मंगलवार, 23 जून 2015

रामायण में वर्णित घटनाएँ सच हैं / Ramayana is real, say experts


-शीतांशु कुमार सहाय
रामायण और महाभारत को कल्पना कहनेवालों की बातों को पहले भी झूठ करार किया जा चुका है। अब एक अनुसन्धान के आधार पर सिद्ध हुआ है कि रामायण में वर्णित घटनाएँ सच हैं। यहाँ मैं अँग्रेजी समाचार पत्र ‘डेक्कन क्रॉनिकल’ के 18 जून 2015 के इंटरनेट संस्करण का यक समाचार मूल रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ।
पहले भगवान को नमन कर लूँ-
शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्।
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूड़ामणिम्।।1।।
नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।
भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मे कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च।।2।।
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।3।।



New research carried out by anthropological scientists from the Estonian Biocentre and the University of Delhi claims that events of the mythological epic Ramayana occurred in reality thousands of years ago. Hyderabad: New research carried out by anthropological scientists from the Estonian Biocentre and the University of Delhi claims that events of the mythological epic Ramayana occurred in reality thousands of years ago. Scientists say that results of their genetic studies, with existing data, show genetic signatures of tribal groups featured in the Ramayana such as the Gonds, Kols and Bhils. Gonds are  a prominent group in Adilabad district of Telangana.

Researchers claimed that populations in the Indian subcontinent can trace their ancestors to more than 60,000 years back. Scientists say that this is proof of the authenticity and actual occurrence of the events described in Ramayana, which would have occurred more than 12,000 years ago. The Gonds, Kols and Bhils are believed to be the ancient tribal groups of the region and have found mention in the Ramayana. Authenticity of the mythological text has been questioned several times. While there have been voices proclaiming the authenticity of the Ramayana, research to prove it has increased in recent times.

Dr Vadlamudi Raghavendra Rao, professor of anthropology, University of Delhi, and one of the authors of the study, said, “Definitely, the events described in Ramayana occurred in real. Our research has showed close genetic affinity of these tribes to other ethnic groups. We have shown that there is continuity in the populations groups living here.  Other researchers are working to prove other angles of this.”

The study was carried out by Estonian Biocentre researcher Gyaneshwar Chaubey, Institute of Scientific Research on Vedas, Dr Saroj Bala and Dr Raghavendra Rao. The Bhil, Kol and Gond are three major Indian tribes that have been widely acknowledged in the epic Ramayana, particularly in the chapters Ayodhyakanda, Aranyakanda and Kishkindhakanda. Gonds are prominently found in Adilabad district and other states and number about 40 lakh.

The research study says since these tribes are inhabitants of the country since the Stone Age, their genetic affinity to existing populations show the authenticity of the Ramayana. Researchers said these tribal groups form a closed cluster with Dravidian groups, known as inhabitants of South India. 
(from Deccan Chronicle | Amar tejaswi | June 18, 2015, 02.06 am IST) link is--- http://www.deccanchronicle.com/150618/nation-current-affairs/article/ramayana-real-say-experts

रामायण के साक्ष्य

अब मैं उन वर्तमान साक्ष्यों के बारे में बता रहा हूँ जो रामायणकाल की सच्चाई उजागर कर रहे हैं। 

-हनुमान गढ़ी मंदिर में राम भक्त हनुमान ने प्रभु श्रीराम का उस वक्त तक इंतज़ार किया था जब उनका अयोध्या से निर्वासन हो गया था।

-ये जानकी मंदिर है जो कि जनकपुर नेपाल में स्थित है, जानकी माता सीता का ही एक और नाम है।

 









-वनवास काल में प्रभु श्रीराम माता सीता और लक्ष्मण ने पंचवटी में एक झोपड़ी बनायी थी जो कि वर्तमान समय मे नासिक के नजदीक है।

 









-लेपक्षी आंध्र-प्रदेश में स्थित वह स्थान है जहां सीता माता की रक्षा करते समय जटायु रावण के हमले से घायल होकर गिरे थे।

 









-हनुमान जी का ये विशालकाय पदचिह्न श्रीलंका में है।

 












-रामसेतु तैरते पत्थरों का सेतु है जो वानर सेना द्वारा लंका जाने के लिए बनाया गया था। नासा द्वारा समुद्र में खोजा गया रामसेतु ऐसे लोगों की मान्यता को और पुष्ट करता है। रामसेतु जिसे अंग्रेजी में एडम्स ब्रिज भी कहा जाता है, भारत (तमिलनाडु) के दक्षिण पूर्वी तट के किनारे रामेश्वरम द्वीप तथा श्रीलंका के उत्तर पश्चिमी तट पर मन्नार द्वीप के मध्य चूना पत्थर से बनी एक श्रृंखला है। भौगोलिक प्रमाणों से पता चलता है कि किसी समय यह सेतु भारत तथा श्रीलंका को भू-मार्ग से आपस में जोड़ता था। यह पुल करीब 18 मील (30 किलोमीटर) लंबा है। ऐसा माना जाता है कि 15वीं शताब्दी तक पैदल पार करने योग्य था। एक चक्रवात के कारण यह पुल अपने पूर्व स्वरूप में नहीं रहा। रामसेतु एक बार फिर तब सुर्खियों में आया था, जब नासा के उपग्रह द्वारा लिए गए चित्र मीडिया में सुर्खियां बने थे।

-रावण ने शिवजी की घोर तपस्या कर उनसे वरदान पा लिया था, इसलिए रावण ने अपना एक मंदिर बनवाया जो कि पहला ऐसा मंदिर था जो तपस्या करने वाले के लिए बनाया गया था। यह मदिर कोनेस्वरम नाम से जाना जाता है जो श्रीलंका में है।

 




-जब रावण माता सीता को लंका लाया था तब सर्वप्रथम रावण माता को कोतुवा ले गया था जो कि अब सीता कोतुवा नाम से श्रीलंका का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है।

 







-कोतुवा से वह माता को अशोक वाटिका ले गया था, जिसका यथार्थ में नाम अशोकवनम है जो कि श्रीलंका में है।

 









-यह तस्वीर उसानगोड़ा श्रीलंका की है जहां ज़मीन का कुछ हिस्सा काला है जो उस समय हुआ जब हनुमान जी ने लंका में आग लगायी थी, ये भी कहा जाता है कि इस स्थान पर ही रावण का पुष्पक विमान उतरता था।
 







-कहा जाता है कि लंकापति रावण के महल, जिसमें अपनी पटरानी मंदोदरि के साथ निवास करता था, के अब भी अवशेष मौजूद हैं। यह वही महल है, जिसे पवनपुत्र हनुमान ने लंका के साथ जला दिया था। लंका दहन को रावण के विरुद्ध राम की पहली बड़ी रणनीतिक जीत माना जा सकता है क्योंकि महाबली हनुमान के इस कौशल से वहां के सभी निवासी भयभीत होकर कहने लगे कि जब सेवक इतना शक्तिशाली है तो स्वामी कितना ताकतवर होगा। ...और जिस राजा की प्रजा भयभीत हो जाए तो वह आधी लड़ाई तो यूं ही हार जाता है। 

-सुग्रीव अपने भाई बाली से डरकर जिस कंदरा में रहता था, उसे सुग्रीव गुफा के नाम से जाना जाता है। यह ऋष्यमूक पर्वत पर स्थित थी। ऐसी मान्यता है कि दक्षिण भारत में प्राचीन विजयनगर साम्राज्य के विरुपाक्ष मंदिर से कुछ ही दूर पर स्थित एक पर्वत को ऋष्यमूक कहा जाता था और यही रामायण काल का ऋष्यमूक है। मंदिर के निकट सूर्य और सुग्रीव आदि की मूर्तियां स्थापित हैं। रामायण की एक कहानी के अनुसार वानरराज बाली ने दुंदुभि नामक राक्षस को मारकर उसका शरीर एक योजन दूर फेंक दिया था। हवा में उड़ते हुए दुंदुभि के रक्त की कुछ बूंदें मातंग ऋषि के आश्रम में गिर गईं। ऋषि ने अपने तपोबल से जान लिया कि यह करतूत किसकी है। क्रुद्ध ऋषि ने बाली को शाप दिया कि यदि वह कभी भी ऋष्यमूक पर्वत के एक योजन क्षेत्र में आएगा तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। यह बात उसके छोटे भाई सुग्रीव को ज्ञात थी और इसी कारण से जब बाली ने उसे प्रताड़ित कर अपने राज्य से निष्कासित किया तो वह इसी पर्वत पर एक कंदरा में अपने मंत्रियों समेत रहने लगा। यहीं उसकी राम और लक्ष्मण से भेंट हुई और बाद में राम ने बाली का वध किया और सुग्रीव को किष्किंधा का राज्य मिला।

जय श्री राम


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