नजर आ रही है। सबसे तेज आजतक के एक्जिट पोल में भाजपा को 41 से लेकर 49 सीटें मिलने की संभावना जताई गई है। वहीं झामुमो को 15-19 सीटें मिल सकती हैं। कांग्रेस को चैनल के अनुसार 7-11 सीटे मिल सकती हैं वहीं अन्य दलों को 8-12 सीटे मिल सकती हैं। आबीएन सेवन के एक्जिट पोल के अनुसार भाजपा को चुनाव में 37-43 सीट मिल सकती है। वहीं झामुमो को 10-14 और झाविमो को 12-16 सीटें हासिल हो सकती है। कांग्रेस को चैनल के अनुसार चुनाव में 7-11 सीटें मिल सकती हैं। न्यूज नेशन चैनल के एक्जिट पोल के अनुसार भाजपा को चुनाव में 41-45 सीटें मिल सकती हैं वहीं झामुमो को 15-19 सीटों पर संतोष करना पड़ सकता है। कांग्रेस की हालत खस्ता है और उसे 6-10 सीटों पर सिमटना पड़ सकता है। झाविमो को चैनल के अनुसार तीन से लेकर सात सीटें मिल सकती हैं। वहीं अन्य दलों को 7-13 सीटें हासिल हो सकती हैं। इन चैनलों के अनुसार भाजपा चुनाव के बाद सबसे बड़ी पार्टी के रुप में उभर रही है वहीं झामुमो दूसरे सबसे बड़े दल का दर्जा हासिल करेगा। कांग्रेस की हालत ठीक नहीं है वहीं झाविमो की स्थिति संतोषजनक है। किस दल को कितनी सीटें मिलेंगी यह तय तो 23 दिसंबर का मतदान करेगा। जनता के साथ सभी राजनीतिक दलों को 23 दिसंबर का बेसब्री से इंतजार है।


गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

प्रतिवर्ष 21 जून को अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस / WORLD YOG DAY ON 21 JUNE


-शीतांशु कुमार सहाय
संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने को गुरुवार 11 दिसम्बर 2014 को न्यूयार्क स्थित मुख्यालय में मान्यता दे दी। संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष सैम के. कुटेसा ने न्यूयार्क में इस आशय की घोषणा की। श्री कुटेसा ने कहा कि 170 से अधिक देशों ने अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के प्रस्ताव का समर्थन किया है जिससे पता चलता है कि योग के अदृश्य और दृश्य लाभ विश्व के लोगों को कितना आकर्षित करते हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष ने प्रधानमं़त्री नरेन्द्र मोदी को भी बधाई दी जिनकी पहल से 21 जून को हर साल अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया गया है। उन्होंने कहा कि सदियों से सभी वर्गों के लोग शरीर और मन को एकाकार करने में सहायक योग का अभ्यास करते आये हैं। योग विचारों एवं कर्म को सामंजस्यपूर्ण ढंग से एकाकार करता है तथा स्वास्थ्य को ठीक रखता है। इस अवसर पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने कहा कि इस क्रिया से शान्ति एवं विकास में योगदान मिल सकता है। यह मनुष्य को तनाव से राहत दिलाती है। उन्होंने सदस्य देशों से अपील की कि वे योग को प्रोत्साहित करने में मदद करें। 

रविवार, 30 नवंबर 2014

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्मार्ट पुलिस / SMART POLICE CONCEPT BY PRIME MINISTER NARENDRA MODI

सभा को सम्बोधित करते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

शीतांशु कुमार सहाय।

SMART POLICE (स्मार्ट पुलिस)---

S- Strict और Sensitive--- कठोर लेकिन संवेदनशील
M- Moral और Mobility--- आधुनिक एवं सचल 
A- Alert और Accountable--- सतर्क और जवाबदेह
R- Reliable और Responsible--- विश्वसनीय एवं प्रतिक्रियावादी 
T- Tech savvy और Trained--- प्रौद्योगिकी का जानकार और दक्ष 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुवाहाटी में सुरक्षा पर अहम बैठक में पुलिस महानिदेशकों (डीजीपी) और खुफिया विभागों के प्रमुखों को संबोधित करते हुए कहा कि स्मार्ट पुलिस बेड़े का कॉन्सेप्ट मेरे दिमाग में है। प्रधानमंत्री ने कहा कि SMART पुलिस के लिए हमें पांच बिंदुओं पर आगे बढ़ना चाहिए। प्रधानमंत्री ने स्मार्ट (SMART एसएमएआरटी)  पुलिस की व्याख्या करते हुए कहा कि S का मतलब है Strict और Sensitive, M- Moral और Mobility भी हो, A-Alert हो, Accountable भी हो, R- Reliable हो, Responsible भी हो, T- Tech savvy हो और Trained भी हो। उन्होंने कहा कि पुलिस बल को बेहतर पुलिसिंग सुनिश्चित करने के लिए इन मूल्यों को समाहित करना चाहिए, जिससे उसे अपनी छवि और कार्य संस्कति में सुधार लाने में मदद मिलेगी। इस बार दिल्ली से इतर गुवाहाटी में इस बैठक का आयोजन इसलिए किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि हम चाहेंगे कि दिल्ली के बाहर ऐसे कार्यक्रम आयोजित हों। यह एक बदलाव है।
-शस्त्र भी हो, शस्त्रधारी भी हो
प्रधानमंत्री ने कहा कि शस्त्र भी हो, शस्त्रधारी भी हो लेकिन राष्ट्र की रक्षा के लिए उत्तम गुप्तचर व्यवस्था जरूरी है। चाणक्य के समय से पढ़ते आए हैं कि शस्त्र से ज्यादा शस्त्रधारी की सामर्थ्य पर निर्भर करता है। राष्ट्र रक्षा गुप्तचर व्यवस्था से भी चलती है। सर्वाधिक अहम इकाई ही रक्षा तंत्र है। व्यवस्था में प्राण होना जरूरी है।
-शहीद पुलिसकर्मी पर हो ई-बुक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि अब तक 33 हजार पुलिसकर्मी शहीद हो चुके हैं, उनका बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। समाज में उन बलिदानों के प्रति सम्मान बढ़ना चाहिए लेकिन उसके प्रति उदासीनता है। हम चाहते हैं कि ये बलिदान हमारी प्रेरणा की वजह बनें। शहीद के अंतिम संस्कार तक का अंक प्रोटोकॉल बनना चाहिए। हर पुलिस ट्रेनिंग में एक किताब उस राज्य के शहीदों पर हो सकता है क्या, जिससे पीढ़ी दर पीढ़ी जुड़ता जाएगा। क्या हम ये तय कर सकते हैं कि इन तमाम बलिदानों पर एक ई-बुक हो। प्रकरण छोटा होगा, लेकिन प्रेरणा अपरंपार होगी। मोदी ने कहा, ‘‘इसके अलावा, प्रत्येक राज्य में एक पुलिस अकादमी हो जहां नए रंगरूटों को प्रशिक्षण दिया जाए और उनके पाठ्यक्रम में, दायित्व निर्वाह के दौरान मारे गए पुलिस कर्मियों का जीवनवृतांत शामिल किया जाना अनिवार्य होना चाहिए।’’
उत्कृष्ट कार्य करनेवाले आरक्षी अधिकारी को पुरस्कृत करते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, साथ में हैं गृह मंत्री राजनाथ सिंह

-पुलिस कल्याण
प्रधानमंत्री ने कहा कि पुलिस कल्याण एक और मुद्दा है जिसे महत्व दिए जाने की जरूरत है। पुलिस कल्याण के मुद्दे पर प्रधानमंत्री ने कहा कि पुलिस बेड़े की जिंदगी सबसे ज्यादा तनाव भरी है, वे अपनी जिंदगी दांव पर लगाते हैं, उनके परिवार में सुख-शांति जरूरी है, वरना परिवार की बेचैनी उन्हें परेशान करेगी। सरकार का दायित्व है पुलिस वेलफेयर का। हम उसे वैज्ञानिक तरीके से विकसित करना चाहते हैं।
-फिल्मों में पुलिस की छवि ठीक नहीं
प्रधानमंत्री नरेंद्र ने कहा कि अधिकांश फिल्मों में पुलिस की छवि ठीक नहीं दिखाई जाती है, यह अच्छी बात नहीं है। हमें इसे बदलना चाहिए। फिल्मकारों को समझाना चाहिए। लोगों की सोच बदली जा सकती है। पुलिस से जुड़ी नेगेटिव खबरें तो रहती हैं, लेकिन अच्छी चीजों का जिक्र नहीं होता।
-हर थाने की वेबसाइट हो
हर थाने की अपनी वेबसाइट होनी चाहिए, जिसमें उस इलाके में अपने द्वारा किए गए अच्छे कामों का जिक्र हो।

सोमवार, 24 नवंबर 2014

प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय (नालन्दा महाविहार) और इसकी मुहर / Ancient Nalanda University (Nalanda Mahavihar) and its Seal

इस मुहर की पहली पंक्ति में ‘श्री नालन्दा महा विहार’ लिखा हुआ है।


-शीतांशु कुमार सहाय
नालंदा विश्वविद्यालय विश्व का प्रथम पूर्णतः आवासीय विश्वविद्यालय था। विकसित स्थिति में इसमें विद्यार्थियों की संख्या करीब 10,000 एवं अध्यापकों की संख्या 2000 थी। सातवीं शती में जब ह्वेनसाङ आया था, उस समय 10,000 विद्यार्थी और 1510 आचार्य (अध्यापक) नालंदा विश्वविद्यालय में थे। इस विश्वविद्यालय में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। इस विश्वविद्यालय को 9वीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी तक अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त थी। इस विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त शासक कुमार गुप्त प्रथम ने 413 में की थी। 413 से 1193 यानी 780 साल तक पढ़ाई हुई। तब बौद्ध धर्म, दर्शन, चिकित्सा गणित, वास्तु, धातु और अंतरिक्ष विज्ञान की कक्षाएं थीं। इस विश्वविद्यालय को कुमार गुप्त के उत्तराधिकारियों का पूरा सहयोग मिला। गुप्त वंश के पतन के बाद भी आनेवाले सभी शासक वंशों ने इसकी समृद्धि में अपना योगदान जारी रखा। इसे महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला। स्थानीय शासकों तथा भारत के विभिन्न क्षेत्रों के साथ ही इसे अनेक विदेशी शासकों से भी अनुदान मिला। इस विश्वविद्यालय में 12वीं शताब्दी में करीब तीन हजार विद्यार्थी अध्ययन करते थे। नालंदा विश्वविद्यालय व्याकरण, तर्कशास्त्र, मानव शरीर रचना विज्ञान, शब्द ज्ञान, चित्रकला सहित अनेक विधाओं का अंतर्राष्ट्रीय केंद्र था। इतिहासकारों के मुताबिक, इस विश्वविद्यालय के सबसे प्रतिभाशाली भिक्षु दीपांकर को माना जाता है जिन्होंने करीब 200 पुस्तकों की रचना की थी। इस पर पहला आघात हुण शासक मिहिरकुल द्वारा किया गया। 1193 में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इसे जलाकर इसके अस्तित्व को पूर्णतः नष्ट कर दिया। 2006 में इसके पुनर्निर्माण की योजना बनी थी। 821 साल बाद फिर से नालंदा विश्वविद्यालय में इसी साल (2014) से दोबारा पढ़ाई शुरू हो चुकी है। प्राचीन विश्वविद्यालय के पास ही नए तरीके से नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है। कक्षाएं अभी राजगीर में किराए के कन्वेंशन सेंटर में चल रही हैं। लगभग 242 एकड़ में नए विश्वविद्यालय के स्थायी भवन का काम चल रहा है जो 2021 तक पूरा होगा।

सोमवार, 17 नवंबर 2014

देवरहा बाबा का मंत्र / MANTRA BY DEORAHA BABA


     देवरहा बाबा परम् रामभक्त थे, देवरहा बाबा के मुख में सदा राम नाम का वास था, वो भक्तो को राम मंत्र की दीक्षा दिया करते थे। वो सदा सरयू के किनारे रहा करते थे। उनका कहना था---

"एक लकड़ी ह्रदय को मानो दूसर राम नाम पहिचानो
राम नाम नित उर पे मारो ब्रह्म दिखे संशय न जानो।''

     देवरहा बाबा जनसेवा तथा गोसेवा को सर्वोपरि-धर्म मानते थे तथा प्रत्येक दर्शनार्थी को लोगों की सेवा, गोमाता की रक्षा करने तथा भगवान की भक्ति में रत रहने की प्रेरणा देते थे। देवरहा बाबा श्री राम और श्री कृष्ण को एक मानते थे और भक्तो को कष्ट से मुक्ति के लिए कृष्ण मंत्र भी देते थे---

"ऊँ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने
प्रणत: क्लेशनाशाय, गोविन्दाय नमो नम:।''

     बाबा कहते थे- "जीवन को पवित्र बनाए बिना, ईमानदारी, सात्विकता-सरसता के बिना भगवान की कृपा प्राप्त नहीं होती। अत: सबसे पहले अपने जीवन को शुद्ध-पवित्र बनाने का संकल्प लो। वे प्राय: गंगा या यमुना तट पर बनी घास-फूस की मचान पर रहकर साधना किया करते थे। दर्शनार्थ आने वाले भक्तजनों को वे सद्मार्ग पर चलते हुए अपना मानव जीवन सफल करने का आशीर्वाद देते थे। वे कहते, "इस भारतभूमि की दिव्यता का यह प्रमाण है कि इसमें भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण ने अवतार लिया है। यह देवभूमि है, इसकी सेवा, रक्षा तथा संवर्द्धन करना प्रत्येक भारतवासी का कर्तव्य है।"  प्रयागराज में सन् १९८९ में महाकुंभ के पावन पर्व पर विश्व हिन्दू परिषद् के मंच से बाबा ने अपना पावन संदेश देते हुए कहा था- "दिव्यभूमि भारत की समृद्धि गोरक्षा, गोसेवा के बिना संभव नहीं होगी। गोहत्या का कलंक मिटाना अत्यावश्यक है।"

गुरुवार, 6 नवंबर 2014

सर्वेक्षण का सच : किशोर-किशोरियों के बहके कदम True of The Survey : Step Errant Teenagers



-शीतांशु कुमार सहाय
संस्कृतियों का देश है भारत। यह अपनी समृद्ध और पारंपरिक संस्कृति के कारण ही विश्व में प्रसिद्ध है। यहाँ की संस्कृति में उम्र के हिसाब से नियम-कायदे बने हुए हैं। पर, अब उन तमाम कायदों को नयी पीढ़ी मानने को तैयार नहीं। विभिन्न संगठनों के सर्वेक्षणों में यह तथ्य सामने आया है कि भारत के किशोर व किशोरियों के चाल एकदम बिगड़ते जा रहे हैं। किशोर उम्र 12 से 18 वर्ष को मानी जाती है जो बेहतर जीवन की नींव का समय होता है। पर, इसी उम्र में लड़के-लड़कियों के पैर बहक रहे हैं, जो अत्यन्त ही घातक कल का सूचक है। भारत में एक समय था जब बच्‍चे 13 वर्ष की आयु में कदम रखते थे, तब उन्‍हें अखबार दिया जाता था, ताकि वो हर रोज़ संपादकीय पढ़ सकें। पिता खुद पुस्‍तकालय जाकर अपने बच्‍चों को सदस्‍यता दिलाते थे, जाकि उनका बच्‍चा अच्‍छी-अच्‍छी किताबें पढ़ सके। जो आगे पढ़ना नहीं जानते थे, उन्‍हें ट्रेनिंग कोर्स कराये जाते थे, ताकि वो आगे चलकर बेरोजगार न रहें। तब टीनेजर को कुछ ऐसे परिभाषित किया जाता था कि आंखों के सामने भविष्‍य के लिये गंभीर बच्‍चे की तस्‍वीर बन जाती थी। आज टीनेजर की परिभाषा पूरी तरह बदल चुकी है। नई परिभाषा कुछ यह है- 13 से 19 साल की आयु जिसमें बच्‍चे पढ़ाई करते हैं, इधर-उधर से पैसा कमाने की होड़ में लगे रहते हैं, चैटिंग, इंटरनेट ब्राउजिंग, एसएमएस, ट्विटर, फेसबुक, धूम्रपान, शराब, सेक्‍स और बहुत कुछ जिसके लिये ये भविष्‍य का इंतजार नहीं कर सकते। इन सब में जो सबसे गंभीर है, वो है इनका सेक्‍सुअली ऐक्टिव होना। यहाँ जानते हैं सर्वेक्षणों के सच!

1.) 100 में 25 लड़कियां सेक्‍सुअली एक्टिव--- भारतीय पीडिएट्रीशन एसोसिएशन की रिपोर्ट के अनुसार बड़े शहरों के बड़े स्‍कूलों में 100 में से 25 टीनेज लड़कियां सेक्‍सुअली एक्टिव रहती हैं। 10 प्रतिशत लड़के स्‍कूल में कम-से-कम एक बार कंडोम लेकर आये।
2.) पढ़ाई के अलावा खर्च होते हैं 10 घंटे--- भारतीय पीडिएट्रीशन एसोसिएशन के सर्वेक्षण के अनुसार भारत के टीनेजर्स दिन भर में 10 घंटे पढ़ाई के अलावा किसी अन्‍य चीजों में खर्च करते हैं। ये 10 घंटे इस प्रकार हैं- दो घंटे सोशल नेटवर्किंग साइट, 1.5 घंटे मोबाइल फोन पर बतियाने में, 2.5 घंटे टीवी पर, 1.5 घंटे कंप्‍यूटर गेम्‍स में, 3.5 घंटे अन्‍य कामकाज जैसे घर में किसी से बतियाने, भोजन करने व अन्‍य कार्यों में अपना समय देते हैं।
3.) 13 साल की उम्र से पहले पोर्न फिल्‍में--- इंडिया टुडे के सर्वेक्षण के अनुसार 5 में से एक टीनेजर 13 साल की उम्र से पहले पोर्न फिल्‍में, तस्‍वीरें या वीडियो देख चुके होते हैं। 15 प्रतिशत बच्‍चे स्‍कूल के टॉयलेट में यौन गतिविधियों को अंजाम देते हैं। 95 प्रतिशत टीनेजर्स शादी से पहले सेक्‍स को सही मानते हैं।
4.) 3 साल की उम्र में जानते हैं कंडोम व पिल्‍स--- इंडिया टुडे के सर्वे के अनुसार 98 प्रतिशत बच्‍चे 13 साल की उम्र तक यह जानते थे कि कंडोम क्‍या होता है और गर्भनिरोधक पिल्‍स का इस्‍तेमाल क्‍यों किया जाता है।
5.) स्‍मोकिंग का चलन--- ऐक्‍शन एड के सर्वेक्षण के अनुसार शहरी क्षेत्रों में टीनेजर्स में स्‍मोकिंग का चलन तेजी से बढ़ा है। सर्वे के अनुसार भारत में धूम्रपान करने वाले टीनेजर्स 7 से 10 सिगरेट एक दिन में पी जाते हैं। स्‍मोकिंग करने वाले पांच में से एक टीनेजर 13 से 15 सिगरेट एक दिन में पी जाता है।
6.) उड़ान द्वारा किया गया सर्वे--- फिल्‍म उड़ान जो टीनेजर्स पर आधारित फिल्‍म है, उसे बनाने से पहले प्रोडक्‍शन कंपनी ने सर्वेमंकी और फेसबुक के माध्‍यम से ऑनलाइन सर्वे करवाया। यह सर्वे दिल्‍ली, मुंबई, अहमदाबाद, बैंगलोर, चंडीगढ़, चेन्‍नई, हैदराबाद और कोलकाता के 1000 से ज्‍यादा इंटरनेट यूजर्स पर किया गया। इस सर्वे में चौंकाने वाले तथ्‍य सामने आये।
7.) अपनी समस्‍या को अपने माता-पिता से बताने में डर--- 3 में से एक बच्‍चा आज भी अपनी समस्‍या को अपने माता-पिता से बताने में डरता है। इस कारण वह तनाव में रहता है। तीन में से एक छात्र है, जो अपनी स्‍ट्रीम बदलना चाहते हैं। 10 में से एक टीनेजर अपने पिता से ज्‍यादा करीब है।
8.) ऑपोजिट सेक्‍स को किस--- 5 में से एक छात्र 16 साल का होने से पहले धूम्रपान कर चुका होता है। 2 में से एक टीनेजर 16 साल का होने से पहले बाइक या कार चला चुका होता है। 50 प्रतिशत टीनेजर अपने ऑपोजिट सेक्‍स के किसी न किसी व्‍यक्ति को एक न एक बार किस कर चुके थे। तीन में से एक छात्र 13 का होने से पहले पोर्न मूवी देख चुका होता है।
9.) पोर्न मूवी--- 3 में से एक बच्‍चा 16 साल का होने से पहले पोर्न मूवी देख चुका होता है। 5 में से एक छात्र स्‍कूल के टॉयलेट में गलत काम कर चुके होते हैं।
10.) छोटे शहरों में टीनेजर्स--- इंडिया टुडे के सर्वे के अनुसार छोटे शहरों में 12 से 21 साल की उम्र के बच्‍चों में 21 प्रतिशत टीनेजर्स 13 से 16 साल की उम्र में सेक्‍स कर चुके होते हैं। वहीं मेट्रो शहरों में यह संख्‍या 13 प्रतिशत है। छोटे शहरों की टीनेजर लड़कियों में भी 13 से 19 साल की 42 प्रतिशत लड़कियां एक सप्‍ताह में दो से तीन बार सेक्‍स कर चुकी होती हैं।
11.) 70 प्रतिशत पुरुष चाहते हैं वर्जिन--- इंडिया टुडे के सर्वे के अनुसार छोटे शहरों व गांवों के 70 प्रतिशत पुरुष चाहते हैं कि उनकी पत्‍नी शादी के पहले तक वर्जिन रहे।
12.) टीवी से प्रेरित टीनेजर--- चंद्रशेखर आजाद विश्‍वविद्यालय कानपुर द्वारा कराये गये सर्वेक्षण में पता चला कि टीवी के जरिये टीनेजर्स ने सेफ सेक्‍स के बारे में जानकारी प्राप्‍त की और वे यौन संक्रमित रोगों से बचने के उपाये जानते हैं।
13.) सेक्‍स एजुकेशन--- चंद्रशेखर आजाद विश्‍वविद्यालय कानपुर द्वारा कराये गये सर्वेक्षण के अनुसार 71.7 प्रतिशत लड़कियां और 62.5 लड़के सेक्‍स एजुकेशन पर आधारित टीवी कार्यक्रमों व विज्ञापनों के माध्‍यम से सेक्‍सुअल हेल्‍थ के प्रति जागरूक हुए।
14.) सेक्‍स के बारे में ज्ञान--- 14 से 24 साल के टीनेजर्स पर चंद्रशेखर आजाद विश्‍वविद्यालय कानपुर द्वारा कराये गये सर्वेक्षण के अनुसार 75 प्रतिशत लड़के सेक्‍स के बारे में ज्ञान प्राप्‍त करना चाहते हैं। वहीं 48.3 प्रतिशत लड़के यौन संक्रमित बीमारियों व कंडोम के इस्‍तेमाल के बारे में अच्‍छी तरह जानते हैं।
15.) विश्‍वविद्यालय सर्वेक्षण--- विश्‍वविद्यालय के सर्वेक्षण के अनुसार 59.2 प्रतिशत लड़के और 50.8 प्रतिशत लड़कियां एड्स के प्रति जागरूक कार्यक्रमों से प्रभावित हुए।
16.) इंटरनेट पर सेक्‍स शब्‍द--- आजाद विश्‍वविद्यालय के सर्वेक्षण में पाया गया कि 99 प्रतिशत टीनेजर्स लड़के इंटरनेट पर सेक्‍स शब्‍द दिन में कम से कम एक बार जरूर खोजते हैं। वहीं 46 प्रतिशत लड़कियां अकेले में इंटरनेट पर सेक्‍स शब्‍द खोजती हैं।
17.) चैटिंग पर सेक्‍स की बातें--- चंद्रशेखर आजाद विश्‍वविद्यालय के इस सर्वेक्षण के अनुसार 88.3 प्रतिशत लड़के और 68.3 प्रतिशत लड़कियां चैटिंग पर सेक्‍स की बातें डिसकस करना पसंद करते हैं।
18.) चैटिंग के दौरान अपनी यौन इच्‍छा--- भारतीय टीनेजर्स पर किये गये आजाद विवि के सर्वेक्षण के अनुसार 35.8 प्रतिशत लड़के और 33.3 लड़कियां चैटिंग के दौरान अपनी यौन इच्‍छाओं को खुलकर रख देते हैं।
19.) पोर्न या सेमी पोर्न मूवी--- इंटरनेट ऐक्‍सेस प्राप्‍त टीनेजर्स पर सर्वे के अनुसार 90 प्रतिशत लड़के और 75.8 प्रतिशत लड़कियां यौन इच्‍छाओं के दमन के लिये पोर्न या सेमी पोर्न मूवी या वीडियो देखना पसंद करते हैं। वहीं 77.5 प्रतिशत लड़के और 50 प्रतिशत लड़कियां तस्‍वीरें देखना पसंद करती हैं।
20.) यौन इच्‍छाएं जागृत--- मिसूरी विश्‍वविद्यालय के एक अध्‍ययन के अनुसार 48 प्रतिशत टीनेजर्स टीवी और फिल्‍मों से प्रेरित होने पर उनके अंदर यौन इच्‍छाएं जागृत होती हैं।
21.) मैथुन के रहस्‍य--- टाइम मैगजीन के सर्वेक्षण के अनुसार जो लड़के मैथुन करते हैं, उनमें से 52 प्रतिशत ने कहा कि वो हफ्ते में कम से कम दो बार मैथुन करते हैं। वहीं 23 प्रतिशत लड़कियों ने कहा कि हफ्ते में दो बार मैथुन करती हैं। और 46 प्रतिशत लड़कियों ने कहा साल में कभी-कभी ऐसा करती हैं।
22.) हफ्ते में दो बार मैथुन--- टाइम मैगजीन के सर्वेक्षण के अनुसार जो लड़के मैथुन करते हैं, उनमें से 52 प्रतिशत ने कहा कि वो हफ्ते में कम से कम दो बार मैथुन करते हैं। वहीं 23 प्रतिशत लड़कियों ने कहा कि हफ्ते में दो बार मैथुन करती हैं। और 46 प्रतिशत लड़कियों ने कहा साल में कभी-कभी ऐसा करती हैं।
23.) अमेरिका के टीनेजर्स का हाल--- यूएस हाईस्‍कूल छात्रों पर 2011 में हुए सर्वे के अनुसार वहां 47.4 प्रतिशत टीनेजर्स 13 से 19 साल की उम्र में ही संभोग कर चुके होते हैं।
24.) कंडोम का प्रयोग नहीं--- अमेरिकी सर्वे के अनुसार 39.8% लड़कों ने कंडोम का प्रयोग नहीं किया। वहीं 76.7 प्रतिशत लड़कियों ने बर्थ कंट्रोल पिल्‍स का प्रयोग उचित नहीं समझा।
25.) यौन संबंध--- अमेरिकी सरकार ने अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर हेल्‍थ स्‍टेटिक्‍स के तत्‍वावधान में 40 राज्‍यों में 13 से 24 साल की आयु वर्ग के किशोर-किशोरियों पर सर्वे कराया। सर्वे के अनुसार वहां के 15.3 प्रतिशत टीनेजर्स चार या चार से अधिक लोगों के साथ यौन संबंध स्‍थापित कर चुके होते हैं।
26.) लड़कियां गर्भवती--- अमेरिका में 2009 में 4 लाख से ज्‍यादा टीनेजर लड़कियां गर्भवती हुईं। इनकी उम्र 15 से 19 साल के बीच थी।
27.) टीन एज में कभी सेक्‍स नहीं किया--- अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर हेल्‍थ स्‍टेटिक्‍स की रिपोट्र के अनुसार 27 प्रतिशत टीनेजर लड़के और 29 फीसदी टीनेजर लड़कियों ने कहा कि उन्‍होंने टीन एज में कभी सेक्‍स नहीं किया।
28.) 15 से 19 साल की आयु में--- 15 से 19 साल की आयु में 58 प्रतिशत लड़कियों और 53 प्रतिशत लड़कों ने कहा कि उन्‍होंने कभी सेक्‍स नहीं किया। वहीं 48.6 लड़कियां और 46.1 लड़के बोले कि किसी न किसी प्रकार से वो यौन गतिविधियों में शामिल रहे। वहीं 20 से 24 साल में 12 प्रतिशत लड़कियों और 13 प्रतिशत लड़कों ने कहा कि उन्‍होंने कभी सेक्‍स नहीं किया।
29.) सिर्फ एक पार्टनर--- नेशनल सर्वे ऑफ फेमिली ग्रोथ के तत्‍वावधान में 2011 में अमेरिका की संस्‍था एनसीएचएस ने 4600 किशोर-किशोरियों पर सर्वे कराया, जिसमें पाया गया कि 15 से 19 साल की आयु में 40 प्रतिशत टीनेजर्स ने कहा कि एक साल में कम से कम एक बार उन्‍होंने सेक्‍स किया। 35 प्रतिशत लड़कियों और 30 प्रतिशत लड़कों ने कहा कि उनका सिर्फ एक पार्टनर है।
30.) एक से ज्‍यादा सेक्‍स पार्टनर--- एनसीएचएस की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका के इस सर्वे में पाया गया कि 17 प्रतिशत लड़कियों और 22 प्रतिशत लड़कों के 6 व उससे ज्‍यादा सेक्‍स पार्टनर थे।
31.) एक बार कंडोम का इस्‍तेमाल किया--- 2006 से 2010 के बीच कराये गये अमेरिकी सर्वे के अनुसार 96 प्रतिशत टीनेजर्स ने कम से कम एक बार कंडोम का इस्‍तेमाल किया। वहीं 57 प्रतिशत जब कंडोम नहीं इस्‍तेमाल करते, तब स्‍खलित होने से पहले अलग हो जाते, वहीं 56 प्रतिशत गर्भधारण रोकने के लिये पिल का इस्‍तेमाल करते।
32.) माता-पिता से दूर यानी सेक्‍स--- सर्वे में पाया गया कि 35 प्रतिशत लड़कियां सेक्‍स में इनवॉल्‍व हुईं, जो अपने माता-पिता के साथ नहीं रहती थीं। वहीं अन्‍य किसी अभिभावक के साथ रहने वाली लड़कियों में 54 प्रतिशत सेक्‍स कर चुकी थीं।
33.) प्रेगनेंसी से बचने के लिये क्‍या किया--- 99 प्रतिशत लड़कियों ने कहा कि उन्‍होंने संभोग करते वक्‍त कॉन्‍ट्रासेप्टिव का इस्‍तेमाल किया। इनमें 96 प्रतिशत के पार्टनर ने कंडोम इस्‍तेमाल किया, वहीं 57 प्रतिशत ने स्‍खलित होने से पहले संभोग रोक दिया, 56 प्रतिशत ने गर्भनिरोधक गोलियों का सहारा लिया। वहीं 14 प्रतिशत ने इमर्जेंसी कॉन्‍ट्रासेप्‍शन, जिसे असुरक्षित यौन संबंध के 72 घंटों के भीतर लेना जरूरी होता है, लिया।
34.) पहली बार यौन संबंध--- अमेरिका के इस सर्वे के अनुसार पहली बार यौन संबंध स्‍थापित करते वक्‍त 78 फीसदी लड़कियों और 85 फीसदी लड़कों ने कॉन्‍ट्रासेप्टिव का इस्‍तेमाल किया।
35.) एचआईवी के केस--- 2011 में अमेरिका में जितने भी नये एचआईवी के केस आये, उनमें 21 प्रतिशत मरीजों की उम्र 13 से 24 साल के बीच थी। यह खतरनाक संकेत हैं।
36.) एचआईवी के बारे में--- अमेरिका में 15 से 19 साल की आयु की लड़कियों में मात्र 43 प्रतिशत लड़कियां ही एचआईवी या यौन संक्रमित रोगों के बारे में दी जाने वाली काउंसिलिंग अटेंड करती हैं।
37.) 59 फीसदी ने बच्‍चे को जन्‍म दिया--- 15 से 19 साल की आयु की प्रेगनेंट लड़कियों में से 59 प्रतिशत ने बच्‍चे को जन्‍म दिया जबकि 26 प्रतिशत ने अबॉर्शन करवाया और बाकी का मिसकैरेज हो गया। 2 प्रतिशत टीनेज प्रेगनेंसी पूरी तरह अनियोजित थीं।
38.) 13 से 19 साल की आयु में गर्भवती--- 2011 की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में 89 प्रतिशत टीन बर्थ यानी 13 से 19 साल की आयु में जिन महिलाओं ने बच्‍चों को जन्‍म दिया उनमें 89 प्रतिशत की शादी नहीं हुई थी।
39.) जब फीमेल पार्टनर प्रेगनेंट हो--- जब फीमेल पार्टनर प्रेगनेंट हो जाती है, तो 47 प्रतिशत टीनेजर लड़के बहुत अपसेट हुए, जबकि 34 प्रतिशत लड़के कुछ अपसेट हुए, जबकि 18 प्रतिशत खुश हुए।
40.) टीनेजर लड़के 17 से 20 साल की आयु में पिता--- अमेरिका में 2008 में 15 से 19 साल की आयु की 1 लाख 92 हजार लड़कियों ने अबॉर्शन करवाया। इनमें 7 प्रतिशत नाबालिग थीं। अमेरिका में 2010 में हुए सर्वे के अनुसार 16 प्रतिशत टीनेजर लड़के 17 से 20 साल की आयु में पिता बन जाते हैं। (sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.com)

कोलकाता पहुंची 'किस ऑफ लव' की मुहिम : आमार शोरीर आमार मोन बोंधो होक राज शासन


नैतिकता का पाठ पढ़ाने वालों के विरोध में और महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ावा देने के लिए कोच्चि के बाद अब कोलकाता के दो विश्वविद्यालयों के छात्रों ने 'किस ऑफ लव' का आयोजन 6 नवम्बर 2014 को किया। केरल में शुरू हुई मुहिम के प्रति एकजुटता दिखाते हुए जादवपुर में एक विरोध रैली में कार्यकर्ताओं ने 'धार्मिक कट्टरपंथ और हठधर्मिता के बढ़ने' का आरोप लगाया। प्रेजिडेंसी यूनिवर्सिटी के छात्र हाथों में तख्तियां लिये हुए कॉलेज स्ट्रीट पर इंडियन कॉफी हाउस के सामने जमा हुए। जादवपुर यूनिवर्सिटी के मौजूदा और पूर्व छात्रों तथा कुछ बाहरी लोगों सहित 300 से ज्यादा कार्यकर्ता बुधवार दोपहर जादवपुर पुलिस थाने की ओर गए। वहां जाकर वे गले मिले, चुंबन लिया और 'आमार शोरीर आमार मोन बोंधो होक राज शासन' (यह मेरा शरीर है, मेरा दिमाग है, मैं मॉरल पुलिसिंग की अनुमति नहीं दूंगा) जैसे नारे लगाए। अपनी दोस्त सुचित्रा का चुंबन लेने वाली पीएचडी की छात्रा सायंतनी ने कहा, 'अपनी स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी के दमन के खिलाफ विरोध करने का समय आ गया है। मैं आजादी चाहती हूं कि किसे और कहां पर चूम लूं। इससे किसी को मतलब नहीं होना चाहिए। चुंबन विरोध का सबसे अच्छा तरीका है, इसलिए हम नैतिकता का पाठ पढ़ाने वालों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। हम उनके साथ कोई टकराव नहीं चाहते इसलिए हम प्यार का संदेश फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।' एक और छात्र ने कहा, 'यह प्रदर्शन कोच्चि से शुरू हुए आंदोलन के प्रति हमारी एकजुटता दिखाने के लिए है। हम दिशा-निर्देश के लिए कोच्चि के आयोजकों के साथ हैं।' अंग्रेजी साहित्य की तीसरे वर्ष की छात्रा रोनिता सान्याल ने कहा, 'हो सकता है कि इससे चीजें न बदलें, लेकिन हम कोशिश करते रहेंगे। हम नफरत और असहिष्णुता की संस्कृति के खिलाफ आगे बढ़ रहे हैं।' आयोजकों के मुताबिक यह प्रदर्शन महाराष्ट्र में एक दलित लड़के की ऊंची जाति की एक लड़की के साथ संबंधों के चलते लड़के और उसके अभिभावकों की कथित हत्या की घटना के विरोध में आयोजित किया गया। प्रेजिडेंसी यूनिवर्सिटी के पीएचडी के एक छात्र ने कहा, 'किस ऑफ लव राज्य में ऐसी प्रवृतियों के महत्व को रेखांकित करने के लिए है। साफ है कि इस तरह के दमन के खिलाफ तुरंत विरोध की आवश्यकता है।'
विरोध के इस तरीके को क्या कहा जाये? विरोध का वह तरीका निन्दनीय है जो भारतीय परम्परा के विरुद्ध हो। खुलेआम किस करना भारतीय परम्परा का हिस्सा नहीं है। ‘‘यह मेरा शरीर है तो मैं चाहे जो करूँ’’- यह कहना भी कानूनन सही नहीं है। क्या कानूनन शरीर को खुलेआम निर्वस्त्र किया जा सकता है? क्या कानून किसी को आत्महत्या की इजाजत देता है? क्या खुलेआम चुम्बन अश्लीलता नहीं है ? यदि है तो कॉलेज की इन विद्यार्थियों पर तो कानूनी कार्रवाई होनी चाहिये।  (sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.com)




शनिवार, 25 अक्तूबर 2014

छठ व्रत की हैं अनेक कथाएँ / CHHATH

-शीतांशु कुमार सहाय
भगवान सूर्य की आराधना के महापर्व छठ से कई कथाएँ जुड़ी हैं। छठ भारत की पारंपरिक पूजन विधियों में से एक है और सबसे कठिन व्रतों में भी एक है। चार दिन के छठ व्रत से जुड़ी अनेक कथाएँ भी लोकमानस में प्रचलित हैं। मार्कण्डेय पुराण में आये उल्लेख के अनुसार, सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने को छः भागों में विभाजित किया। इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृदेवी के रूप में जाना जाता है। वह ब्रह्मा की मानसपुत्री और बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं। कार्तिक मास के शुक्ल षष्ठी को इन्हीं देवी की पूजा की जाती है। शिशु के जन्म के छः दिनों के बाद भी इसी देवी की पूजा और आराधना कर बच्चे के स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु होने की कामना की जाती है। यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है।

छठ व्रत कथा देखने के लिए क्लिक करें :

द्रौपदी ने भी रखा था व्रत---
एक श्रुत कथा के अनुसार, जब पाण्डव अपना सारा राजपाट जुए में हार गये तब द्रौपदी ने छठ व्रत किया और पाण्डवों की मनोकामनाएँ पूर्ण हुईं। पाण्डवों को अपना राजपाट वापस मिल गया। छठ का उल्लेख रामायण काल में भी मिलता है। 
वर्ष में दो बार---
छठ पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। एक बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र में मनाये जानेवाले छठ को ‘चैती छठ’ और कार्तिक में मनाये जानेवाले छठ को ‘कार्तिकी छठ’ कहा जाता है।
सदियों से चली आ रही है परम्परा---
छठ की परम्परा सदियों से चली आ रही है। एक मान्यता के अनुसार, प्रियव्रत नाम के राजा की कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप ने उन्हें पुत्रेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी। यज्ञ के फलस्वरुप महारानी ने एक शिशु को जन्म दिया पर वह मृत था। इससे पूरे नगर में शोक की लहर दौड़ गयी। तब एक आश्चर्यजनक घटना घटी। आकाश से एक देवी जमीन पर उतरीं और उन्होंने कहा- ‘‘मैं देवी षष्ठी हूँ और समस्त बालिकाओं की रक्षिका हूँ।’’ इसके बाद देवी ने शिशु को स्पर्श किया और बालक जीवित हो उठा। इसके बाद राजा ने पूरे राज्य में यह पर्व मनाने की घोषणा कर दी।
षष्ठी देवी हैं छठी मैया---
षष्ठी देवी का विवाह भगवान शिव व भगवती पार्वती के प्रथम पुत्र कार्तिक से हुआ। वह पंचत्त्व से इतर छठे तत्त्व से उत्पन्न हुईं, अतः उन्हें षष्ठी देवी कहा जाता है। छठ के गीतों में इन्हें छठी मैया के रूप में याद किया जाता है और सूर्य के साथ स्वतः ही इनकी भी पूजा हो जाती है।


झारखंड और जम्मू-कश्मीर में 25 नवंबर से 5 चरणों में विधानसभा चुनाव / Assembly Election in Jharkhand & Jammu-Kashmir-2014

-Sheetanshu Kumar Sahayचुनाव आयोग ने जम्मू-कश्मीर और झारखंड विधानसभा चुनावों की तारीखों का एलान कर दिया है। दोनों राज्यों में मतदान 5 चरणों में होंगे। इसके साथ ही चुनाव आयोग ने दिल्ली की तीन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव का एलान भी किया है। यहां 25 नवंबर को मतदान होंगे। इसके साथ ही दोनों राज्यों में आदर्श चुनाव आचार संहिता भी लागू हो गई है। चुनाव आयुक्त वीएस संपत ने शनिवार को दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस ने मतदान की तारीखों की घोषणा की। इसके मुताबिक, दोनों राज्यों में 25 नवंबर, 2 दिसंबर, 9 दिसंबर, 14 दिसंबर और 20 दिसंबर को मतदान होंगे जबकि मतगणना 23 दिसंबर को होगी। झारखंड विधानसभा का कार्यकाल 3 जनवरी 2015 को खत्म हो रहा है जबकि जम्मू-कश्मीर की विधानसभा 19 जनवरी तक है। जम्मू-कश्मीर में 72 लाख वोटर्स हैं जिनके लिए 10015 मतदान केंद्र बनाए जाएंगे। वहीं झारखंड में दो करोड़ सात लाख मतदाता हैं, जो 24648 मतदान केंद्रों पर वोट डाल पाएंगे। दोनों राज्यों में काँग्रेस समर्थित सरकारें हैं।
अब तक की स्थिति---
जम्मू-कश्मीर में फिलहाल नेशनल कॉन्फ्रेंस के पास सबसे ज्यादा 28 सीटें हैं। पीडीपी 21 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर है और काँग्रेस के पास 17 सीटें हैं। 10 सीटें अन्यों के पास हैं। राज्य में 6 साल तक नेशनल कॉन्फ्रेंस और काँग्रेस के गठबंधन की सरकार रही। 2008 में जम्‍मू-कश्‍मीर की 87 सीटों के लिए हुए विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था। नेशनल कॉन्‍फ्रेंस 28 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। एनसी ने काँग्रेस के समर्थन से राज्‍य में उमर अब्‍दुल्‍ला के नेतृत्‍व में सरकार बनाई जबकि झारखंड में विधानसभा की 81 सीटें हैं। 2009 में हुए पिछले विधानसभा चुनावों में बीजेपी और झारखंड मुक्ति मोर्चा को 18-18 सीटें मिलीं जबकि काँग्रेस की झोली में 13 सीटें आईं और 20 सीटें अन्य को मिलीं। झारखंड में इस समय जेएमएम के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकार है, जिसे काँग्रेस का समर्थन हासिल है।
आरक्षित सीटें---
झारखंड में 9 अनुसूचित जाति के लिए और 28 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। इसी तरह जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 7 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। जम्मू-कश्मीर विधानसभा में अनुसूचित जनजाति का आरक्षण नहीं है।
दिल्ली विधानसभा चुनावों का संकेत नहीं---
चुनाव आयोग ने दिल्ली विधानसभा चुनावों को लेकर कोई संकेत नहीं दिया है, बल्कि इसके स्थान पर तीन रिक्त हो चुकी विधानसभा सीटों महरौली, तुगलकाबाद और कृष्णानगर में उपचुनाव की तारीख घोषित की गई है। स्पष्ट है कि अभी दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने के आसार नहीं है। बता दें कि दिल्ली विधानसभा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 3 नवंबर को सुनवाई होनी है, साथ ही उपराज्यपाल नजीब जंग ने भी अपना मत नहीं दिया है। माना जा रहा है कि आयोग इसी का इंतजार कर रहा है। 
जम्मू-कश्मीर में बीजेपी---
जम्‍मू-कश्‍मीर घाटी में पहली बार बीजेपी पूरी ताकत से चुनाव में उतर रही है। बाढ़ आने से पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने साफ कर दिया था कि उनके लिए घाटी में सरकार बनाना पहला उद्देश्य है।  बीजेपी मिशन-44 को मकसद लेकर चल रही है ताकि अपनी सरकार बना सके। दूसरी ओर, इस बार काँग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी भी अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं, जिसका फायदा बीजेपी को हो सकता है। उसकी नजर जम्मू और लद्दाख की 37 सीटों पर है। हालांकि लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने राज्य में अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। उसे 6 सीटों में से तीन पर जीत हासिल हुई है। 87 सीटों वाली मौजूदा विधानसभा में उसके 11 विधायक हैं।

झारखंड विधानसभा चुनाव कार्यक्रम---
पहला चरण-
29 अक्टूबर को अधिसूचना जारी
5 नवंबर तक नामांकन करने की तिथि
25 नवंबर को चुनाव  
दूसरा चरण- 
7 नवंबर को अधिसूचना
14 नवंबर तक नामांकन 
15 को स्क्रूटनी
17 नाम वापस लेने की अंतिम तिथि 
2 दिसंबर को चुनाव
तीसरा चरण-
14 नवंबर अधिसूचना
21 नवंबर नामांकन की अंतिम दिन 
22 डेट ऑफ स्क्रूटनी
9 दिसंबर को चुनाव
चौथा चरण- 
19 नवंबर को अधिसूचना
26 नवंबर नामांकन का लास्ट डेट
27 नवंबर को स्क्रूटनी
29 नवंबर नाम वापसी का अंतिम दिन 
14 दिसंबर को चुनाव
पाँचवाँ चरण-
26 नवंबर अधिसूचना
3 दिसंबर नामांकन का अंतिम दिन
4 दिसंबर स्क्रूटनी
6 दिसंबर नाम वापस लेने का अंतिम दिन
20 दिसंबर को चुनाव

भगवान चित्रगुप्त हैं यमराज के आलेखक, ऐसे प्रकट हुए चित्रगुप्त / BHAGWAN CHITRAGUPTA



-शीतांशु कुमार सहाय
भगवान चित्रगुप्त ब्रह्माजी के 17वें और अंतिम मानसपुत्र हैं। यम द्धितीया को भैयादूज भी कहते हैं। इस दिन बहनों को अपने भाई को हाथ से भोजन कराने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि बहन अगर भाई को भोजन कराती है तो उसकी उम्र बढ़ने के साथ जीवन के कष्ट भी दूर होते हैं। कार्तिक शुक्ल पक्ष द्धितीया के दिन यमराज ने अपनी बहन यमुना के घर भोजन किया था, अतः इस तिथि को यम द्धितीया कहते हैं। भैयादूज के दिन ही चित्रगुप्त की पूजा के साथ ही कमल दवात और पुस्तकों की पूजा की जाती है। एक बार युधिष्ठिरजी भीष्मजी से बोले- हे पितामह! आपकी कृपा से मैंने धर्मशास्त्र सुने, परन्तु यमद्वितीया का क्या पुण्य है, क्या फल है यह मैं सुनना चाहता हूँ। आप कृपा करके मुझे विस्तारपूर्वक कहिए। भीष्मजी बोले- तूने अच्छी बात पूछी। मैं उस उत्तम व्रत को विस्तारपूर्वक बताता हूँ। कार्तिक मास के उजले और चैत्र के अँधेरे की पक्ष जो द्वितीया होती है, वह यमद्वितीया कहलाती है। युधिष्ठिरजी बोले- उस कार्तिक के उजले पक्ष की द्वितीया में किसका पूजन करना चाहिए और चैत्र महीने में यह व्रत कैसे हो, इसमें किसका पूजन करें?


भीष्मजी बोले- हे युधिष्ठिर, पुराण संबंधी कथा कहता हूँ। इसमें संशय नहीं कि इस कथा को सुनकर प्राणी सब पापों से छूट जाता है। सतयुग में नारायण भगवान्‌ से, जिनकी नाभि में कमल है, उससे चार मुँह वाले ब्रह्माजी उत्पन्न हुए, जिनसे वेदवेत्ता भगवान्‌ ने चारों वेद कहे। नारायण बोले- हे ब्रह्माजी! आप सबकी तुरीय अवस्था, रूप और योगियों की गति हो, मेरी आज्ञा से संपूर्ण जगत्‌ को शीघ्र रचो। हरि के ऐसे वचन सुनकर हर्ष से प्रफुल्लित हुए ब्रह्माजी ने मुख से ब्राह्मणों को, बाहुओं से क्षत्रियों को, जंघाओं से वैश्यों को और पैरों से शूद्रों को उत्पन्न किया। उनके पीछे देव, गंधर्व, दानव, राक्षस, सर्प, नाग जल के जीव, स्थल के जीव, नदी, पर्वत और वृक्ष आदि को पैदा कर मनुजी को पैदा किया। इनके बाद दक्ष प्रजापतिजी को पैदा किया और तब उनसे आगे और सृष्टि उत्पन्न करने को कहा। दक्ष प्रजापतिजी से 60 कन्या उत्पन्न हुई, जिनमें से 10 धर्मराज को, 13 कश्यप को और 27 चंद्रमा को दीं। कश्यपजी से देव, दानव, राक्षस इनके सिवाय और भी गंधर्व, पिशाच, गो और पक्षियों की जातियाँ पैदा हुईं।
धर्मराज को धर्म प्रधान जानकर सबके पितामह ब्रह्माजी ने उन्हें सब लोकों का अधिकार दिया और धर्मराज से कहा कि तुम आलस्य त्यागकर काम करो। जीवों ने जैसे-जैसे शुभ व अशुभ कर्म किए हैं, उसी प्रकार न्यायपूर्वक वेद शास्त्र में कही विधि के अनुसार कर्ता को कर्म का फल दो और सदा मेरी आज्ञा का पालन करो। ब्रह्माजी की आज्ञा सुनकर बुद्धिमान धर्मराज ने हाथ जोड़कर सबके परम पूज्य ब्रह्माजी को कहा- हे प्रभो! मैं आपका सेवक निवेदन करता हूँ कि इस सारे जगत के कर्मों का विभागपूर्वक फल देने की जो आपने मुझे आज्ञा दी है, वह एक महान कर्म है। आपकी आज्ञा शिरोधार्य कर मैं यह काम करूँगा कि जिससे कर्त्ताओं को फल मिलेगा, परन्तु पूरी सृष्टि में जीव और उनके देह भी अनन्त हैं। देशकाल ज्ञात-अज्ञात आदि भेदों से कर्म भी अनन्त हैं। उनमें कर्ता ने कितने किए, कितने भोगे, कितने शेष हैं और कैसा उनका भोग है तथा इन कर्मों के भी मुख्य व गौण भेद से अनेक हो जाते हैं एवं कर्ता ने कैसे किया, स्वयं किया या दूसरे की प्रेरणा से किया आदि कर्म चक्र महागहन हैं। अतः मैं अकेला किस प्रकार इस भार को उठा सकूँगा, इसलिए मुझे कोई ऐसा सहायक दीजिए जो धार्मिक, न्यायी, बुद्धिमान, शीघ्रकारी, लेख कर्म में विज्ञ, चमत्कारी, तपस्वी, ब्रह्मनिष्ठ और वेद शास्त्र का ज्ञाता हो।
धर्मराज की इस प्रकार प्रार्थनापूर्वक किए हुए कथन को विधाता सत्य जान मन में प्रसन्न हुए और यमराज का मनोरथ पूर्ण करने की चिंता करने लगे कि उक्त सब गुणों वाला ज्ञानी लेखक पुरुष होना चाहिए। उसके बिना धर्मराज का मनोरथ पूर्ण न होगा। तब ब्रह्माजी ने कहा- हे धर्मराज! तुम्हारे अधिकार में मैं सहायता करूँगा। इतना कह ब्रह्माजी ध्यानमग्न हो गए। उसी अवस्था में उन्होंने 11 हजार वर्ष तक तपस्या की। जब समाधि खुली तब अपने सामने श्याम रंग, कमल नयन, शंख की सी गर्दन, गूढ़ शिर, चंद्रमा के समान मुख वाले, कलम, दवात और पानी हाथ में लिए हुए, महाबुद्धि, देवताओं का मान बढ़ाने वाला, धर्माधर्म के विचार में महाप्रवीण लेखक, कर्म में महाचतुर पुरुष को देख उसे पूछ कि तू कौन है? तब उसने कहा- ''हे प्रभो! मैं माता-पिता को तो नहीं जानता, किन्तु आपके शरीर से प्रकट हुआ हूँ, इसलिए मेरा नामकरण कीजिए और कहिए कि मैं क्या करूँ?'' ब्रह्माजी ने उस पुरुष के वचन सुन अपने हृदय से उत्पन्न हुए उस पुरुष को हँसकर कहा- ''तू मेरी काया से प्रकट हुआ है, इससे मेरी काया में तुम्हारी स्थिति है, इसलिए तुम्हारा नाम कायस्थ चित्रगुप्त है। धर्मराज के पुर में प्राणियों के शुभाशुभ कर्म लिखने में उसका तू सखा बने, इसलिए तेरी उत्पत्ति हुई है।''  भगवान चित्रगुप्त को ब्रह्माजी ने भगवती की तपस्या कर आशीर्वाद पाने की सलाह दी। ब्रह्माजी ने चित्रगुप्त से यह कहकर धर्मराज से कहा- ''हे धर्मराज! यह उत्तम लेखक तुझको मैंने दिया है जो संसार में सब कर्मसूत्र की मर्यादा पालने के लिए है।'' इतना कहकर ब्रह्माजी अन्तर्ध्यान हो गए।
चित्रगुप्त कोटि नगर को जाकर चण्ड-प्रचण्ड ज्वालामुखी कालीजी के पूजन में लग गये। उपवास कर उन्होंने भक्ति के साथ चण्डिकाजी की भावना मन में की। उसने उत्तमता से चित्त लगाकर ज्वालामुखी देवी का जप और स्तोत्रों से भजन-पूजन और उपासना इस प्रकार की- ''हे जगत्‌ को धारण करने वाली! तुमको नमस्कार है, महादेवी! तुमको नमस्कार है। स्वर्ग, मृत्यु, पाताल आदि लोक-लोकान्तरों को रोशनी देने वाली, तुमको नमस्कार है। सन्ध्या और रात्रि रूप भगवती तुमको नमस्कार है। श्वेत वस्त्र धारण करने वाली सरस्वती तुमको नमस्कार है। सत, रज, तमोगुण रूप देवगणों को कान्ति देने वाली देवी, हिमाचल पर्वत पर स्थापित आदिशक्ति चण्डी देवी तुमको नमस्कार है।'' तपस्या पूर्ण होने पर देवताओं और ऋषियों के साथ ब्रह्माजी आशीर्वाद देने पहुँचे। ब्रह्माजी ने उन्हें अमर होने का वरदान दिया। यमराज के आलेखक भगवान चित्रगुप्त की पूजा आश्विन शुक्ल पक्ष द्धितीया को की जाती है।
चित्रगुप्त का विवाह क्षत्रिय वर्ण के विश्वभान की पुत्र श्राद्धदेव मुनि की कन्या नन्दिनी से हुआ। इनका दूसरा विवाह ब्राह्मण वर्ण के कश्यप ऋषि के पोते सुशर्मा की पुत्री इरावती से हुआ। इनके 12 पुत्र हुए जिनके वंशज इन दिनों कायस्थ की 12 उपजातियों के रूप में विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में वास करते हैं।

यमराज के साथ रहकर चित्रगुप्त मनुष्य के जीवन-मरण और पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखते हैं। कार्तिक शुक्ल पक्ष द्धितीया (यम द्वितीया) को कलम व दवात की पूजा होती है। यह कायस्थों की सबसे बड़ी पूजा है। वर्ष 2014 का चित्रगुप्त पूजा 25 अक्तूबर को है। आप सबको चित्रगुप्त पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ!

बुधवार, 22 अक्तूबर 2014

दीपावली में महालक्ष्म्यष्टकम् का पाठ / Read Mahālakshmyashtakam on Deepawali


-शीतांशु कुमार सहाय
देवराज इंद्र ने देवी महालक्ष्मी की स्तुति की। वह स्तोत्र 'महालक्ष्म्यष्टकं' जन कल्याण के लिए विख्यात हुआ। महालक्ष्मी की दृष्टि मात्र पड़ जाने से व्यक्ति श्री युक्त हो जाता है। प्रत्येक को इस स्तोत्र का पाठ अवश्य करके प्रसन्नता प्राप्त करनी चाहिए। दीपावली के पावन अवसर पर आप भी धन व ऐश्वर्य की अधिठात्री देवी लक्ष्मी की आराधना के दौरान महालक्ष्म्यष्टकम् का सस्वर पाठ करें और माता की कृपा प्राप्त करें।

महालक्ष्म्यष्टकम्

नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।। 1।।
नमस्ते गरूडारूढे कोलासुरभयंकरि।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।। 2।।
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयंकरि।
सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।। 3।।
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि।
मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।। 4।।
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।। 5।।
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे।
महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।। 6।।
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि‍।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।। 7।।
श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकारभूषिते।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।। 8।।
महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिमान्नरः।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा।। 9।।
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्।
द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वितः।। 10।।
त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा।। 11।।

|| इति इन्द्रकृतं महालक्ष्म्यष्टकं सम्पूर्णम् ||

आयी दीपावली : जलाइये प्यार का दीया / Deepawali came : Lamp The Lamp of Love



-शीतांशु कुमार सहाय

ह्रीं बीज मंत्र में वास करनेवाली माता धनेश्वरी अपने धनाध्यक्ष कुबेर के साथ आप पर अनवरत् भौतिक-अभौतिक ऐश्वर्यवर्षण करती रहें- हृदय की यही पुकार, हो आप को स्वीकार! दीपावली की असीम शुभकामनाएँ!

दिन गिनते-गिनते फिर बीत ही गया पूरा एक वर्ष। उड़ान की बात तो दूर, सोच ने पर फड़फड़ाये भी नहीं और पुनः आ गयी दीपावली। क्या-क्या सोचा था मगर कुछ हुआ नहीं! कुछ हुए भी तो आधे-अधूरे! कुछ तो सोच की परिधि से बाहर आ भी न सके! कुछ हसरतें तो सोच की धरातल पर भी नहीं आये! यदि आपके साथ ऐसा हुआ है तो यकीन मानिये कि आपके हाथ से सफलताएँ लगातार फिसल रही हैं। जब असफलताएँ हाथ लगती रहेंगी तो तमाम पर्व-त्योहारों का मजा आता नहीं, मजा किरकिरा हो जाता है। किरकिराते मजे का समूल बदलने की शक्ति वास्तव में मनुष्य के हाथों में है। बस, करना यही है कि दिल से प्यार का एक दीया जलाना है। इसके उजियारे में उन हसरतों के सिलसिले को सजाना है; ताकि उस फेहरिश्त पर नजर पड़ते ही याद ताजा हो जाये। ऐसा करने से तमाम हसरतें नतीजे के मुकाम तक अवश्य ही पहुँचेंगी।

दीपावली कब से और क्यों मनायी जाती है, इस बिन्दु पर मतैक्य नहीं है। उस मतभिन्नता में पड़ने के बदले कीजिये वही जो आपको अच्छा लगता है। जरूरी नहीं कि जो एक को पसन्द है वही दूसरे को भी पसन्द हो। लिहाजा अपनाइये वही जिससे औरों को हानि न हो। निश्चय ही वही कार्य सराहनीय है जिसे समाज भी सराहे, जिससे किसी का दिल न दुखाये। पर, अफसोस यही है कि इन दिनों वही ज्यादा हो रहा है जिसे अधिकतर लोग पसन्द नहीं करते हैं। समाज के कथित अगुआ व्यक्ति उन कार्यों को अंजाम दे रहे हैं जो हर किनारे से आलोचित होते हैं, निन्दित होते हैं। यहाँ किसी का नाम लेना उचित नहीं है। पर, इतना तो कहना ही पड़ेगा कि लोकतन्त्र में तन्त्र से जुड़े अधिकतर लोग वही कर रहे हैं जो लोक यानी जनता को पसन्द नहीं, उनके कार्यों से लोकोपकार कम, लोकापकार अधिक हो रहा है। हम यहाँ तन्त्र से नहीं, लोक से मुखातिब हैं कि करें वही जो लोकोपकारी हो। चूँकि वर्तमान दौर पूर्णतः व्यावसायिक है, लिहाजा हर क्षेत्र को व्यवसाय से जोड़कर देखा जाता है। इस व्यावसायिक नजरिये का अपवाद पर्व-त्योहार भी नहीं हैं। दीपावली को भी व्यवसायियों ने अपने हित में उपयोग किया है, परम्परा में व्यावसायिकता को जोड़ दिया है। तभी तो दीपावली के पावन अवसर पर पटाखे छोड़ने की प्रदूषणयुक्त परम्परा को शामिल किया है। यदि समुद्र मन्थन में लक्ष्मी प्रकट हुईं तो दीप जलाकर देवों द्वारा उनके स्वागत की बातें ग्रन्थों में मिलती हैं मगर पटाखे छोड़ने की कला का प्रदर्शन देवताओं ने नहीं किया था। अगर भगवान राम से दीपावली को जोड़ें तो उनके वनवास से लौटने पर अयोध्यावासियों के दीपोत्सव के बीच कहीं विस्फोट की बातों का जिक्र नहीं मिलता। तेज पटाखों को छोड़ने से पूर्व आस-पड़ोस के किसी हृदय रोगी या किसी अन्य बीमार की राय ले लें। इसी तरह कम आवाज वाले पटाखों में आग लगाने से पूर्व किसी बच्चे से पूछें। दोनों स्थितियों में पता यही चलता है कि आपका व्यवहार उनके लिए क्षतिकारक है।

दरअसल, दीपावली को कई नजरिये से देखा जाता है। सबके नजरिये पृथक हो सकते हैं। यदि जेब गर्म हो तो वर्ष में एक दिन नहीं पूरे वर्ष की हर रात दीपावली व हर दिन होली ही है। पर, उस देश में जहाँ की एक-चौथाई आबादी को दो वक्त का भोजन भी नहीं मिल पाता, वहाँ रुपये में आग लगाना उन दुखियों का मखौल उड़ाना ही तो है। जरूरी नहीं कि 100 दीये ही जलाएँ, एक ही दीया जलाइये, पूरे मन से, दिल से और पूरे वर्ष वैसों के साथ प्यार का दीया जलाइये जो आपके खर्च की सीमा का कभी अन्दाज भी नहीं लगा पाते। प्यार का एक दीया केवल घर को ही नहीं, समाज को रौशन करेगा! ...तो कीजिये दीपावली एंज्वाय और माता धनेश्वरी का इस मंत्र से आराधना करें-
नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते।।

सोमवार, 13 अक्तूबर 2014

झारखंड : विधानसभा चुनाव-2014 में तबाही मचाने का षड्यन्त्र नाकाम, माओवादी मुखलाल धराया, हथियारों का और विस्फोटक का जखीरा बरामद



 -शीतांशु कुमार सहाय
भाकपा माओवादी के उत्तरी छोटनागपुर जोनल कमेटी के सदस्य मुखलाल महतो उर्फ मोछू उर्फ भगत (30) को सोमवार राँची में सोमवार 13 अक्तूबर 2014 को पुलिस ने मीडिया के समक्ष प्रस्तुत किया। डीजीपी राजीव कुमार ने बताया कि गुप्त सूचना मिली थी कि कुख्यात नक्सली राममोहन और मुखलाल महतो अपने हथियार बंद दस्ते के साथ सिल्ली के जंयतीबेड़ा स्थित जुमला में बैठक करने वाले है। श्री कुमार ने बताया कि सूचना के बाद ऑपरेशन स्वर्णरेखा चलाया गया। दस्ता जुमला स्थित नयाकोचा में शनिवार 11 अक्तूबर की रात बैठक कर रहा था। सूचना के बाद रविवार को सुबह 4.30 बजे जैसे ही पुलिस टीम पहुंची। पहाड़ से नक्सलियों ने फायरिंग शुरु कर दी। पुलिस ने भी जबावी फायरिंग शुरु की। नक्सली फायरिंग करते हुए अंधेरे और झाड़ी का फायदा उठाकर भागने लगे। इसी दौरान एक नक्सली को पकड़ा गया। उसने पूछताछ में अपना नाम मुखलाल बताया। पूछताछ में उसने बताया कि विधानसभा में मतदान को प्रभावित करने और पुलिस पार्टी पर हमले की योजना थी।
संवाददाता सम्मेलन में जानकारी देते आरक्षी महानिदेशक राजीव कुमार

डीजीपी ने बताया कि ऑपरेशन के दौरान हथियारों का जखीरा बरामद किया गया है। उन्होंने बताया कि मुखलाल बोकरो, रामगढ़, सिल्ली, गिरिडीह में सक्रिय था। इसके खिलाफ 50 से अधिक मामले विभिन्न थानों में दर्ज है। टीम स्वर्णरेखा में एसपी ग्रामीण सुरेन्द्र कुमार झा, एएसपी हर्षपाल सिंह, सीआरपीएफ के आर के मिश्रा, दिलीप कुमार सिंह, अंशुमन नीलरत्न सहित झारखंड जगुआर तथा अन्य सशस्त्र बल शामिल थे। प्रेस कांफ्रेस में झारखंड के मुख्य सचिव सजल चक्रवर्ती, एडीजी केएस मीणा, आइजी सह प्रवक्ता अनुराग गुप्ता, आइजी एमएम भाटिया, डीआइजी प्रवीण कुमार, एसएसपी प्रभात कुमार सहित अन्य अधिकारी मौजूद थे।
संवाददाता सम्मेलन के दौरान फुर्सत के क्षण में सजल चक्रवर्ती ने ली चाय की चुस्की

हथियारों का जखीरा बरामद---
डीजीपी राजीव कुमार ने बताया कि मुखलाल की निशानदेही पर राँची के सिल्ली से दो रायफल, 110 गोली, तीन ग्रेनेड, 40 पीस जिलेटीन, 4 पीस डेटोनेटर, एक मोबाइल, 11 गोली, 15 विभिन्न हथियारों की गोलियों का खोखा, 8 मोबाइल चार्जर, एक केन, 10 मीटर तार, नक्सली साहित्य, रसीद, दैनिक उपयोग के सामान बरामद किये गये। डीजीपी ने बताया कि मुखलाल की निशानदेही पर ही बोकारो के महुआटांड थाना क्षेत्र के असनापानी की पहाड़ी और जंगल क्षेत्र से सर्च करने पर एक एके 47, 54 जिंदा केन बम, 100 डेटोनेटर, 14 क्लेमोर मांइस, 16 केन, एक स्ट्रील ड्रम, 9 स्वीच बम बनाने के सामान और उपकरण बरामद किये गये है। उन्होंने बताया कि बोकारों के कसमार थाना क्षेत्र के तिरियोनाला पहाड़ी व जंगल से 4 केन बम, 7 कोडेक्स वायर, विद्युत तार, एक पाइप बम बरामद किया गया है। उन्होंने बताया कि अन्य बताये ठिकानों पर छापेमारी की जा रही है।
2 लाख रुपये का चेक देते मुख्य सचिव सजल चक्रवर्ती
टीम को दिया 2 लाख का ईनाम---
डीजीपी राजीव कुमार ने बताया कि टीम में शामिल पुलिसकर्मियों को दो लाख रुपये नकद दिये गये। रुपये मुख्य सचिव सजल चक्रवर्ती ने सभी अधिकारियों को दिये। श्री कुमार ने बताया कि नक्सलियों के मूवमेंट की सूचना देने वाले को 50 हजार रुपये नकद इनाम दिया गया।

परिस्थिति अनोखी टीम बना देती है, टीम इतिहास बना देती है : सजल

झारखंड के मुख्य सचिव सजल चक्रवर्ती ने कहा कि परिस्थिति अनोखी टीम बना देती है। टीम इतिहास बना देती है। श्री चक्रवर्ती पुलिस मुख्यालय में चल रहे प्रेस कॉन्फ्रेन्स में पहुँचे थे। उन्होंने कहा कि राँची की पुलिस टीम में एसपी ग्रामीण सुरेन्द्र कुमार झा, एएसपी अभियान हर्षपाल सिंह ने राज्य पुलिस में अनोखी पहचान बनायी है। कुछ दिनों पहले कुख्यात नक्सली प्रसाद जी को भी गिरफ्तार किया गया था। उन्होंने टीम की सराहना की। मुख्य सचिव ने राज्य में शहीद पुलिसकर्मियों के लिए शहीद स्मारक बनाये जाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि आगामी 19 अक्तूबर को पुलिस शहीद समारोह के आयोजन में बेहतर थीम के साथ काम किया जाना चाहिए।
मुखलाल ने इन घटनाओं को दिया था अंजाम---
2014 में बोकारो के लुगु घाटी में लोकसभा चुनाव में पुलिस वाहन को विस्फोट कर उड़ाना।
झुमरा पहाड़ के समीप पन्दना टांड के पास पुलिस जीप को विस्फोट कर उड़ाना।
2014 अगस्त में महुआटांड के चौकीदार की हत्या।
2009 में बोकारो के पंचमों के चौकीदार रामधनी गंझू की हत्या।
2009 में बोकारो में राहावान के बंधु महतो की हत्या।
चुरचु के टुटकी गांव में डिलु महतो की हत्या।
रामगढ़ के गोला में जोभिया गांव में वाहनों को जलाना।
रामगढ़ के गोला के खाखरा में वाहनों को जलाना।
अनगड़ा के हापादाग के जंगल में पुलिस पर हमला।

शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2014

सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी : नोबेल शांति पुरस्कार-2014 विजेता की प्रमुख बातें / Social Worker Kailash Satyarthi : Nobel Peace Prize-2014 Winner's Main Points


मलाला यूसुफजई और कैलाश सत्यार्थी

-शीतांशु कुमार सहाय
भारत के सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई को वर्ष 2014 के लिए शांति का नोबेल पुरस्कार संयुक्त रूप से देने की घोषणा की गई। सत्यार्थी भारत में जन्मे पहले व्यक्ति हैं जिन्हें नोबल शांति पुरस्कार से नवाजा गया है और नोबल पुरस्कार पाने वाले सातवें भारतीय हैं। कैलाश सत्यार्थी बच्चों के अधिकार के लिए संघर्ष करने वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो सालों से बाल अधिकार के लिए संघर्षरत हैं। कैलाश सत्यार्थी के बारे में प्रमुख बातें---
(1.) कैलाश का जन्म मध्य प्रदेश के विदिशा में 11 जनवरी 1954 को हुआ था।
(2.) कैलाश सत्यार्थी ने वर्ष 1980 में बालश्रम के खिलाफ 'बचपन बचाओ आंदोलन' की स्थापना की। उनका यह संगठन अब तक 80,000 से ज़्यादा बच्चों को बंधुआ मजदूरी, मानव तस्करी और बालश्रम के चंगुल से छुड़ा चुका है।

(3.) गैर-सरकारी संगठनों तथा कार्यकर्ताओं की सहायता से कैलाश सत्यार्थी ने हज़ारों ऐसी फैकटरियों तथा गोदामों पर छापे पड़वाए, जिनमें बच्चों से काम करवाया जा रहा था। बाल श्रमिकों को छुडाने के दौरान उन पर कई बार जानलेवा हमले भी हुए हैं। दिल्ली की एक कपड़ा फैक्ट्री में 17 मार्च 2011 को छापे के दौरान उन पर हमला किया गया था। इससे पहले 2004 में ग्रेट रोमन सर्कस से बाल कलाकारों को छुडाने के दौरान उन पर हमला हुआ। ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ के रूप में उनकी संस्था लोगों के बीच में काफी लोकप्रिय है। दिल्ली एवं मुंबई जैसे देश के बड़े शहरों की फैक्टरियों में बच्चों के उत्पीड़न से लेकर ओडिशा और झारखंड के दूरवर्ती इलाकों से लेकर देश के लगभग हर कोने में उनके संगठन ने बंधुआ मजदूर के रूप में नियोजित बच्चों को बचाया। उन्होंने बाल तस्करी एवं मजदूरी के खिलाफ कड़े कानून बनाने की वकालत की और अभी तक उन्हें मिश्रित सफलता मिली है। बाल मित्र ग्राम वह मॉडल गांव है जो बाल शोषण से पूरी तरह मुक्त है और यहां बाल अधिकार को तरजीह दी जाती है। 2001 में इस मॉडल को अपनाने के बाद से देश के 11 राज्यों के 356 गांवों को अब तक बाल मित्र ग्राम (चाइल्ड फ्रेंडली विलेज) घोषित किया जा चुका है। इन गांवों के बच्चे स्कूल जाते हैं, बाल पंचायत, युवा मंडल और महिला मंडल में शामिल होते हैं और समय-समय पर ग्राम पंचायत से बाल समस्याओं के संबंध में बातें करते हैं। ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ बाल मित्र ग्राम में 14 साल के सभी बच्चों को मुफ्त, व्यापक और स्तरीय शिक्षा के साथ ही लड़कियां स्कूल न छोड़ें, इसलिए स्कूलों में आधारभूत सुविधाएं मौजूद हों यह सुनिश्चित करती है।
(4.) कैलाश सत्यार्थी ने 26 साल की उम्र में अपना इलेक्ट्रिकल इंजीनियर का पेशा छोड़कर बच्चों के अधिकारों के लिए काम करना शुरू किया था। 
(5.) कैलाश सत्यार्थी ने 'रगमार्क' (Rugmark) की शुरुआत की, जो इस बात को प्रमाणित करता है कि तैयार कारपेट (कालीनों) तथा अन्य कपड़ों के निर्माण में बच्चों से काम नहीं करवाया गया है। इस पहल से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाल अधिकारों के प्रति जागरूकता पैदा करने में काफी सफलता मिली। इसका मुख्य उद्देश्य आर्थिक लाभ के लिए बच्चों के शोषण के खिलाफ काम करना था।
(6.) कैलाश सत्यार्थी ने विभिन्न रूपों में प्रदर्शनों तथा विरोध-प्रदर्शनों की परिकल्पना और नेतृत्व को अंजाम दिया, जो सभी शांतिपूर्ण ढंग से पूरे किए गए।
(7.) कैलाश सत्यार्थी यूनेस्को के सदस्य भी रहे हैं।
(8.) वे नई दिल्ली में अपने परिवार के साथ रहते हैं। उनके परिवार में पत्नी सुमेधा, उनकी बेटी, बेटा और बहू शामिल हैं। उनके साथ उनकी संस्था 'बचपन बचाओ आंदोलन' द्वारा बचाए गए बच्चे भी रहते हैं।
(9.) नोबेल से पहले उन्हें कई अंतरराष्ट्रीय अवार्ड मिल चुके हैं। इसमें 2009 में यूएस का डिफेंडर्स ऑफ डेमोक्रेसी अवार्ड, 2008 में स्पेन का एलफोंसो कामिन इंटरनेशनल अवार्ड, 2007 में मेडेल ऑफ इटेलियन सीनेट अवार्ड और फ्रीडम अवार्ड, रॉबर्ट एफ. केनेडी इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स अवार्ड (अमेरिका) और फ्रेडरिक एबर्ट इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स अवार्ड (जर्मनी) शामिल हैं। इसके साथ ही 2007 में ही यूस लिस्ट ऑफ 'हीरोज एक्टिंग टू एंड मार्डन डे स्लेवरी' में सत्यार्थी का नाम शामिल किया गया था।
(10.) उन्हें 10 दिसंबर 2014 को यह पुरस्कार नार्वे की राजधानी ओस्लों में दिया जाएगा। इस पुरस्कार के साथ 12 करोड़ डॉलर (7,35,54,00,000 रुपये) की धनराशि भी दी जाएगी।
(11.) साल 2014 का शांति के लिए नोबेल पुरस्कार संयुक्त रूप से कैलाश सत्यार्थी और मलाला यूसुफजई को बच्चों एवं युवाओं के दमन के खिलाफ और बच्चों की शिक्षा की दिशा में काम करने के लिए दिया गया है।
(12.) मदर टेरेसा (1979) के बाद कैलाश सत्यार्थी सिर्फ दूसरे भारतीय हैं जिन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया है।
(13.) कैलाश सत्यार्थी ने नोबेल शांति पुरस्कार मिलने के बाद अपनी प्रतिक्रिया में खुशी जताई। उन्होंने कहा, ''मैं काफी खुश हूं। यह बाल अधिकारों के लिए हमारी लड़ाई को मान्यता है। मैं इस आधुनिक युग में पीड़ा से गुजर रहे लाखों बच्चों की दुर्दशा पर काम को मान्यता देने के लिए नोबेल समिति का शुक्रगुजार हूं।'' 
(14.)  कैलाश सत्यार्थी का अधिकांश कार्य राजस्थान और झारखंड के गांवों में होता है।
(15.) उनके बारे में जानने की लोगों की दिलचस्पी का आलम यह है कि उनकी वेबसाइट पुरस्कार की घोषणा के पाँच मिनट के भीतर ही क्रैश हो गई। पुरस्कार की घोषणा के चंद मिनटों के भीतर ही कैलाश सत्यार्थी ट्विटर पर टॉप ट्रेंड्स में भी कुछ देर शामिल रहे।
(16.) भारत के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने अपने बधाई संदेश में कहा है कि इस पुरस्कार को बाल श्रम जैसी जटिल सामाजिक समस्या के समाधन में भारत के नागरिक समाज के योदान को मान्यता देने और देश से बाल श्रम के सभी रूपों को समाप्त करने में सरकार के साथ सहयो की उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के रूप में देखा जाना चाहिए। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कैलाश सत्यार्थी और मलाला यूसुफ़ज़ई को नोबेल जीतने पर बधाई दी। उन्होंने इसके लिए ट्विटर का सहारा लिया। मोदी ने लिखा, "इस उपलब्धि पर पूरे देश को गर्व है। कैलाश सत्यार्थी ने ऐसे उद्देश्य के लिए पूरा जीवन लगाया है जो पूरी मानवता के लिए अहम है। मैं उनके प्रयासों के लिए उन्हें सलाम करता हूँ।" मोदी ने मलाला को भी बधाई देते हुए लिखा, "मलाला यूसुफ़ज़ई का जीवन धैर्य और साहस की यात्रा है। मैं उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार जीतने पर बधाई देता हूँ।"
(17.) कैलाश इस समय वह ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर (बाल श्रम के खिलाफ वैश्विक अभियान) के अध्यक्ष भी हैं। सत्यार्थी संस्था की वैश्विक सलाहकार परिषद से भी जुड़े रहे हैं। इस संस्था में दुनिया के भर के एनजीओ, शिक्षक और ट्रेड यूनियनें काम करती हैं, जो शिक्षा के लिए ग्लोबल कैंपेन भी चलाती हैं।
(18.) अब तक इन भारतीयों को मिले नोबेल पुरस्कार--- बाल श्रम उन्मूलन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले कैलाश सत्यार्थी प्रतिष्ठित नोबल पुरस्कार प्राप्त करने वाले 8वें और शांति के क्षेत्र में यह पुरस्कार पाने वाले दूसरे भारतीय बन गए हैं। इससे पहले यह पुरस्कार जिन भारतीयों को दिए गए हैं वे हैं---
रवींद्र नाथ टैगोर- 1913 - साहित्य
सीवी रमण- 1930 - भौतिक विज्ञान
हरगोविंद खुराना- 1968 - चिकित्सा औषधि
मदर टेरेसा - 1979 - शांति
सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर - 1983 - भौतिक विज्ञान
अमर्त्य सेन - 1998 - अर्थशास्त्र
वी रामकृष्णन - 2009 - रसायन शास्त्र

मंगलवार, 30 सितंबर 2014

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संयुक्त संपादकीय / Joint Editorial By U.S. President Barack Obama and Indian PM Narendra Modi



अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से पीएम नरेंद्र मोदी की मुलाकात के बाद आज दोनों नेताओं ने संयुक्त संपादकीय जारी किया। ये संपादकीय वॉशिंगटन पोस्ट की वेबसाइट पर प्रकाशित हुआ। पीएम नरेंद्र मोदी और बराक ओबामा द्वारा संयुक्त रूप से लिखा गया पूरा संपादकीय पढ़ें-

राष्ट्रों के रूप में भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका लोकतंत्र, स्वतंत्रता, विविधता एवं उद्यम के प्रति राष्ट्रों के रूप में प्रतिबद्ध हैं और सामान्य मूल्य और परस्पर हितों से जुड़े हैं। हमने मानव इतिहास के पथ में राष्ट्र को सकारात्मक आकार दिया है और आने वाले सालों में साझा कोशिशों से हमारी स्वभाविक और अनोखी साझेदारी अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और शांति को आकार देने में सहायता कर सकती है।

संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत का मूल न्याय और समानता के लिए अपने नागरिकों की साझी इच्छा में है। 1893 में शिकागो में विश्व धर्मसंसद में स्वामी विवेकानंद ने हिन्दुत्व को विश्व धर्म के रूप में प्रस्तुत किया। मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने जब अफ्रीकी अमेरिकी लोगों के साथ भेदभाव और पूर्वाग्रह समाप्त करने की ठानी तब वे महात्मा गांधी की अहिंसा की शिक्षा से प्रेरित थे। गांधी स्वयं हेनरी डेविड थ्यो‍रो की लेखनी से प्रेरित थे।

राष्ट्रों के रूप में हमने लोकहित के लिए दशकों तक साझेदारी की है। भारत की जनता हमारे सहयोग के मजबूत स्तंभ के रूप में याद करती है। हमारे सहयोग के अनेक उदाहरणों में खाद्यान उत्पादन की हरित क्रांति व भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान हैं।

आज हमारी साझेदारी सुदृढ़, विश्वसनीय एवं स्थायी है और यह बढ़ रही है। हमारे संबंध पहले से अधिक बहुपक्षीय सहयोग के हैं। ऐसा न केवल संघीय स्तर पर है बल्कि राज्य एवं स्थानीय स्त़र, हमारी दोनों सेनाओं के बीच, निजी क्षेत्रों और नागरिक समाज में भी है। हमारे संबंधों में इतना कुछ हुआ है कि साल 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने यह घोषणा की थी कि हम स्वभाविक मित्र हैं।

सालों से बढ़ते सहयोग के बाद से हम विद्यार्थी अनुसंधान परियोजनाओं पर एक साथ काम करते हैं। हमारे वैज्ञानिक अत्याधुनिक तकनीकों को विकसित करते हैं और हमारे वरिष्ठ, अधिकारी वैश्विक विषयों पर निकटता से विचार-विमर्श करते हैं। हमारी सेनाएं वायु, जमीन और समुद्र में संयुक्त अभ्यास करती है और हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम सहयोग के अप्रत्याशित क्षेत्र में हैं और परिणामस्वरूप हम पृथ्वी से मंगल पर पहुंच गए हैं। इस साझेदारी में भारतीय अमेरिकी समुदाय जीवंत और दोनों देशों के बीच सेतु है। इसकी सफलता हमारी जनता, मुक्त अमेरिकी समाज के मूल्य और एक साथ काम करने की शक्ति के महत्व को दिखाती है।

अभी हमारे संबंधों की वास्तविक क्षमता को पूरी तरह से उपयोग में लाना शेष है। भारत में नई सरकार बनना हमारे संबंधों को व्यापक और दृढ़ बनाने के लिए स्वभाविक अवसर है। नई आकांक्षा और दृढ़ विश्वास की नई ऊर्जा के साथ हम सुदृढ़ एवं पारंपरिक लक्ष्यों से आगे बढ़ सकते हैं। यह समय अपने नागरिकों के लिए ठोस लाभ हासिल करने वाला नया एजेंडा तय करने का है।

भारत के महत्वाकांक्षी विकास एजेंडे के साथ मिलकर संयुक्त राज्य अमेरिका को भी वैश्विक वृद्धि का इंजन बनाए रखते हुए, यह एजेंडा हमें व्यापार, निवेश और प्रौद्योगिकी में अपने सहयोग के विस्तार को बढ़ाने के लिए पारस्परिक रूप से लाभप्रद तरीके खोजने में सक्षम बनाता है। आज जब हम वॉशिंगटन में मुलाकात करेंगे तो हम उन तरीकों पर चर्चा करेंगे जिसमें हम अपने समान वातावरण के भविष्य को सुरक्षित बनाते हुए विनिर्माण को बढ़ावा दे सकें और सस्ती अक्षय ऊर्जा का विस्तार कर सकते हैं।

हम उन विषयों पर भी चर्चा करेंगे जिनमें हम अपने व्यापारियों, वैज्ञानिकों और सरकारों को साझीदार बना सकते हैं क्योंकि भारत, खासतौर पर नागरिकों के सबसे गरीब वर्ग के लिए, बुनियादी सेवाओं की गुणवत्ता, विश्वसनीयता और उपलब्धता में सुधार के लिए काम करता है। इस संबंध में अमेरिका सहायता के लिए तैयार है। एक मजबूत समर्थन का तत्काल क्षेत्र 'स्वच्छ भारत अभियान' है, जिसमें हम संपूर्ण भारत में स्वच्छता और स्वास्थ्य में सुधार के लिए निजी और नागरिक समाज के नवाचार, विशेषज्ञता और प्रौद्योगिकी का लाभ लेंगे।

जहां एक ओर हमारे साझा प्रयासों से हमारे अपने लोगों को लाभ मिलेगा, वहीं हमारी भागीदारी भी अपने हिस्से के योगदान को और व्यापक बनाने की इच्छा रखती है। राष्ट्रों के तौर पर, लोगों के रूप में हम सभी के लिए एक बेहतर भविष्य की कामना करते हैं, जिनमें से एक, हमारी रणनीतिक साझेदारी भी व्यापक स्तर पर दुनिया के लिए लाभों का सृजन करती है। जहां एक तरफ, भारत को अमेरिकी निवेश और तकनीकी साझेदारियों से उत्पन्न वृद्धि से लाभ मिलेगा तो वहीं अमेरिका को एक मजबूत और अधिक समृद्ध भारत से लाभ पहुंचेगा। इसके फलस्वरूप, क्षेत्र और दुनिया हमारी मित्रता से उत्पन्न व्यापक स्थिरता और सुरक्षा से लाभांवित होगी। हम दक्षिण एशिया को एकीकृत बनाने के व्यापक प्रयासों के साथ-साथ इसे मध्य और दक्षिण पूर्व एशिया के लोगों और इसके बाजारों से जोड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

वैश्विक साझेदार के रूप में हम आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष और कानून प्रवर्तन सहयोग के माध्यम से गुप्तचर सूचनाओं के आदान-प्रदान के द्वारा अपने देशों की सुरक्षा बढ़ाने, जबकि समुद्री क्षेत्र में नौवहन की स्वतंत्रता और वैध व्यापार को बनाए रखने के लिए भी हम संयुक्त रूप से कार्य करने को प्रतिबद्ध हैं। हमारे स्वास्थ्य सहयोग से हमें सबसे मुश्किल चुनौतियों जैसे इबोला के प्रसार, कैंसर इलाज के अनुसंधान अथवा तपेदिक, मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियों से निपटने में सफलता पाने में मदद मिलेगी। हम महिला सशक्तिकरण, क्षमता संवर्धन और अफगानिस्तान व अफ्रीका में खाद्य सुरक्षा के लिए एक साथ काम करने की अपनी हाल की परंपरा का विस्तार करने के भी इच्छुक है।

अंतरिक्ष का अन्वेषण हमारी कल्पना शक्ति को मूर्त रूप देने और हमारी महत्वाकांक्षाओं को बढ़ाने के लिए चुनौती के रूप में जारी रहेगा। मंगल की परिक्रमा करते हम दोनों देशों के उपग्रह अपनी कहानी कहते हैं। एक बेहतर कल का वादा भारतीयों और अमेरिकी लोगों के लिए ही नहीं है, बल्कि यह एक बेहतर दुनिया की दिशा में कदम बढ़ाने का संकेत देता है। यह 21वीं सदी के लिए हमारी निर्धारित साझेदारी का मुख्य आधार है। हम इस दिशा में चलें साथ-साथ।

कर्मचारी भविष्य निधि की योजना : अब मिलेगा न्यूनतम एक हजार रुपये पेंशन / EPF Scheme : Minimum Pension One Thousand bucks


-शीतांशु कुमार सहाय
केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री उपेन्द्र प्रसाद कुशवाहा ने झारखंड की राजधानी राँची में कर्मचारी भविष्य निधि संगठन द्वारा न्यूनतम एक हजार रुपये पेंशन योजना की शुरुआत की। ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव इनडोर स्टेडियम में आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने हमेशा कर्मचारियों के हित को महŸव दिया है। उन्होंने कहा कि भविष्य निधि योजना एक महŸवाकांक्षी योजना है। इससे ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को लाभ लेना चाहिये। भविष्य निधि योजना में अधिकतम लोगों को शामिल किया जाये, इसके लिए अनिवार्य अंशदान की वेतन सीमा 6500 रुपये से बढ़ाकर 15 हजार रुपये कर दी गयी है। उन्होंने कहा कि अनुमान किया जा रहा है कि इस वृद्धि से भविष्य निधि से 50 लाख नये कर्मचारी जुड़ेंगे।
मौके पर उपस्थित झारखंड के श्रम मंत्री केएन त्रिपाठी ने भी कहा कि कर्मियों को भविष्य निधि का लाभ उठाना चाहिये। मौके पर बड़ी संख्या में उपस्थित पेंशनरों को उपहार और प्रमाण पत्र दिये गये। अब इन्हें एक हजार रुपये न्यूनतम पेंशन राशि मिलेगी। अभी तक इन सभी को पेंशन के रूप में बहुत कम राशि मिलती थी। क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त समरेन्द्र कुमार ने राँची क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा किये गये कार्यों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि वर्तमान वर्ष में 20345 दावे निपटाये गये। इसके तहत 85.47 करोड़ रुपये का भुगतान लाभुकों को किया गया। शिकायतों का निपटारा 7 दिनों में करने की व्यवस्था की गयी है।

रविवार, 28 सितंबर 2014

संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के 69वें सत्र की आम बहस में नरेंद्र मोदी के भाषण की 5 गलतियाँ / The United Nations General Assembly (UNGA) at the General Debate of the 69th Session of the Speech of Narendra Modi 5 Mistakes



भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संयुक्त राष्ट्र महासभा के 69वें सत्र की आम बहस में भाषण को लेकर भारत में काफी उत्सुकता थी। अपनी भाषण शैली के लिए मशहूर मोदी संयुक्त राष्ट्र महासभा में लड़खड़ाते हुए भी नजर आए। करीब 12 साल बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में भाषण दिया गया। नरेंद्र मोदी के भाषण में उच्चारण और कई अन्य तरह की गतलियाँ सामने आईं। नरेंद्र मोदी के भाषण की 5 गलतियाँ---
पहली गलती...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाषण की शुरुआत में ही संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष के नाम का गलत उच्चारण किया। उन्होंने सैम कुटेसा (Sam Kutesa) को सैम कुरेसा बोल दिया। 
दूसरी गलती...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महासभा में भाषण के दौरान 69वें सत्र का जिक्र किया तो अंग्रेजी और हिंदी मिलाकर बोल गए। उन्होंने 69वें सत्र को 'सिक्सटी नाइंथवें' सत्र कहकर महासभा को संबोधित किया।  
तीसरी गलती...
मोदी ने कहा की देश की आबादी का जिक्र करते हुए कहा कि भारत वन प्वाइंट ट्वेंटी फाइव (1.25) बिलियन लोगों का देश है। यानी दशमलव के बाद के अंकों को भी मोदी एक साथ ही पढ़ गए। जबकि यह वन प्वाइंट टू फाइव (1.25) बोला जाता है। इसे बोलने के दौरान मोदी थोड़ा लड़खड़ाते हुए भी दिखे।
चौथी गलती...
मोदी भाषण के दौरान कई शब्दों के उच्चारण में गलती करते हुए भी नजर आए। 'प्रकृति' को उन्होंने दो बार 'प्रकुर्ति' बोला, 'समुद्र' को 'समिद्र' और 'समृद्धि' को 'समुर्द्धी' कहा। मोदी 'सम्मान' को 'सन्मान' बोल गए।
पाँचवीं गलती...
संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करने के लिए किसी राष्ट्र के प्रतिनिधि को 15 मिनट का समय दिया जाता है लेकिन भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी 35 मिनट तक भाषण देते रहे।

संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के 69वें सत्र की आम बहस में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा दिया गया वक्तव्य / Text of the Statement by Prime Minister Narendra Modi at the General Debate of the 69th Session of the United Nations General Assembly (UNGA)



प्रस्तुति : शीतांशु कुमार सहाय

'' विशिष्‍ट अतिथिगण और मित्रों

सर्वप्रथम मैं संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा के 69वें सत्र के अध्‍यक्ष चुने जाने पर आपको हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं। भारत के प्रधानमंत्री के रूप में पहली बार आप सबको संबोधित करना मेरे लिए अत्‍यंत सम्‍मान की बात है। मैं भारतवासियों की आशाओं एवं अपेक्षाओं से अभिभूत हूं। उसी प्रकार मुझे इस बात का पूरा भान है कि विश्‍व को 1.25 बिलियन लोगों से क्‍या अपेक्षाएं हैं। भारत वह देश है, जहां मानवता का छठवां हिस्‍सा आबाद है। भारत ऐसे व्‍यापक पैमाने पर आर्थिक व सामाजिक बदलाव से गुजर रहा है, जिसका उदाहरण इतिहास में दुर्लभ है।

प्रत्‍येक राष्‍ट्र की, विश्‍व की अवधारणा उसकी सभ्‍यता एवं धार्मिक परंपरा के आधार पर निरूपित होती है। भारत चिरंतन विवेक समस्‍त विश्‍व को एक कुटंब के रूप में देखता है। और जब मैं यह बात कहता हूं तो मैं यह साफ करता हूं कि हर देश की अपनी एक philosophy होती है। मैं ideology के संबंध में नहीं कह रहा हूं। और देश उस फिलोस्‍फी की प्रेरणा से आगे बढ़ता है। भारत एक देश है, जिसकी वेदकाल से वसुधैव कुंटुम्‍बकम परंपरा रही है। भारत एक देश है, जहां प्रकृति के साथ संवाद, प्रकृति के साथ कभी संघर्ष नहीं ये भारत के जीवन का हिस्‍सा है और इसका कारण उस philosophy के तहत, भारत उस जीवन दर्शन के तहत, आगे बढ़ता रहता है। प्रत्‍येक राष्‍ट्र की, विश्‍व अवधारणा उसकी सभ्‍यता और उसकी दार्शनिक परंपरा के आधार पर निरूपित होती है। भारत का चिरंतन विवेक समस्‍त विश्‍व को, जैसा मैंने कहा - वसुधैव कुटुंबमकम - एक कुटुम्‍ब के रूप में देखता है। भारत एक ऐसा राष्‍ट्र है, जो केवल अपने लिए नहीं, बल्कि विश्‍व पर्यंत न्‍याय, गरिमा, अवसर और समृद्धि के हक में आवाज उठाता रहा है। अपनी विचारधारा के कारण हमारा multi-literalism में दृढ़ विश्‍वास है।

आज यहां खड़े होकर मैं इस महासभा पर एक टिकी हुई आशाओं एवं अपेक्षाओं के प्रति पूर्णतया सजग हूं। जिस पवित्र विश्‍वास ने हमें एकजुट किया है, मैं उससे अत्‍यंत प्रभावित हूं। बड़े महान सिद्धांतों और दृष्टिकोण के आधार पर हमने इस संस्‍था की स्‍थापना की थी। इस विश्‍वास के आधार पर कि अगर हमारे भविष्‍य जुड़े हुए हैं तो शांति, सुरक्षा, मानवाधिकार और वैश्विक आर्थिक विकास के लिए हमें साथ मिल कर काम करना होगा। तब हम 51 देश थे और आज 193 देश के झंडे इस बिल्डिंग पर लहरा रहे हैं। हर नया देश इसी विश्‍वास और उम्‍मीद के आधार पर यहां प्रवेश करता है। हम पिछले 7 दशकों में बहुत कुछ हासिल कर सके हैं। कई लड़ाइयों को समाप्‍त किया है। शांति कायम रखी है। कई जगह आर्थिक विकास में मदद की है। गरीब बच्‍चों के भविष्‍य को बनाने में मदद दी है। भुखमरी हटाने में योगदान दिया है। और इस धरती को बचाने के लिए भी हम सब सा‍थ मिल कर के जुटे हुए हैं।

69 UN Peacekeeping मिशन में विश्‍व में blue helmet को शांति के एक रंग की एक पहचान दी है। आज समस्‍त विश्‍व में लोकतंत्र की एक लहर है।

अफगानिस्‍तान में शांतिपूर्वक राजनीतिक परिवर्तन यह भी दिखलाता है कि अफगान जनता की शां‍ति की कामना हिंसा पर विजय अवश्‍य पाएगी। नेपाल युद्ध से शांति और लोकतंत्र की ओर आगे बढ़ा है। भूटान के नए लोकतंत्र में एक नई ताकत नजर आ रही है। पश्चिम एशिया एवं उत्‍तर अफ्रीका में लोकतंत्र के पक्ष में आवाज उठाए जाने के प्रयास हो रहे हैं। Tunisia की सफलता दिखा रही है कि लोकतंत्र की ये यात्रा संभव है।

अफ्रीका में स्थिरता, शांति और प्रगति हेतु एक नई ऊर्जा एवं जागृति दिखायी दे रही है।

हमें एशिया और उसके पूरे अभूतपूर्व समृद्धि का अभ्‍युदय देखा है। जिसके आधार में शांति एवं स्थिरता की शक्ति समाहित है। अपार संभावनाओं से समृद्ध महादेश लैटिन अमेरिका स्थिरता एवं समृद्धि के साझा प्रयास में एकजुट हो रहा है। यह महादेश विश्‍व समुदायों के लिए एक महत्‍वपूर्ण आधार स्‍तंभ सिद्ध हो सकता है।

भारत अपनी प्रगति के लिए एक शांतिपूर्ण एवं स्थिर अंतरराष्‍ट्रीय वातावरण की अपेक्षा करता है। हमारा भविष्‍य हमारे पड़ोस से जुड़ा हुआ है। इसी कारण मेरी सरकार ने पहले ही दिन से पड़ोसी देशों से मित्रता और सहयोग बढ़ाने पर पूरी प्राथमिकता दी है। और पाकिस्‍तान के प्रति भी मेरी यही नीति है। मैं पाकिस्‍तान से मित्रता और सहयोग बढ़ाने के लिए गंभीरता से शांतिपूर्ण वातवारण में बिना आतंक के साये के साथ द्विपक्षीय वार्ता करना चाहते हैं।लेकिन पाकिस्‍तान का भी यह दायित्‍व है कि उपयुक्‍त वातावरण बनाये और गंभीरता से द्विपक्षीय बातचीत के लिए सामने आये।

इसी मंच पर बात उठाने से समाधान के प्रयास कितने सफल होंगे, इस पर कइयों को शक है। आज हमें बाढ़ से पीडि़त कश्‍मीर में लोगों की सहायता देने पर ध्‍यान देना चाहिए, जो हमने भारत में बड़े पैमाने पर आयोजित किया है। इसके लिए सिर्फ भारत में कश्‍मीर, उसी का ख्‍याल रखने पर रूके नहीं हैं, हमने पाकिस्‍तान को भी कहा, क्‍योंकि उसके क्षेत्र में भी बाढ़ का असर था। हमने उनको कहा कि जिस प्रकार से हम कश्‍मीर में बाढ़ पीडि़तों की सेवा कर रहे हैं, हम पाकिस्‍तान में भी उन बाढ़ पीडि़तों की सेवा करने के लिए हमने सामने से प्रस्‍ताव रखा था।

हम विकासशील विश्‍व का हिस्‍सा हैं, लेकिन हम अपने सीमित संसाधनों को उन सभी के सा‍थ साझा करने की छूट दें,जिन्‍हें इनकी नितांत आवश्‍यकता है।

दूसरी ओर आज विश्‍व बड़े स्‍तर के तनाव और उथल-पुथल की स्थितियों से गुजर रहा है। बड़े युद्ध नहीं हो रहे हैं, परंतु तनाव एवं संघर्ष भरपूर नजर आ रहा है, बहुतेरे हैं, शांति का अभाव है तथा भविष्‍य के प्रति अनिश्चितता है। आज भी व्‍यापक रूप से गरीबी फैली हुई है। एक होता हुआ एशिया प्रशांत क्षेत्र अभी भी समुद्र में अपनी सुरक्षा, जो कि इसके भविष्‍य के लिए आधारभूत महत्‍व रखती है, को लेकर बहुत चिंतित है।

यूरोप के सम्‍मुख नए वीजा विभाजन का खतरा मंडरा रहा है। पश्चिम एशिया में विभाजक रेखाएं और आतंकवाद बढ़ रहे हैं। हमारे अपने क्षेत्र में आतंकवादी स्थिरतावादी खतरे से जूझना जारी है। हम पिछले चार दशक से इस संकट को झेल रहे हैं। आतंकवाद चार नए नए रूप और नाम से प्रकट होता जा रहा है। इसके खतरे से छोटा या बड़ा, उत्‍तर में हो या दक्षिण में, पूरब में हो या पश्चिम में, कोई भी देश मुक्‍त नहीं है।

मुझे याद है, जब मैं 20 साल पहले विश्‍व के कुछ नेताओं से मिलता था और आतंकवाद की चर्चा करता था, तो उनके यह बात गले नहीं उतरती थी। वह कहते थे कि यह law and order problem है। लेकिन आज धीरे धीरे आज पूरा विश्‍व देख रहा है कि आज आतंकवाद किस प्रकार के फैलाव को पाता चला जा रहा है। परंतु क्‍या हम वाकई इन ताकतों से निपटने के लिए सम्मि‍लित रूप से ठोस अंतरराष्ट्रीय प्रयास कर रहे हैं और मैं मानता हूं कि यह सवाल बहुत गंभीर है। आज भी कई देश आतंकवादियों को अपने क्षेत्र में पनाह दे रहे हैं और आतंकवादियों को अपनी नीति का उपकरण मानते हैं और जब good terrorism and bad terrorism , ये बातें सुनने को मिलती है, तब तो आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की हमारी निष्‍ठाओं पर भी सवालिया निशान खड़े होते हैं।

पश्‍चिम एशिया में आतंकवाद पाश्विकता की वापसी तथा दूर एवं पास के क्षेत्र पर इसके प्रभाव को ध्‍यान में रखते हुए सम्मिलित कार्रवाई का स्‍वागत करते हैं। परंतु इसमें क्षेत्र के सभी देशों की भागीदारी और समर्थन अनिवार्य है। अगर हम terrorism से लड़ना चाहते हैं तो क्‍यों न सबकी भागीदारी हो, क्‍यों न सबका साथ हो और क्‍यों न उस बात पर आग्रह भी किया जाए। sea, space एवं cyber space साझा समृद्धि के साथ –साथ संघर्ष के रंगमंच भी बने हैं। जो समुद्र हमें जोड़ता था, उसी समुद्र से आज टकराव की खबरें शुरू हो रही हैं। जो स्‍पेस हमारी सिद्धियों का एक अवसर बनता था, जो सायबर हमें जोड़ता था, आज इन महत्‍वपूर्ण क्षेत्रों में नए संकट नजर आ रहे हैं।

उस अंतरराष्‍ट्रीय एकजुटता की, जिसके आधार पर संयुक्‍त राष्‍ट्र की स्‍थापना हुई, जितनी आवश्‍यकता आज है, उतनी पहले कभी नहीं थी। आज अब हम interdependence world कहते हैं तो क्‍या हमारी आपसी एकता बढ़ी है। हमें सोचने की जरूरत है। क्‍या कारण है कि UN जैसा इतना अच्‍छा प्‍लेटफार्म हमारे पास होने के बाद भी अनेक जी समूह बनाते चले गए हम। कभी G 4 होगा, कभी G 7 होगा, कभी G 20 होगा। हम बदलते रहते हैं और हम चाहें या न चाहें, हम भी उन समूहों में जुड़े हैं। भारत भी उसमें जुड़ा है।

लेकिन क्‍या आवश्‍यकता नहीं है कि हम G 1 से आगे बढ़ कर के G-All की तरफ कदम उठाएं। और जब UN अपने 70 वर्ष मनाने जा रहा है, तब ये G-All का atmosphere कैसे बनेगा। फिर एक बार यही मंच हमारी समस्‍याओं के समाधान का अवसर कैसे बन सके। इसकी विश्‍वसनीयता कैसे बढ़े, इसका सामर्थ्‍य कैसे बढ़े, तभी जा कर के यहां हम संयुक्‍त बात करते हैं। लेकिन टुकड़ों में बिखर जाते हैं, उसमें हम बच सकते हैं, एक तरफ तो हम यह कहते हैं कि हमारी नीतियां परस्‍पर जुड़ी हुई हैं और दूसरी तरफ हम जीरो संघ के नजरिये से सोचते हैं। अगर उसे लाभ होता है तो मेरी हानि होती है, कौन किसके लाभ में है, कौन किसके हानि में है, यह भी मानदंड के आधार पर हम आगे बढ़ते हैं।

निराशावादी या आलोचनावादी की तरह कुछ भी नहीं बदलने वाला है। एक बहुत बड़ा वर्ग है, जिसके मन में है कि छोड़ो यार, कुछ नहीं बदलने वाला है, अब कुछ होने वाला नहीं है। ये जो निराशावादी और आलोचनावादी माहौल है, यह कहना आसान है। परंतु अगर हम ऐसा करते हैं तो हम अपनी जिम्‍मेदारियों से भागने का जोखिम उठा रहे हैं। हम अपने सामूहिक भविष्‍य को खतरे में डाल रहे हैं। आइए, हम अपने समय की मांग के अनुरूप अपने आप को ढालें। हम वक्‍त की शांति के लिए कार्य करें।

कोई एक देश या कुछ देशों का समूह विश्‍व की धारा को तय नहीं कर सकता है। वास्‍तविक अन्‍तरराज्‍यीय होना, यह समय की मांग है और यह अनिवार्य है। हमें देशों के बीच सार्थक संवाद एवं सहयोग सुनिश्चित करना है। हमारे प्रयासों का प्रारंभ यहीं संयुक्‍त राष्‍ट्र में होना चाहिए। संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार लाना, इसे अधिक जनतांत्रिक और भागीदारी परक बनाना हमारे लिए अनिवार्य है।

20वीं सदी की अनिवार्यताओं को प्रतिविदित करने वाली संस्‍थाएं 21वीं सदी में प्रभावी सिद्ध नहीं होंगी। इनके सम्‍मुख अप्रासंगिक होने का खतरा प्रस्तुत होगा, और भी आग्रह से कहना चाहता हूं कि पिछली शताब्‍दी के आवश्‍यकताओं के अनुसार जिन बातों पर हमने बल दिया, जिन नीति-नियमों का निर्धारण किया वह अभी प्रासंगिक नहीं है। 21वीं सदी में विश्‍व काफी बदल चुका है, बदल रहा है और बदलने की गति भी बड़ी तेज है। ऐसे समय यह अनिवार्य हो जाता है कि समय के साथ हम अपने आप को ढालें। हम परिवर्तन करें, हम नए विचारों पर बल दें। अगर ये हम कर पायेंगे तभी जाकर के हमारा relevance रहेगा। हमें अपने सभी मतभेदों को दरकिनार कर आतंकवाद से लड़ने के लिए सम्मिलित अंतरराष्‍ट्रीय प्रयास करना चाहिए।

मैं आपसे यह अनुरोध करता हूं कि इस प्रयास के प्रतीक के रूप में आप comprehensive convention on international terrorism को पारित करें। यह बहुत लंबे अरसे से pending mark है। इस पर बल देने की आवश्‍यकता है। terrorism के खिलाफ लड़ने की हमारी ताकत का वो एक परिचायक होगा और इसे हमारा देश, जो terrorism से इतने संकटों से गुजरा है, उसको समय लगता है कि जब तक वे इसमें initiative नहीं लेता है, और जब तक हम comprehensive convention on international terrorism को पारित नहीं करते हैं, हम वो विश्‍वास नहीं दिला सकते हैं। और इसलिए, फिर एक बार भारत की तरफ से इस सम्‍माननीय सभा के समक्ष बहुत आग्रहपूर्वक मैं अपनी बात बताना चाहता हूं। हमें outer space और cyber space में शांति, स्थिरता एवं व्‍यवस्‍था सुनिश्चित करनी होगी। हमें मिलजुल कर काम करते हुए यह सुनिश्चित करना है कि सभी देश अंतरराष्‍ट्रीय नियमों, मानदंडों का पालन करें। हमें UN Peace Keeping के पुनित कार्यों को पूरी शक्ति प्रदान करनी चाहिए।

जो देश अपनी सैन्‍य टुकडि़यों को योगदान करते हैं, उन्‍हें निर्णय प्रक्रिया में शामिल करना चाहिए। निर्णय प्रक्रिया में शामिल करने से उनका हौसला बुलंद होगा। वो बहुत बड़ी मात्रा में त्‍याग करने को तैयार है; बलिदान देने को तैयार है, अपनी शक्ति और समय खर्च करने को तैयार हैं, लेकिन अगर हम उन्‍हें ही निर्णय प्रक्रिया से बाहर रखेंगे तो कब तक हम UN Peace Keeping फोर्स को प्राणवान बना सकते हैं, ताकतवर बना सकते हैं। इस पर गंभीरता से सोचने की आवश्‍यकता है।

आइए, हर सार्वभौमिक वैश्विक रिसेसिकरण एवं प्रसार हेतू अपने प्रयासों में दोगुनी शक्ति लगाएं। अपेक्षाकृ‍त अधिक स्थिर तथा समावेशी विकास हेतू निरंतर प्रयासरत रहें। वैश्विकरण ने विकास के नए ध्रुवों, नए उद्योगों और रोजगार के नए स्रोतों को जन्‍म दिया है। लेकिन साथ ही अरबों लोग गरीबी और अभाव के अर्द्धकगार पर जी रहे हैं। कई देश ऐेसे हैं, जो विश्‍वव्‍यापी आर्थिक तूफान के प्रभाव से बड़ी मुश्किल से बच पा रहे हैं। लेकिन इन सब में बदलाव लाना जितना मुमकिन आज लग रहा है, उतना पहले कभी नहीं लगता था।

Technology ने बहुत कुछ संभव कर दिखाया है। इसे मुहैया करने में होने वाले खर्च में भी काफी कमी आई है। यदि आप सारी दुनिया में Facebook और Twitter के प्रसार की गति के बारे में, सेलफोन के प्रसार की गति के बारे में सोचते हैं तो आपको यह विश्‍वास करना चाहिए कि विकास और सशक्तिकरण का प्रसार भी कितनी तेज गति से संभव है।

जाहिर है, प्रत्‍येक देश को अपने राष्‍ट्रीय उपाय करने होंगे, प्रगति व विकास को बल देने हेतु प्रत्‍येक सरकार को अपनी जिम्‍मेदारी निभानी होगी। साथ ही हमारे लिए एक स्‍तर पर एक सार्थक अंतर्राष्‍ट्रीय भागीदारी की आवश्‍यकता है, जिसका अर्थ हुआ, नीतियों को आप बेहतर समन्‍वय करें ताकि हमारे प्रयत्‍न, परस्‍पर संयोग को बढ़ावा दे तथा दूसरे को क्षति न पहुंचाये। ये उसकी पहली शर्त है कि दूसरे को क्षति न पहुंचाएं। इसका यह भी अर्थ है कि जब हम अंतरराष्‍ट्रीय व्‍यापारिक संबंधों की रचना करते हैं तो हमें एक दूसरे की चिंताओं व हितों का ध्‍यान रखना चाहिए।

जब हम विश्‍व के अभाव के स्‍तर के विषय में सोचते हैं, आज basic sanitation 2.5 बिलियन लोगों के पहुंच के बाहर है। आज 1.3 बिलियन लोगों को बिजली उपलब्‍ध नहीं है और आज 1.1 बिलियन लोगों को पीने का शुद्ध पानी उपलब्‍ध नहीं है। तब स्‍पष्‍ट होता है कि अधिक व्‍यापक व संगठित रूप से अंतरराष्‍ट्रीय कार्यवाही करने की प्रबल आवश्‍यकता है। हम केवल आर्थिक वृद्धि के लिए इंतजार नहीं कर सकते। भारत में मेरे विकास का एजेंडा के सबसे महत्‍वपूर्ण पहलू इन्‍हीं मुद्दों पर केंद्रित हैं।

मैं यह मानता हूं कि हमें post 2015 development agenda में इन्‍हीं बातों को केन्‍द्र में रखना चाहिए और उन पर ध्‍यान देना चाहिए। रहने लायक तथा टिकाऊ sustainable विश्‍व की कामना के साथ हम काम करें। इन मुद्दों पर ढेर सारे विवाद एवं दस्‍तावेज उपलब्‍ध हैं। लेकिन हम अपने चारों ओर ऐसी कई चीजें देखते हैं, जिनके कारण हमें चिंतित व आगाह हो जाना चाहिए। ऐसी भी चीजें हैं जिन्‍हें देखने से हम चिंतित होते जा रहे हैं। जंगल, पशु-पक्षी, निर्मल नदियां, जज़ीरे और नीला आसमान।

मैं तीन बातें कहना चाहूंगा, पहली बात, हमें चुनौतियों से निपटने के लिए अपनी जिम्‍मेदारियों को निभाने में ईमानदारी बरतनी चाहिए। विश्‍व समुदाय ने सामूहिक कार्यवाही के सुंदर संतुलन को स्‍वीकारा है, जिसका स्‍वरूप common व differentiated responsibilities । इसे सतत कार्यवाही का आधार बनाना होगा। इसका यह भी अर्थ है कि विकसित देशों को funding और technology transfer की अपनी प्रतिबद्धता को अवश्‍य पूरा करना चाहिए।

दूसरी बात, राष्‍ट्रीय कार्यवाही अनिवार्य है। टेक्‍नोलोजी ने बहुत कुछ संभव कर दिया है, जैसे नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकी। आवश्‍यकता है तो सृजनशीलता व प्रतिबद्धता की। भारत अपनी टेक्‍नोलोजी क्षमता को साझा करने के लिए तैयार है। जैसा कि हमने हाल ही में सार्क देशों के लिए एक नि:शुल्‍क उपग्रह बनाने की घोषणा की है।

तीसरी बात हमें अपनी जीवनशैली बदलने की आवश्‍यकता है। जिस ऊर्जा का उपयोग न हुआ हो, वह सबसे साफ ऊर्जा है। इससे आर्थिक नुकसान नहीं होगा। अर्थव्‍यवस्‍था को एक नई दिशा मिलेगी।

हमारे भारतवर्ष में प्रकृति के प्रति आदरभाव अध्‍यात्‍म का अभिन्‍न अंग है। हम प्रकृति की देन को पवित्र मानते हैं और मैं आज एक और विषय पर भी ध्‍यान आकर्षित करना चाहता हूं कि हम climate change की बात करते हैं। हम होलिस्टिक हेल्‍थ केयर की बात करते हैं। जब हम back to basic की बात करते हैं तब मैं उस विषय पर विशेष रूप से आप से एक बात कहना चाहता हूं। योग हमारी पुरातन पारम्‍परिक अमूल्‍य देन है। योग मन व शरीर, विचार व कर्म, संयम व उपलब्धि की एकात्‍मकता का तथा मानव व प्रकृति के बीच सामंजस्‍य का मूर्त रूप है। यह स्‍वास्‍थ्‍य व कल्‍याण का समग्र दृष्टिकोण है। योग केवल व्‍यायाम भर न होकर अपने आप से तथा विश्व व प्रकृति के साथ तादम्‍य को प्राप्त करने का माध्यम है। यह हमारी जीवन शैली में परिवर्तन लाकर तथा हम में जागरूकता उत्पन्न करके जलवायु परिवर्तन से लड़ने में सहायक हो सकता है। आइए हम एक ‘’अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’’ को आरंभ करने की दिशा में कार्य करें। अंतत: हम सब एक ऐतिहासिक क्षण से गुजर रहे हैं। प्रत्येक युग अपनी विशेषताओं से परिभाषित होता है। प्रत्येक पीढी इस बात से याद की जाती है कि उसने अपनी चुनौतियों का किस प्रकार सामना किया। अब हमारे सम्मुख चुनौतियों के सामने खड़े होने की जिम्मेदारी है। अगले वर्ष हम 70 वर्ष के हो जाएंगे। हमें अपने आप से पूछना होगा कि क्या हम तब तक प्रतीक्षा करें तब हम 80 या 100 के हो जाएं। मैं मानता हूं कि UN के लिए अगला साल एक opportunity है। जब हम 70 साल की यात्रा के बाद लेखाजोखा लें, कहां से निकले थे, क्यूं निकले थे, क्या मकसद था, क्या रास्ता था, कहां पहुंचे हैं, कहां पहुंचना है।

21 सदी के कौन से प्रकार हैं, कौन से challenges हैं, उन सबको ध्यान में रखते हुए पूरा एक साल व्यापक विचार मंथन हो। हम universities को जोडें, नई generation को जोड़ें जो हमारे कार्यकाल का विगत से मूल्यांकन करे, उसका अध्ययन करे और हमें वो भी अपने विचार दें। हम नई पीढ़ी को हमारी नई यात्रा के लिए कैसे जोड़ सकते हैं और इसलिए मैं कहता हूं कि 70 साल अपने आप में एक बहुत बड़ा अवसर है। इस अवसर का उपयोग करें और उसे उपयोग करके एक नई चेतना के साथ नई प्राणशक्ति के साथ, नए उमंग और उत्साह के साथ, आपस में एक नए विश्वास साथ हम UN की यात्रा को हम नया रूप रंग दें। इस लिए मैं समझता हूं कि ये 70 वर्ष हमारे लिए बहुत बड़ा अवसर है।

आइए, हम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार लाने के अपने वादे को निभाएं। यह बात लंबे अरसे से चल रही है लेकिन वादों को निभाने का सामर्थ्‍य हम खो चुके हैं। मैं आज फिर से आग्रह करता हूं कि आज इस विषय में गंभीरता से सोचें। आइए, हम अपने Post 2015 development agenda के लिए अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करें।

आइए 2015 को हम विश्व की प्रगति प्रवाह को एक नया मोड़ देने वाले एक वर्ष के रूप में हम अविस्मरणीय बनायें और 2015 एक नितांत नई यात्रा के प्रस्थान बिंदु के रूप में मानव इतिहास में दर्ज हो। यह हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है। मुझे विश्वास है कि सामूहिक जिम्मेदारी को हम पूरी तरह निभाएंगे।

आप सबका बहुत बहुत आभार।

धन्यवाद। नमस्ते। ''