गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

भारत में राजनीतिक दलों की कमाई : काँग्रेस के पास सवा पाँच अरब व भाजपा के पास सवा चार अरब / INCOME OF INDIAN POLITICAL PARTIES : CONGRESS HAS ABOVE 500 CRORE & BJP HAS ABOVE 400 CRORE PUPEES


-शीतांशु कुमार सहाय
भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों की आमदनी में कोई कमी नहीं है। ये सभी दल अपनी आमदनी के स्रोत नहीं बतातीं। अपने को निर्धनों की रहनुमा कहने वाली माकपा व भाकपा जैसी साम्यवादी दल भी आय का स्रोत छिपाकर ही रखी हैं। विगत वर्ष 2013 में काँग्रेस व भाजपा ने मिलकर संसद से एक विधेयक पारित करवा दिया जिसके आधार पर राजनीतिक दल सूचना का अधिकार कानून के तहत नहीं आयेंगे। यों काला धन लेने का रास्ता दलों ने साफ कर लिया है। ऐसे में कोई उनसे प्राप्त धन का स्रोत पूछ ही नहीं सकता।
1. काँग्रेस की कुल संपत्त‍ि 512.96 करोड़ रुपये की--- 2011-12 में कुल संपत्त‍ि 512.96 करोड़ रुपये, आमदनी 380.63 करोड़ रुपये, खर्च 380.63 करोड़, 2010-11 में कुल संपत्त‍ि 497.82 करोड़ रुपये थी।
2. भाजपा की कुल संपत्त‍ि 414.25 करोड़ रुपये की--- 2011-12 में कुल संपत्त‍ि 414.25 करोड़ रुपये, आमदनी 380.63 करोड़ रुपये, खर्च 380.63 करोड़ रुपये, 2010-11 में कुल संपत्त‍ि 497.82 करोड़ रुपये थी।
3. बसपा की कुल संपत्त‍ि 397.35 करोड़ रुपये, आमदनी 9.01 करोड़ रुपये, खर्च 109.25 करोड़ रुपये, 2010-11 में कुल संपत्त‍ि 423.40 करोड़ रुपये थी।
4. सीपीआई की कुल संपत्त‍ि 8.66 करोड़ रुपये--- 2011-12 में सीपीआई की संपत्त‍ि 8.66 करोड़ रुपये, आमदनी 1.67 करोड़ रुपये, खर्च 1.67 करोड़ रुपये, 2010-11 में पार्टी की संपत्त‍ि 8.56 करोड़ रुपये थी।
5. एनसीपी की कुल संपत्त‍ि 12.92 करोड़ रुपये--- 2011-12 में एनसीपी की कुल संपत्त‍ि 12.92 करोड़ रुपये, आमदनी 40.82 करोड़ रुपये, खर्च 40.82 करोड़ रुपये, 2010-11 में पार्टी की संपत्त‍ि 12.32 करोड़ रुपये थी।
6. सीपीआईएम की कुल संपत्त‍ि 265.38 करोड़ रुपये--- 2011-12 में आमदनी 103.84 करोड़ रुपये, खर्च 103.84 करोड़ रुपये, 2010-11 में पार्टी की कुल संपत्त‍ि 204.10 करोड़ रुपये थी।
7. तृणमूल काँग्रेस की कुल संपत्त‍ि 10.51 करोड़ रुपये--- 2011-12 में आमदनी 10.56 करोड़ रुपये, खर्च 10.56 करोड़ रुपये, 2010-11 में पार्टी की कुल संपत्त‍ि 6.10 करोड़ रुपये थी।
8. जदयू की कुल संपत्त‍ि 8.41 करोड़ रुपये--- 2011-12 में आमदनी 4.29 करोड़ रुपये, खर्च 4.29 करोड़ रुपये, 2010-11 में संपत्त‍ि 5.71 करोड़ रुपये थी।
9. सपा की कुल संपत्त‍ि 212.86 करोड़ रुपये--- 2011-12 में कुल आमदनी 52.87 करोड़ रुपये, खर्च 52.87 करोड़ रुपये, 2010-11 में पार्टी की कुल संपत्त‍ि 182.85 करोड़ रुपये थी।

बिहार में बना दुनियां का सबसे लंबा वाई-फाई ज़ोन / LARGEST WI-FI AREA IN THE WORLD AT THE CAPITAL OF BIHAR IN INDIA


-शीतांशु कुमार सहाय
दुनियां में भले ही आईटी के लिए भारत के बंगलूरु शहर का नाम मशहूर हो लेकिन अब दुनिया में सबसे बड़े वाईफाई नेटर्वक के लिए बिहार का पटना शहर जाना जाएगा। बिहार के पटना शहर में अशोक राजपथ से लेकर एनआईटी पटना तक अपने फोन का इंटरनेट डेटा प्रयोग करने की कोई जरूरत नहीं क्‍योंकि ये 20 किलोमीटर के सफर में फ्री वाई-फाई का इस्‍तेमाल कर सकते हैं। बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने ई-बिहार समिट के दौरान राज्‍य में 20 किलोमीटर फ्री वाईफाई जोन का उद्घाटन किया जिसके बाद ये दुनियां का सबसे लम्‍बा वाई-फाई जोन बन गया है।
एनआईटी पटना


बिहार के बारे में अक्‍सर यही कहा जाता है कि ये भारत का सबसे गरीब और पिछड़ा राज्‍य है लेकिन दुनियां के नक्‍शे में अब बिहार का नाम सबसे लम्‍बे वाईफाई ज़ोन के लिए जाना जाएगा। इसके अलावा समिट में पटना शहर निगरानी और डॉयल 100 जैसी कई दूसरी सेवाओं का भी उद्घाटन किया गया जिसकी मदद से पटना में महत्‍वपूर्ण जगहों पर 100 से अधिक सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएंगे। इसके लिए एक डेटा सेंटर भी बनाया जाएगा जहां पर इन सभी कैमरों की रिकार्डिंग सेव होगी। समिट में मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने 200 एकड़ जमीन पर आईटी सिटी बनाने की घोषणा भी की जिसके लिए सरकार ने मंजूरी भी दे दी है। इससे पहले सबसे लंबा वाईफाई जान चीन का था जिसकी लंबाई 3.5 किलोमीटर है जो अब दूसरे नंबर पर हो गया है।
पटना में फ्री वाई-फाई

वाई-फाई तकनीक
आसान शब्दो में कहने तो वाई-फाई हॉट स्पॉट एक ऐसी तकनीक जिसके द्वारा इंटरनेट नेटवर्क को शेयर कर सकता हैं। वाई-फाई (Wi-Fi) रेडियो तरंगों की मदद से नेटवर्क और इंटरनेट तक पहुँचने की एक युक्ति है। यह वाई-फाई एक्सेस प्वाइंट के इर्द-गिर्द मौजूद मोबाइल फोनों को वायरलैस इंटरनेट उपलब्ध कराने का काम करता है। इस तकनीक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसकी गति (स्पीड) सामान्य सेवा प्रदाताओं की ओर से दी जाने वाली गति से काफी तेज होती है। यह तकनीक आजकल के नए स्मार्टफोन, लैपटॉप और कंप्यूटर में आसानी से पाई जाती है। एक वायरलेस (बेतार) नेटवर्क बनाने के लिए, एक वायरलेस राउटर की जरूरत पड़ती है।
मोबाइल को वाई-फाई राउटर के रूप इस्तेमाल कर सकते हैं
यूएसबी केबल और ब्लूटूथ के जरिए लैपटॉप और कंप्यूटर पर इंटरनेट चलने की तकनीक अब काफी पुरानी हो चुकी है। जिसमे मोबाइल से लैपटॉप और कंप्यूटर को कनेक्ट कर डायलअप बनाकर इंटरनेट चलाया जाता है। अब इन सारे झंझट को छोड़कर आप मोबाइल फ़ोन को वाई-फाई राउटर के रूप इस्तेमाल कर सकते हैं। फोन को वाई-फाई राउटर में बदलने की तकनीक का नाम वाई-फाई हॉट स्पॉट है। वाई फाई हॉट स्पॉट इंटरनेट चलाने की एक वायरलैस तकनीक है। यह फीचर लगभग सभी एंड्राइड फ़ोन में मौजूद होता है जो मोबाइल नेटवर्क को वाई-फाई प्रोटोकॉल में बदल देता है जिससे फोन के आस-पास का क्षेत्र वाई-फाईड हो जाता है। जहां आप अन्य डिवायस को (जिनमें वाई-फाई सपोर्ट है) इस नेटवर्क से कनेक्ट करके इंटरनेट एक्सेस कर सकते हैं।

मंगलवार, 18 फ़रवरी 2014

तेलंगाना / TELANGANA


-शीतांशु कुमार सहाय
अब तक तेलंगाना आन्ध्र प्रदेश का हिस्सा रहा है। पर, 18 फरवरी 2014 को लोकसभा से तेलंगाना विधेयक के पारित होने से आन्ध्र प्रदेश को बाँटकर तेलंगाना अलग राज्य के गठन का रास्ता पूरी तरह साफ हो गया है। यह भारत का 29वाँ राज्य होगा। इसकी राजधानी हैदराबाद होगी। लोकसभा में आज 18 फरवरी 2014 को तेलंगाना विधेयक के पारित करने के साथ ही तेलंगाना क्षेत्र में जश्न मनाया जा रहा है तो दूसरी ओर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन किरण कुमार रेड्डी अपने पद से इस्तीफा देने की तैयारी में हैं। तेलंगाना का विरोध कर रही वाईएसआर काँग्रेस ने लोकसभा में विधेयक के पारित होने के विरोध में कल बंद का ऐलान किया है। वाईएसआर कांग्रेस के प्रमुख और सांसद जगनमोहन रेड्डी ने दिल्ली में संवाददाताओं से कहा कि इस देश के इतिहास में यह एक काला दिन है। मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी इस्तीरफा देने की तैयारी में हैं।
अब तक आंध्र प्रदेश में मुख्य तौर पर तीन क्षेत्र थे- तेलंगाना, तटीय आंध्र और रायलसीमा। तेलंगाना करीब 114,840 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ क्षेत्र है। 2011 की जनगणना के मुताबिक इस इलाके की आबादी 3, 52, 86,757 है जो आंध्र प्रदेश की कुल आबादी का 41.6 प्रतिशत है। तेलंगाना में 10 जिले आते हैं- हैदराबाद, आदिलाबाद, खम्मम, करीमनगर, महबूबनगर, मेडक, नलगोंडा, निजामाबाद, रंगारेड्डी और वारंगल। हैदराबाद, वारंगल, निजामाबाद और करीमनगर तेलंगाना इलाके के 4 सबसे बड़े शहर हैं। तेलंगाना क्षेत्र में पश्चिम से पू्र्व की ओर मुसी, मंजीरा, कृष्णा और गोदावरी नदियां बहती हैं। 294 सदस्यों वाले आंध्र प्रदेश विधानसभा में तेलंगाना क्षेत्र से 107 सदस्य आते हैं।
तेलंगाना नाम
तेलंगाना पहले हैदराबाद स्टेट का हिस्सा था। इस इलाके को मराठवाड़ा से अलग करने और तेलुगू भाषी इलाके की पहचान को बरकरार रखने के लिए इसे तेलंगाना नाम दिया गया। हिंदू धर्म की मान्यता के मुताबिक भगवान शिव कलेश्वरम, श्रीशैलम और द्रक्षरमा नाम के पहाड़ों पर लिंग के तौर पर अवतरित हुए थे। ये तीनों पहाड़ 'त्रिलिंग देसा' नाम के इलाके की सीमा तैयार करते हैं। त्रिलिंग देसा आज के दौर में मोटे तौर पर कृष्णा और गोदावरी नदियों के बीच का इलाका है और इसे तेलंगाना क्षेत्र कहते हैं।
तेलंगाना आंदोलन
तेलंगाना आंदोलन संयुक्त आंध्र प्रदेश से तेलंगाना को अलग करने के लिए उस दौर से चल रहा है जब मद्रास स्टेट से तेलुगू भाषी इलाके को अलग राज्य बनाए जाने की मांग की जा रही थी। पोट्टी श्रीरामुलु नाम के राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ता ने 1952 में मद्रास स्टेट से तेलुगू भाषियों के लिए अलग राज्य की मांग करते हुए अपनी जान दे दी थी। श्रीरामुलु 19 अक्टूबर, 1952 को आमरण अनशन पर बैठे थे और 15-16 दिसंबर, 1952 की रात उनकी मौत हो गई। श्रीरामुलु के निधन से मद्रास स्टेट के तेलुगू भाषी इलाके में हिंसा फैल गई। इससे केंद्र सरकार पर दबाव बढ़ गया। आखिरकार 1 नवंबर, 1953 को मद्रास स्टेट से अलग आंध्र प्रदेश राज्य का गठन कर दिया गया। राज्य पुनर्गठन आयोग ने तेलंगाना को अलग राज्य बनाए जाने की सिफारिश की थी। लेकिन 1 नवंबर, 1956 को हैदराबाद स्टेट के तहत आने वाले तेलंगाना को भी आंध्र प्रदेश में शामिल कर दिया गया। इस समझौते को जेंटलमैंस एग्रीमेंट कहा गया। लेकिन आंध्र प्रदेश के वजूद में आने के 12 साल बाद से तेलंगाना आंदोलन ने तेजी पकड़ी। 1969 में अलग तेलंगाना की मांग उग्र हो गई और इस मुद्दे पर भड़की हिंसा में सैकड़ों जानें गईं। बीच के दशकों में तेलंगाना की मांग को लेकर छोटे-बड़े आंदोलन चलते रहे। लेकिन 90 के दशक में इस मांग ने तेजी पकड़ी। तेलंगाना को अलग करने के लिए जारी मौजूदा आंदोलन 1996 से चल रहा है। अलग तेलंगाना राज्य की मांग को लेकर अब तक सैकड़ों लोग जान दे चुकी है।
तेलंगाना का नकारात्मक पहलू
सिंचाई के लिए बारिश पर रहना पड़ता है निर्भर। नहरों की कमी। तेलंगाना में औसतन 32,532 हेक्टेयर जमीन पर नहरों के पानी से सिंचाई होती है, जबकि सीमांध्रा क्षेत्र में 1,14,811 हेक्टेयर खेती की जमीन पर नहरों के पानी से सिंचाई होती है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की एक स्टडी रिपोर्ट 'प्राइसिंग ऑफ पैडी :  अ केस स्टडी ऑफ आंध्र प्रदेश' के मुताबिक तेलंगाना में कुल कृषि योग्य जमीन के 15 प्रतिशत हिस्से में नहरों के पानी से सिंचाई होती है जबकि 85 प्रतिशत हिस्से में सिंचाई के लिए कुंओं और टैंकों पर निर्भर रहना पड़ता है। जबकि तटीय आंध्र में खेतों के 57.1 प्रतिशत हिस्से में नहर के पानी से जबकि 43 प्रतिशत जमीन पर कुंओं और टैंकों के पानी से सिंचाई की जाती है। तेलंगाना के किसानों के लिए यह बहुत ही अहम मुद्दा है। उनका मानना है कि उनके इलाके में नहरों का विकास उस तरह से नहीं किया गया है, जैसा होना चाहिए। तेलंगाना समर्थकों का कहना है कि अलग राज्य बनने से इस तरह की समस्याओं का समाधान होगा और इलाके के प्राकृतिक संसाधनों पर उनका हक होगा। 
तेलंगाना का सकारात्मक पहलू
आंध्र प्रदेश का 45 प्रतिशत जंगल तेलंगाना क्षेत्र में है। तेलंगाना बना तो कृष्णा नदी का 68 प्रतिशत पानी आंध्र प्रदेश से छिन जाएगा। देश के पास मौजूद कोयले के कुल भंडार का 20 प्रतिशत हिस्सा तेलंगाना की धरती के नीचे जमा है। तेलंगाना लाइसस्टोन (चूने का पत्थर) से भी भरपूर इलाका है जिसकी सीमेंट उद्योग में जरुरत पड़ती है। तेलंगाना में बॉक्साइट और माइका खनिज भी भरपूर मात्रा में मिलता है। तेलंगाना क्षेत्र के तहत आने वाला हैदराबाद आंध्र प्रदेश का सबसे विकसित शहर है। पिछले कुछ दशकों में हैदराबाद देश के सबसे तेजी से विकसित हो रहे शहरों में शामिल हो गया है। यहां आईटी, फार्मा सेक्टर, बायोटेक्नॉलजी, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर, एविएशन और डिफेंस से जुड़े उद्योग स्थापित हैं। हैदराबाद के अलग तेलंगाना राज्य में चले जाने का भी संयुक्त आंध्र प्रदेश के समर्थकों को डर है लेकिन तेलंगाना समर्थकों को लगता है कि हैदराबाद उनके राज्य में आने से उनका प्रदेश तेजी से तरक्की करेगा।

सोनिया ने राजीव गाँधी के हत्यारों को माफ कर दिया, संतन, मुरुगन और पेरारिवलन को फाँसी नहीं / RAJEEV GANDHI MURDER CASE



शीतांशु कुमार सहाय
राजीव गाँधी हत्या मामले में तीनों मुजरिम को बड़ी राहत देते हुए उच्चतम न्यायालय ने केंद्र की तरफ से दया याचिका पर विचार किये जाने के फैसले में 11 वर्ष की देरी के आधार पर आज 18 फरवरी 2014 को उनकी मौत की सजा को आजीवन कारावास (उम्रकैद) में बदल दिया। मुख्य न्यायाधीश पी सदाशिवम की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र की इस दलील को खारिज कर दिया कि उनकी दया याचिका पर फैसला करने में अनुचित विलंब नहीं हुआ है और फांसी की सजा का इंतजार कर रहे बंदी पीड़ा से नहीं गुजरे हैं। इस खंडपीठ में न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति एसके सिंह भी हैं। पीठ ने कहा कि वे केंद्र के दृष्टिकोण को नहीं स्वीकार सकते और मुजरिमों- संतन, मुरुगन और पेरारिवलन की मौत की सजा उम्रकैद में बदली जाती है और अगर सरकार उनकी सजा में कोई अतिरिक्त कटौती करती है तो वह स्वीकार्य होगी। उन्होंने केंद्र से समय से राष्ट्रपति को परामर्श देने को कहा जिससे कि बिना अनुचित देरी के दया याचिकाओं पर फैसला किया जा सके। देश के पूर्व प्रधानमंत्री और काँग्रेस के 'प्रथम परिवार' माने जाने वाले नेहरू-गाँधी परिवार के नेता राजीव गाँधी की 1991 में आत्मघाती हमले में जान जाना देश आज भी भूल नहीं पाया है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि राजीव गाँधी के हत्यारों को मौत की सज़ा से बच जाने के लिए कौन जिम्मेदार है? क्या इसके लिए सियासत जिम्मेदार है या इसके लिए लापरवाही दोषी है? देश में पिछले 9-10 सालों से उसी काँग्रेस पार्टी की सरकार है जिसके नेता राजीव गाँधी थे। राजीव गाँधी के तीन हत्यारों की फाँसी की सज़ा को उम्रकैद में तब्दील किए जाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से देश में फाँसी की सज़ा को लेकर बहस तेज होने के आसार हैं। फैसला आने के बाद पूर्व आईपीएस किरण बेदी ने कहा भी कि जिन लोगों ने इतनी लंबी सजा झेल ली है, उन्‍हें फाँसी दिया जाना अमानवीय है। उनका कहना है कि सबसे बड़े लोकतंत्र में मौत की सजा पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। फाँसी की सज़ा को लेकर बहस को पंजाब पुलिस के पूर्व डीजी केपीएस गिल ने 1993 में हुए बम विस्फोट के दोषी देविंदर पाल सिंह भुल्लर की फाँसी की सज़ा पर टिप्पणी करते हुए कहा, 'भुल्लर की पत्नी का अपने पति की मानसिक सेहत ठीक न होने को बुनियाद बनाकर फाँसी की सज़ा को उम्रकैद में तब्दील करने की माँग कर रही हैं। क्या सभी आतंकवादियों को मानसिक समस्या नहीं होती है?'  वर्ष 2001-11 के बीच 10 सालों में भारतीय अदालतों में 1,455 लोगों को मौत की सज़ा सुनाई गई। औसतन हर वर्ष 132.27 लोगों को यह सज़ा मिली लेकिन इनमें से ज्यादातर सजाएँ बाद में चलकर उम्रकैद में तब्दील कर दी गईं। इन 10 वर्षों में आतंकवाद से जुड़े मामलों को छोड़ दिया जाए तो सिर्फ धनंजय चटर्जी को फाँसी की सज़ा दी गई। धनंजय को अगस्त, 2004 में 14 साल की लड़की के साथ बलात्कार करने के मामले में दोषी पाए जाने पर फाँसी दी गई थी।  
दया याचिका रही लंबित : माफ कर दिया या राजनीतिक कारण
मौत की सज़ा पाने वाले कई अपराधियों के पास इससे बचने का अंतिम विकल्प राष्ट्रपति के पास दया याचिका भेजने का होता है लेकिन जिन मामलों का राजनीति से जुड़ाव होता है, उनमें फैसले लेने में सरकार हिचकती है। सरकार अंतिम फैसले से पहले राजनीतिक नफा-नुकसान का आकलन करती है। यही वजह है कि ऐसी दया याचिकाएँ लंबे समय तक राष्ट्रपति या केंद्र सरकार के पास पड़ी रहती हैं। तकनीकी कारणों से देर होने की वजह से अपराधी सुप्रीम कोर्ट में सज़ा देने में देर को मुद्दा बनाते हैं और कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट इसी आधार पर फाँसी की सज़ा को उम्र कैद में तब्दील कर देती है। आज के दौर में काँग्रेस संगठन में सबसे ताकवतर नेता राजीव गाँधी की पत्नी सोनिया गाँधी और उनके बेटे राहुल गाँधी हैं। ऐसे में राजीव गाँधी के हत्यारों की दया याचिका इतने सालों से लंबित कैसे रह गई? यह सवाल बना हुआ है। क्या इसके पीछे तमिल राजनीति वजह थी या कोई और सियासी कारण? चूँकि, यह तर्क भी कई लोगों के गले नहीं उतरता कि सोनिया गाँधी ने राजीव के हत्यारों को माफ कर दिया है, इसलिए उनकी मौत की सज़ा का उम्रकैद में तब्दील होना अचरज भरा नहीं है। अगर यही तर्क है तो देश में लंबे समय से लंबित पड़ी अन्य दया याचिका डालने वाले कैदियों की भी जान बख्शी जानी चाहिए।
दुनिया में मौत की सज़ा
एमनेस्टी इंटरनेशनल के आँकड़ों के मुताबिक दुनिया के 98 देशों में किसी भी अपराध के लिए मौत की सज़ा का प्रावधान खत्म हो चुका है। अब भी 58 देश में मौत की सज़ा बरकरार है। 2012 में दुनिया के 58 देशों में 1,722 लोगों को मौत की सज़ा दी गई। 2011 में 63 देशों में 1,923 लोगों को मौत की सज़ा दी गई। इन आँकड़ों में चीन की संख्या शामिल नहीं है; क्योंकि चीन मौत की सज़ा से जुड़े आँकड़े नहीं देता है। ईरान में 2007 से 2012 के बीच 1663 लोगों को मौत की सज़ा दी गई। इस मामले में वह दुनिया का नंबर एक देश है। ईरान के बाद सऊदी अरब का नंबर है जहां 423 लोगों को ऐसी सज़ा दी गई। इराक में 256, अमेरिका में 220, पाकिस्तान में 171 लोगों को 2007 से 2012 के बीच 5 सालों में मौत की सज़ा दी गई। 
सोनिया कर चुकी हैं नलिनी को माफ 
1999 में तत्कालीन काँग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन को चिट्ठी लिखकर राजीव गाँधी के तीन हत्यारों और मुरुगन की पत्नी नलिनी को हुई फाँसी की सज़ा को उम्रकैद में बदलने की अपील की थी। चिट्ठी में कहा गया था कि सोनिया और उनके बच्चे नलिनी को मौत की सजा दिए जाने के खिलाफ हैं। तब नलिनी की बेटी की उम्र 8 साल थी। तब सोनिया के हवाले से कहा गया था, 'मेरे पति के निधन का दुख मेरे बच्चों को लंबे समय तक झेलना पड़ा और इसी वजह से हमलोग इस बात के खिलाफ हैं कि अब दुनिया में कोई बच्चा अपने पिता या माँ को न खोए।' 2008 में प्रियंका वाड्रा ने नलिनी से जेल में जाकर मुलाकात की थी। तब नलिनी के हवाले से कहा गया था कि प्रियंका के आने की वजह से नलिनी को लगता है कि उनके सारे पाप धुल गए। नलिनी इनदिनों जेल में है। 
श्रीपेरंबदूर में राजीव गाँधी स्मारक

सोमवार, 17 फ़रवरी 2014

राँची के पहाड़ी मंदिर के जीर्णोद्धार का मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने किया शिलान्यास / PAHADI TEMPLE AT RANCHI IN NEW FORMATE


-शीतांशु कुमार सहाय / SHEETANSHU KUMAR SAHAY
मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने स्थानीय पहाड़ी मंदिर के जीर्णोद्धार कार्यक्रम का 17 फरवरी 2014 को शिलान्यास करते हुए कहा कि राँची पहाड़ी का धार्मिक महत्त्व के साथ ही ऐतिहासिक एवं पर्यटन के दृष्टिकोण से महत्त्व है। उन्होंने कहा कि हमारा यह प्रयास होगा कि श्रद्धालुओं को अधिक-से-अधिक सुविधा दी जा सके। सावन के महीने में स्वर्णरेखा नदी से जल भरकर बाबा भोलेनाथ का यहाँ अभिषेक करने की परम्परा सदियों से चली आ रही है। यहाँ परम्परागत तरीके से बाबा भोलेनाथ की पूजा की जाती है। उन्होंने कहा- शिलान्यास के पूर्व मैंने पहाड़ी बाबा से प्रार्थना की है कि यह जीर्णोद्धार कार्यक्रम बिना किसी व्यवधान के शीघ्र पूरा हो एवं इस आयोजन में सभी का सहयोग मिले। पहाड़ी मन्दिर झारखण्ड राज्य की राजधानी राँची शहर के बीचों-बीच एक ऐतिहासिक शिखर पर अवस्थित है। इस शिखर से राँची शहर के विहंगम दृश्य अवलोकनीय है। पहाड़ी मंदिर एक अनोखा मंदिर है जहाँ धार्मिक ध्वज के साथ-साथ राष्ट्रीय ध्वज पूरे सम्मान के साथ फहराया जाता है। भूतात्त्विक रिपोर्ट के अनुसार राँची पहाड़ी की आयु करोड़ों वर्ष की है। यह विश्व के प्राचीनतम पहाड़ियों में से एक है। करोड़ों वर्ष पुराना यह पहाड़ अब अपनी वृद्धावस्था से गुजर रहा है जिसका जीर्णोद्धार अतिआवश्यक है। इस हेतु राँची के मेसरा स्थित बीआईटी (बिड़ला इन्स्टीच्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी) द्वारा तैयार डीपीआर के अनुसार कार्य स्थल की प्रकृति एवं निधि की उपलब्धता के अनुसार निर्माण कार्य किये जायेंगें। यहाँ मैंने निर्मित होने वाले मन्दिर के प्रस्तावित चित्र को प्रस्तुत किया है।




शिलान्यास के बाद वार्ता करते मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन, विधायक सीपी सिंह, सांसद सुबोधकान्त सहाय व अन्य।

रविवार, 9 फ़रवरी 2014

अँग्रजों ने छिन्न-भिन्न किया भारत के सामाजिक ताने-बाने को


शीतांशु कुमार सहाय
आज नौ फरवरी है, मेरा जन्मदिन। अतः मैंने सोचा कि आज कुछ ऐसा लिखा जाये जिसे मेरे प्यारे मित्र वास्तव में पढ़ें और ज्ञान में वृद्धि करें।
मित्रों! सभी जानते हैं कि भारत ने विश्व को कई अमूल्य उपहार दिये हैं। इन उपहारों में एक है अध्यात्म-विज्ञान जो सबके कल्याण का कारक है- शारीरिक रूप से भी और आध्यात्मिक रूप से भी। जिस समय कृत्रिम उपग्रहों का आविष्कार नहीं हुआ था, उस समय ही हमारे मनीषियों ने कई आकाशीय पिण्डों की पृथ्वी से दूरी और उनकी गति आदि के बारे में बताया था जो आज भी आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर खरा है। नौ ग्रहों का पृथ्वी और इस पर रहने वाले जीवों पर प्रभाव आदि का विश्लेषण हजारों वर्षों पूर्व ही किया गया। साथ ही समाज का ताना-बाना इस प्रकार बुना गया था जिसमें सार्वजनिक धन का समाज में इतना समान वितरण था कि कोई भिखारी यहाँ नहीं था। सबके हाथ में रोजगार था, सभी हुनरमन्द थे, सभी ज्ञानवान थे, सभी सामाजिक व राजकीय नियमों को पूर्णतः मानने वाले सभ्य व उच्च आचरणवान भारतीय थे। कार्य के अनुसार वर्ण-व्यवस्था होने के बावजूद जातिगत या धर्मगत वैमनस्यता नहीं थी। ऐसे ही गुणों ने भारत को विश्वगुरु की संज्ञा दिलायी। यही गुण अंग्रेजों को रास न आया और उन्होंने यहाँ अपने शासन को मजबूत करने के लिए अपने कई विशेषज्ञों से सर्वेक्षण कराया जिनमें एक था मैस्क्युले। उसने भारत भ्रमण के बाद दो फरवरी 1835 ईश्वी को ब्रिटिश संसद में जो वक्तव्य दिया, मैं उसके प्रमुख अंश को यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ--
''मैं भारत के कोने कोने मे घूमा हूँ मुझे एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं दिखाई दिया जो भिखारी हो चोर हो। इस देश में मैंने इतनी धन-दोलत देखी है, इतने ऊंचे चारित्रिक आदर्श गुणवान मनुष्य देखे हैं कि मैं नहीं समझता हम इस देश को जीत पाएंगे, जब तक इसकी रीड की हड्डी को नहीं तोड़ देते जो है इसकी आध्यात्मिक संस्कृति और इसकी विरासत! इसलिए मैं प्रस्ताव रखता हूँ कि हम पुरातन शिक्षा व्यवस्था और संस्कृति को बादल डाले; क्यूंकि यदि भारतीय सोचने लगे कि जो भी विदेशी है और अँग्रेजी है, वही अच्छा है और उनकी अपनी चीजों से बेहतर है तो वे आत्म गौरव और अपनी ही संस्कृति को भुलाने लगेंगे और वैसे बन जाएंगे जैसा हम चाहते है। एक पूरी तरह से दमित देश!''


चित्र में मैस्क्युले और उसका मूल अँग्रेजी अंश भी मित्रों के लिए पेश कर रहा हूँ।

     

शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

मजीठिया वेतन आयोग की सिफारिश अप्रैल 2014 से लागू हो : सर्वोच्च न्यायालय / Justice G.R. Majithia Wage Boards Report applicable From First April 2014 : Supreme Court



शीतांशु कुमार सहाय/ Sheetanshu Kumar Sahay
सर्वोच्च न्यायालय ने 7 फरवरी 2014 को पत्रकारों और समाचार पत्रों के अन्य कर्मचारियों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए मजीठिया वेतन आयोग की सिफारिशों को वैध ठहराया है। उनका कहना है कि इसकी सिफारिश उचित विचार-विमर्श पर आधारित है। इसके साथ ही न्यायालय ने समाचार पत्रों द्वारा संस्था में कार्यरत पत्रकारों और अन्य कर्मचारियों के कानून की संवैधानिक वैधता को दी गई चुनौती को भी खारिज कर दिया है। न्यायालय के आदेश के अनुसार यह वेतन आयोग 11 नवंबर 2011 से लागू होगा जब इसे सरकार ने पेश किया था और 11 नवंबर 2011 से मार्च 2014 के बीच बकाया वेतन भी पत्रकारों को एक साल के अंदर चार बराबर किस्तों में दिया जाएगा। इसके साथ ही मजीठिया वेतन आयोग की सिफारिश के अनुसार अप्रैल 2014 से नया वेतन लागू किया जाएगा। आज जो अखबार प्रबंधक नये वेज बोर्ड पर आंसू बहा रहे हैं, उन्हें नहीं भूलना चाहिए कि उनके प्रोडक्ट यानी अखबार में जो चीज बिकती है- वह समाचार और विचार है। अन्य किस्म के उत्पादों में कई तरह का कच्चा माल लगता है लेकिन अखबार का असली कच्चा माल यानी समाचार और विचार वस्तुतः संवाददाताओं और संपादनकर्मियों की कड़ी मेहनत, दिमागी कसरत और कौशल से ही आता है। इस रूप में पत्रकार न सिर्फ स्वयं कच्चा माल जुटाते या उपलब्ध कराते हैं; बल्कि उसे तराश कर बेचने योग्य भी बनाते हैं। बड़ी हास्यापद है कि सर्वोच्च न्यायालय के 7 फरवरी 2014 को मजीठिया वेतन आयोग को लागू करने वाले फैसले को समाचार पत्रों व टीवी न्यूज चैनलों ने प्रमुखता से प्रकाशित नहीं किया। कई दैनिक समाचार पत्रों व न्यूज चैनलों ने तो इसे सुर्खियों में जगह भी नहीं दी। ऐसी स्थिति में प्रबन्धन की कुनीति ही उजागर स्पष्ट हुई। दूसरों के शोषण पर जमीन-आसमान एक करने वाले पत्रकार अपने शोषण के बाबत मूक क्यों दीखते हैं ?


 मजीठिया वेतन आयोग की सिफारिश----
Wage Boards’ recommendations notified--
The Labour and Employment Ministry on Friday notified the recommendations of the Justice G.R. Majithia Wage Boards for the journalists and other employees of the newspapers/news agencies, which was approved by the Union Cabinet on October 25.
View the Gazette Notification.....
The revised wages, Dearness Allowance and variable pay, will be applicable to over 40,000 journalists and other employees from July 1, 2010, and the increased allowances like - House Rent, Travel, Medical, Hardship and Leave Travel will be applicable from November 11, 2011. The notification is issued subject to the final verdict of the Supreme Court, which is hearing into the petitions filed by some of the newspaper managements challenging the recommendations of the wage boards.
The Wage Boards were constituted in May 2007 and the Boards, led by former Mumbai High Court Judge Justice G.R. Majithia, gave their reports to the Centre on December 31, 2010.
Labour Minister Mallikarjun Kharge said the government was taking various steps to protect the media and their employees and pointed out that he cleared the file regarding the notification despite being on tour in Gulbarga.
The Wage Boards have classified jobs into six groups and accordingly suggested six scales in each class of establishment.
The revised pay scale is based on the old basic pay plus Dearness Allowance (D.A.) admissible up to June 2010, plus 30 per cent of the basic pay which is being given as an interim relief.
The revised rate of dearness allowance is to be computed on the basis of the average all-India Consumer Price Index Number for Industrial Worker (2001=100) for the preceding twelve months compiled by the Labour Bureau and will become operative with effect from July 1, 2010.
The revised pay comprises of the variable pay at the rate of 35 per cent for the employees working in the first four classes of newspaper establishments (first two classes of news agencies) and 20 per cent for the bottom four classes of newspaper establishments (bottom two classes of news agencies).
The variable pay should be added to the revised basic pay for calculation of all allowances. The rate of neutralization of dearness allowance should be 100 per cent of basic pay for calculation of all the allowances.
The House Rent Allowance should be at the rate of 30 per cent, 20 per cent and 10 per cent and accordingly areas/cities should be classified into three categories i.e. X, Y and Z for this purpose.
The transport allowance should be 20 per cent, 10 per cent and 5 per cent in the respective areas defined as X, Y and Z. Night shift allowance should range between Rs. 100 and Rs. 50 for different classes of establishments.



देखिये कि किस तरह टाइम्स ऑफ इण्डिया ने आठ फरवरी 2014 के अपने दिल्ली संस्करण के पृष्ठ संख्या- 15 पर मजीठिया वेतन आयोग को लागू करने के आदेश के विरोध में कुतर्क पेश किया है--
THE TIMES OF INDIA, DELHI EDITION, PAGE NO.-15, DATE- 08 FEBRUARY 2014.

Blow for newspaper industry as SC upholds wage boards advice

TIMES NEWS NETWORK

New Delhi: In a decision that will adversely affect the newspaper industry,particularly the weaker ones among them,the Supreme Court on Friday asked newspapers and news agencies to implement the recommendations of the Majithia Wage Board and pay their employees the revised pay scale with arrears from November 2011.
A bench of Chief Justice P Sathasivam and Justices Ranjan Gogoi and S K Singh rejected challenges to the wage board recommendations and asked newspapers and news agencies to pay the wage arrears in four equal instalments within one year and continue to pay revised wages from April 2014 onwards.
We hold the recommendations of the wage board are valid,based on genuine and acceptable considerations and there is no valid ground for interference, the bench said.
In the course of the case,newspaper associations,companies and news agencies challenged the validity of the Act and the wage boards constituted under it,on the ground that the newspaper industry is the solitary case today in the private sector in India where the government and not the employers decides how much salary wage board employees should be paid.
According to them,this is an antiquated legislation which has lost all social relevance in the modern age of high technology and electronic media.Newspaper establishments have been pointing out that no other media,including TV,internet and mobile,are shackled by a similar law.
The industry contended that wage fixation should now be left,as in other industries,to market forces of demand and supply.News organizations had pointed out that the government had not accepted recommendations pertaining to retirement age,pension,paternity leave and some other aspects of wage benefits terming them as beyond the objective for which the wage board was set up.
The industry was also unhappy with the constitution,functioning,procedure and recommendations of the Majithia Wage Board.Newspaper establishments have been saying that these recommendations,if fully implemented,would result in an 80-100 % wage hike,which would force many newspapers,particularly small and medium,to shut shop,thereby dealing a blow to the freedom of the Press.
They have argued that in the newspaper industry,non-journalist employees are already paid much higher than their counterparts in other industries,and this unnatural gap would broaden if the wage board recommendations are implemented.
The bench did not heed any of these arguments.It said,It is the prerogative of the central government to accept or reject the recommendations of the wage board.There is no scope for hearing the parties once again by the central government while accepting or modifying the recommendations,except that the modifications are of such nature which alter the character of the recommendations and such modification is likely to affect the parties. It said merely because the government had not accepted a few recommendations would not automatically affect the validity of the entire report.It also found substance in the argument that the Majithia Wage Board merely copied the recommendations of the Sixth Central Pay Commission.
TIMES VIEW----
The Supreme Court judgment will deal large sections of the print media a grievous body blow and will financially weaken even the few strong companies that are left in an industry that worldwide is under crushing pressure,with its very existence in question.
But there is a larger issue here: In this day and age,a government-appointed wage board that fixes compensation for the private sector is completely anachronistic.Fifty-eight years ago,when the first wage board was set up,the industry situation may have warranted government intervention to ensure employers didnt exploit employees.
But India has moved on: In the organized industry,there is a largely free and fair labour market that determines wages and salaries on the basis of supply and demand;for blue-collar staff in a company,the management and unions arrive at an agreement through bipartite negotiations.What the wage board,on the other hand,does is impose from above wages that are not financially sustainable.
Even more shocking,is that this is the only industry in India where wages are fixed for an organized industry by a centrally-constituted outside body,and where the terms and conditions of employment make it difficult for managements to weed out even the most inefficient and unproductive workers.Every survey in the world has shown that labour inflexibility actually hurts creation of jobs employers are wary of hiring even in boom time if they are not allowed to trim the workforce in a downturn.A flexible labour market,on the other hand,gives employers the confidence to add staff when a company,industry or market is expanding.
There is another inherent anomaly in the concept of a wage board in todays media industry.Tectonic changes are sweeping through the industry,driven largely by technology and shifts in consumer behaviour.Print is no longer the sole purveyor of information;there is television,there is internet,and increasingly,there is mobile,all of which are threatening to eat into prints market share.But none of these established or emerging mediums are covered by the wage board which creates an uneven playing field and puts print at a huge financial disadvantage.
In fact,as consumption of media becomes seamless,the very definition of a print journalist is being blurred.He/she is becoming platform agnostic,moving from filing for online to writing for print to appearing on television,all in the course of a single workday.
Further,the wage increases of about 80-100 % have been applied,retrospectively,across the board from journalists to press workers,drivers and peons.Even if one were to concede that journalists are special,what about the others A drivers salary will jump from Rs 36,000 to almost Rs 62,000 per month,a clerks from Rs 39,000 to over Rs 62,000,a peons from about Rs 33,000 to about Rs 58,000,a stenographers from Rs 40,000 to almost Rs 71,000,and a rotary machinemans from Rs 40,000 to over Rs 76,000.This is way above what factory/office workers make in most industries and most companies.
But these are details.The big,big question that needs to be addressed is a fundamental one: Should government be allowed to interfere in what is essentially an employee-employer relationship,that too in an organized,urban-centric industry Doesnt it violate the principle of market forces This paper is disappointed by the Supreme Court judgment.It is out of sync with the reality of contemporary media.It seeks to set the clock back to a time when the world looked very different.



गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

जन्मदिवस पर अभ्युदय ने भगवान आशुतोष का आशीर्वाद प्राप्त किया / Lord Ashutosh (Shiv) Bless Abhyudaya on His Birthday


-शीतांशु कुमार सहाय / Sheetanshu Kumar Sahay
अभ्युदय- यही नाम है मेरे पुत्र का। उसने छः फरवरी सन् 2011 ईश्वी को जन्म लिया। आज अर्थात् छः फरवरी 2014 को उसने जीवन के तीन वर्ष पूरे कर लिये। उसे लेकर पत्नी रीना के साथ मैं झारखण्ड के देवघर जिलास्थित वैद्यनाथधाम में दर्शन-पूजन के लिए गया। भीड़ अधिक थी मगर पण्डों व आरक्षी जवानों ने भक्तों को पंक्तिबद्ध होकर अन्दर जाने की व्यवस्था कर रखी थी, इस कारण सुगमता से भक्तगण दर्शन-पूजन कर पा रहे थे। पर, गर्भगृह में कुछ ऐसे भक्त भी थे जो बैठकर आराम से ज्योतिर्लिंग का स्पर्श कर पूजन करने की होड़ में दूसरों को कष्ट पहुँचा रहे थे।

गर्भगृह में मेरे आगे की एक महिला भक्त ने एक अन्य महिला भक्त से यह कहते हुए जोरदार धक्का दिया कि उसने उसके बच्चे पर अत्यधिक शारीरिक दबाव दिया है। बीच में तो पंक्तिबद्ध होकर लोग आ रहे थे पर कई भक्त गर्भगृह में से निकलने का नाम नहीं ले रहे थे, वहीं धक्का-मुक्की कर रहे थे। ऐसा लग रहा था कि वे भगवान शिव से अतिरिक्त आशीर्वाद लेने के फेर में हैं। तब एक आरक्षी जवान ने वैसे लोगों को बाहर कर दिया। इस प्रकरण से पूर्व ही रीना और अभ्युदय पूजन कर बाहर चले गये। बाद में मैं बाहर आया तो जो छायाचित्र बनवाया, यहाँ आपको दिखा रहा हूँ। अपने चौथे जन्मदिवस पर अभ्युदय ने भगवान आशुतोष का आशीर्वाद प्राप्त किया। 

मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

अभ्युदय का बचपन / Abhyudaya's Childhood


-शीतांशु कुमार सहाय / Sheetanshu Kumar Sahay
बचपन! एक ऐसा शब्द जिसके उच्चारण करने मात्र से ही एक प्यारी-सी तस्वीर उभरती है, नन्हीं-सी जान की कल्पना में खो जाता है मन। जी मचल उठता है और पोर-पोर से प्यार छलकने लगता है! सबके साथ ऐसा होता है, मेरे साथ, उनके साथ और आपके साथ भी। चाहे कोई विवाहित हो या अविवाहित, सन्तानवान हो या निःसन्तान, समाज के हित में कार्य करता हो या जिसके कार्य से समाज का अहित हो रहा हो, गृहस्थ हो या वैरागी, शासक हो या शासित, भोगी हो या अपरिग्रही, गुरु हो या शिष्य- सबको बचपन से प्यार होता ही है।
 
यहाँ एक ऐसे बच्चे की तस्वीर प्रस्तुत है जिसे परवरदीगार ने मेरे पुत्र के रूप में 6 फरवरी 2011 को मेरी पत्नी की गोद में भेजा। सबको उसके हिस्से के कार्य करने का आदेश देकर ही जगतनियन्ता ने सृष्टि का एक हिस्सा बनाया है। मैं, आप और वो- सभी अपने हिस्से का कार्य कर रहे हैं। पर, कोई सर्वशक्तिमान के नियमानुसार कार्य कर रहा है तो कोई नियमविरुद्ध। आप कौन-सा और कैसा कार्य कर रहे हैं, यह तो आप ही जानें। पर, इतना तो सत्य है कि जिस बच्चे ने मुझे पिता का दर्जा दिया, वह बचपन से ही आदिशक्ति द्वारा प्रदत्त कार्य को जानता है और तदनुरूप ही सृष्टि का कार्य कर रहा है। जैसा कि गुरु-कृपा से मुझे ज्ञात है, वह समाज का बेहतर हितैषी सिद्ध होगा। परम्परागत शिक्षा से पृथक ही उसकी शिक्षा-दीक्षा निश्चित है। विश्व की जनसंख्या में एक अदद की वृद्धि करने वाला यह शख्स अभ्युदय के नाम से जाना जायेगा। विश्व में किसी से उसे कोई भौतिक वस्तु नहीं चाहिये। उसे केवल आप जैसे बन्धुओं-हितैषियों के आशीर्वाद की आवश्यकता है।  



    19 फरवरी 2011 को खींची गयी ये तस्वीरें हैं जिसमें विविध रूप में अभ्युदय नजर आ रहा है।

माँ रीना की ममता की छाँव में
 
पिता की गोद में स्वतन्त्र मुस्कान
 

चाचा संतोष कुमार सहाय से वार्ता करने का प्रयास
 
मामा प्रभात कुमार के साथ प्रेम के पल


 
 
 

सोमवार, 3 फ़रवरी 2014

विद्या की देवी माँ सरस्वती के पावन चरणों में नमस्कार! / Maa Saraswati Ko Namaskar!

मूर्तिकार के घर पर माँ शारदे की प्रतिमाएँ सजी हैं। इन्हें भक्तगण क्रय करके ले जाते हैं।


-शीतांशु कुमार सहाय
विद्या की देवी माँ सरस्वती के पावन चरणों में नमस्कार है। वसन्त पंचमी के अवसर पर कीजिये उन की आराधना! आइये इस मंत्र से उन की उपासना करें.....  
या कुन्देन्दु तुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ।।१।।
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमाद्यां जगद्व्यापनीं ।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यांधकारपहाम्।।
हस्तेस्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम् ।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्।।२।।

जल में क्यों विसर्जित करते हैं देवी देवताओं की मूर्तियों को?

     आखिर देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को जल में ही क्यों विसर्जित कर दिया जाता है? शास्त्रों के अनुसार जल ब्रह्म का स्वरूप माना गया है; क्योंकि सृष्टि के आरंभ में और अंत में संपूर्ण सृष्टि में सिर्फ जल ही जल होता है। जल बुद्घि और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। इस के देवता गणपति को माना गया है। जल में ही श्रीहरि का निवास है, इसलिए जल को नारायण भी कहते हैं। 
     माना जाता है कि जब जल में देव प्रतिमाओं को विसर्जित किया जाता है, तो देवी-देवताओं का अंश मूर्ति से निकलकर वापस अपने लोक को चला जाता है यानी परब्रह्म में लीन हो जाता है। यही कारण है कि मूर्तियों और निर्माल को जल में विसर्जित किया जाता है।

दिल्ली जनलोकपाल बिल 2014 पास : दिल्ली के 'नायक' केजरीवाल ने पूरा किया एक और वादा / JANLOKPAL BILL IN DELHI


-शीतांशु कुमार सहाय
सोमवार, 3 फरवरी 2014 को केजरीवाल सरकार ने दिल्ली जनलोकपाल बिल 2014 को पास कर दिया है। इस बिल को दिल्ली कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। अब इसे दिल्ली विधानसभा में मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। सभी को चौंकाते हुए केजरीवाल सरकार ने इसे केंद्र के पास नहीं भेजने का फैसला किया है। संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप के मुताबिक सरकार का यह कदम असंवैधानिक है।लोकपाल बिल पास होने पर केजरीवाल ने ट्वीट किया, 'बधाई! दिल्ली कैबिनेट द्वारा जनलोकपाल बिल पास।' केजरीवाल सरकार के मंत्री मनीष सिसौदिया ने कहा है-- जनलोकपाल बिल पारित कर हमने एक और वादा पूरा कर लिया। जनलोकपाल में सात सदस्य होंगे, जिनमें सरकार का एक ही प्रतिनिधि होगा बाकी सदस्य विपक्षी दल और अन्य क्षेत्रों से जुड़े होंगे। जांच के दौरान लोकपाल को दोषी अधिकारी को निलंबित करने का अधिकार होगा। यदि किसी मामले में जांच के दौरान खतरे की आशंका होती है तो यह जांच तीन महीने में ही पूरी कर ली जाएगी।
दिल्ली सरकार ने राजधानी को भ्रष्टाचार मुक्त करने के अपने चुनावी वायदे पर आगे बढ़ते हुए दिल्ली जनलोकपाल विधेयक को कैबिनेट से पारित कर दिया। अब सरकार 13 से 16 फरवरी के बीच विधानसभा सत्र बुलाकर उसे वहां से भी पारित कर देगी। अब दिल्ली में गंभीर किस्म के रिश्वत के आरोप साबित होने पर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। खास बात ये है कि दूसरे विधेयकों की तरह सरकार इस विधेयक को केंद्र सरकार के पास पारित करने के लिए नहीं भेजेगी।  दरअसल दिल्ली की सत्ता में काबिज होने के लिए राजधानी के लोगों से किये गए महत्वपूर्ण वादों में से एक जन लोकपाल बिल पर दिल्ली सरकार की कैबिनेट ने सोमवार को अपनी मोहर लगा दी। दिल्ली कैबिनेट ने काफी विचार विमर्श के बाद दिल्ली जनलोकपाल विधेयक को न सिर्फ फाइनल प्रारूप दिया बल्कि उसे लागू कर दिल्ली को भ्रष्टाचार से मुक्त करने के अपने वायदे पर एक कदम आगे बढ़ गई। कैबिनेट मीटिंग में दिल्ली जन लोकपाल विधेयक को पारित करने के बाद सरकार के मंत्री मनीष सिसोदिया ने विधेयक के प्रस्ताव के बारे में बताया। सिसोदिया के मुताबिक दिल्ली में चपरासी से लेकर मुख्यमंत्री तक दिल्ली जनलोकपाल विधेयक के अंतर्गत आएगा। भ्रष्टाचार की शिकायत चाहे जहां से आए उसकी सामान्य तरीके से जांच की जाएगी। जो कायदे कानून आम कर्मचारी के लिए होगा वही कायदा कानून मुख्यमंत्री के लिए भी होगा। सरकार के मुताबिक दिल्ली जन लोकपाल पैनल में कुल दस सदस्य होंगे। इसमें से एक सत्ता पक्ष की ओर से मुख्यमंत्री होंगे जबकि विपक्ष का नेता भी पैनल का सदस्य होगा। बाकि सदस्य कानून से जुड़े व्यक्ति और अलग-अलग क्षेत्रों से होंगे। लोकपाल पैनल का कार्यकाल सात साल का होगा। दिल्ली जन लोकपाल बिल के तहत पहली बार भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले और उसकी शिकायत करने वाले यानी व्हिसिल ब्लोअर को कानूनी सुरक्षा दी जाएगी। यही नहीं, ईमानदार अधिकारियों और कर्मचारियों को ईनाम देने और उन्हें सुरक्षा देने के लिए पॉलिसी बनाई जाएगी। दिल्ली जनलोकपाल विधेयक के तहत अगर किसी व्यापारी को सरकार का चूना लगाकर मुनाफा कमाते पकड़ा गया तो उससे सरकार को होने वाले कुल नुकसान का पांच गुणा वसूला जाएगा। अब दिल्ली सरकार 13 से 16 फरवरी तक विधानसभा का सत्र बुलाएगी। विधानसभा में दो दिन चर्चा करने के बाद 16 फरवरी को इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में विशेष सत्र का आयोजन कर उसे वहां से पारित कर दिया जाएगा। खास बात ये है कि विधानसभा से पारित होने के बाद दिल्ली सरकार इसे केंद्र के पास भेजने के बजाए तत्काल लागू कर देगी।

4 फरवरी 2014 : 10 वर्षों का हुआ फेसबुक, तह-ए-दिल से बधाई! / 10 years Facebook : Congratulation!


-शीतांशु कुमार सहाय / Sheetanshu Kumar Sahay
विकास के लिए 10 वर्षों का समय कम नहीं होता है। यह एक मुकाम प्राप्त करने के लिए दीर्घावधि है। तभी तो 10 वर्षों का अपना फेसबुक करीब सवा अरब लोगों तक पहुँच चुका है। वैसे भारत की वर्तमान केन्द्र सरकार विकास के बाबत 10 वर्ष को पर्याप्त समय नहीं मानती। मनमोहन सिंह के नेतृत्व में काँग्रेस की अगुवाई वाले गठबन्धन की सरकार 10 वर्षों से सत्ता पर काबिज है मगर देश का विकास कहाँ है, यह आपको पता ही है। .....तो छोड़िये इन बातों को, मौका तो लोकसभा चुनाव में मिलेगा ही। फिलहाल 11वें वर्षगाँठ पर फेसबुक को बधाई दीजिये। मैं तो इसकी सफलता की कामना तह-ए-दिल से करता हूँ। दुनियाभर में फैले अपने 1.2 अरब चाहने वालों के बीच सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक अपना 10वां जन्मदिन मना रहा है। 10 साल के फेसबुक को इस समय अपने युवा इस्तेमालकर्ताओं को अपने साथ जोड़े रखने के लिए विभिन्न प्रकार के नए प्रयोग करने जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। मार्क जुकरबर्ग ने हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी से 4 फरवरी 2004 को फेसबुक की शुरुआत की थी। इस साइट का प्रारूप इस प्रकार डिजाइन किया गया था कि यह छात्रों को एक-दूसरे से जोड़े और उन्हें ऑनलाइन अपनी एक पहचान कायम करने में मदद करे। कम्प्यूटर वर्ल्ड ने यह रिपोर्ट दी है।कंपनी द्वारा हाल ही में जारी किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि सोशल नेटवर्किंग साइट ने पिछले 10 सालों में अपना काफी विस्तार किया है और प्रतिमाह 1.2 अरब लोग इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। मई में 30 साल के होने जा रहे जुकरबर्ग ने पिछले सप्ताह सिलिकॉन वैली में एक औद्योगिक सम्मेलन में कंपनी के 10 साल पूरे होने पर विशेष भाषण दिया था। जुकरबर्ग ने कहा था कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि फेसबुक उन्हें दुनिया के सबसे धनी लोगों की पंक्ति में लाकर खड़ा कर देगा। फेसबुक को अब कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। सोशल नेटवर्किंग साइट पिनट्रेस्ट, टि्वटर और स्नैप चैट जैसी साइटों ने फेसबुक के लिए मुकाबला कड़ा कर दिया है और उसे अपने मूल युवा इस्तेमालकर्ताओं को बनाए रखने के लिए नए-नए उपाय सोचने पड़ रहे हैं। आईस्ट्रेटजीलैब की रिपोर्ट के अनुसार फेसबुक ने जनवरी 2011 से 2014 के बीच 13 से 17 आयु वर्ग के 30 लाख यूजर गंवा दिए हैं।