सोमवार, 13 जनवरी 2014

स्वामी विवेकानन्द : देने का आनंद / SWAMI VIVEKANAND : GIVING GLADNESS

-शीतांशु कुमार सहाय / Sheetanshu Kumar Sahay
12 जनवरी 2014 को स्वामी विवेकानन्द की 151वाँ जन्मोत्सव पूरे विश्व में मनाया गया। उनकी जयन्ती के अवसर पर भारत में ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ मनाया जाता है। करोड़ों युवाओं ने उनके आदर्शों को अपनाने का संकल्प लिया, अगर आपने नहीं लिया तो आज ले लीजिये।
एक बार की बात है कि भ्रमण व भाषणों से थके हुए स्वामी विवेकानंद अपने निवास स्थान पर लौटे। उन दिनों वे अमेरिका में एक महिला के यहां ठहरे हुए थे। वे अपने हाथों से भोजन बनाते थे। एक दिन वे भोजन की तैयारी कर रहे थे कि कुछ बच्चे पास आकर खड़े हो गए। उनके पास सामान्यतया बच्चों का आना-जाना लगा ही रहता था। बच्चे भूखे थे। स्वामीजी ने अपनी सारी रोटियां एक-एक कर बच्चों में बांट दी। महिला वहीं बैठी सब देख रही थी। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। आखिर उससे रहा नहीं गया और उसने स्वामीजी से पूछ ही लिया- 'आपने सारी रोटियां उन बच्चों को दे डाली, अब आप क्या खाएंगे?' स्वामीजी के अधरों पर मुस्कान दौड़ गई। उन्होंने प्रसन्न होकर कहा- 'मां, रोटी तो पेट की ज्वाला शांत करने वाली वस्तु है। इस पेट में न सही, उस पेट में ही सही।' देने का आनंद पाने के आनंद से बड़ा होता है।

अज्ञानता से दुख

स्वामी विवेकानंद ने कहा-- ''शक्ति की वजह से ही हम जीवन में ज्यादा पाने की चेष्टा करते हैं। इसी की वजह से हम पाप कर बैठते हैं और दुख को आमंत्रित करते हैं। पाप और दुख का कारण कमजोरी होता है। कमजोरी से अज्ञानता आती है और अज्ञानता से दुख।''

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