शुक्रवार, 28 अगस्त 2015

नासिक में शुरू हुआ कुम्भ मेला 2015 / KUMBH FAIR 2015 IN NASIK



-शीतांशु कुमार सहाय
ठीक 13वें साल गुरु के सिंह राशि में प्रवेश होते ही नासिक में बहुप्रतीक्षित ‘महाकुंभ’ मेले की शुरुआत हो गयी। केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने भारी सुरक्षा के बीच शुक्रवार 28 अगस्त 2015 को मंत्रोच्चार और परंपरागत ध्वजारोहण के साथ मेले का उद्घाटन किया.गौरतलभ है की नासिक का सिंहस्थ महाकुंभ देश के चारों सबसे कुंभ स्थलों में सबसे छोटा है। इस बार नासिक कुंभ में करीब 1 करोड़ लोगों के स्नान की उम्मीद लगायी जा रही है।
भारत में कुंभ मेला चार स्थानों पर आयोजित किया जाता है – इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। हरिद्वार (उत्तराखंड) में,जहाँ पवित्र गंगा शक्तिशाली हिमालय से मैदानों में प्रवेश करती है,इलाहाबाद में गंगा,यमुना और सरस्वती के संगम स्थल पर, ऐतिहासिक उज्जैन नगरी में पवित्र क्षिप्रा नदी के तट और महाराष्ट्र के विख्यात नासिक नगर में गोदावरी नदी के तट पर हर 12 वर्ष बाद मनाया जाता है।
खगोलीय दृष्टिकोण से हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन में सदियों से हर तीसरे वर्ष अर्ध या पूर्ण कुम्भ का आयोजन किया जाता है। यह मूल रूप में बृहस्पति और सूर्य ग्रह की स्थिति के आधार पर तय होता है। नासिक महाकुम्भ जब गुरु सिंह राशि पर स्थित हो तथा सूर्य एवं चंद्र कर्क राशि पर हों,तब नासिक में कुम्भ मेला आयोजित किया जाता है। यह स्थिति हर 12 वर्ष बाद आती है।
नासिक महाकुम्भ 2015 में अखाड़ों का ध्वजारोहण साधुग्राम में 19 अगस्त को और प्रथम शाही स्नान 29 अगस्त 2015 को आयोजित किया जाएगा। दूसरा शाही स्नान 13 सितंबर और अंतिम शाही स्नान 18 सितंबर 2015 को आयोजित किया जायेगा.इस तरह पूरे ढाई महीने भक्त ‘कुम्भ’ मेले में आस्था की डुबकी लगाते रहेंगे।

महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम ने कुंभ के आयोजन पर 3,000 विशेष बसें मुहैया कराई हैं। जबकि रेलवे ने हर 20 मिनट में ट्रेनों की व्यवस्था की है। विशेष रूप से 36 रेलें चलायी जा रहीं हैं।
338 एकड़ के क्षेत्रफल में साधुओं के ठहरने का प्रबंध करने के लिए ‘साधुग्राम’ बनवाया गया है.’साधू ग्राम’ में तंबुओं शौचालय,पेयजल,और बिजली की बेहतरीन व्यवस्था की गई है।
मोदी सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट SBM(स्वच्छ भारत मिशन) का प्रभाव नासिक कुम्भ आयोजन पर साफ़ तौर पर देखा जा सकता है.कुंभ में प्लास्टिक पर पूर्णतः प्रतिबंधित होगा इसलिए लोगों के लिए ‘थैलों’ की व्यवस्था की गयी है।
हिंदू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार देवताओं और राक्षसों के बीच पौराणिक काल में हुए अमृत मन्थन के दौरान अन्य दिव्य पदार्थो के समान ही अमृत से भरा एक ‘कुंभ’ भी निकला। असुर अमृतपान कर अमर हो जाना चाहते थे। दैत्यो ने अमृत कलश को देवताओं से छीनने की कोशिश की तो देवराज इन्द्र का पुत्र ‘जयन्त’ इस अमृत कलश को लेकर भाग निकला।
राक्षसों ने कलश प्राप्त करने के लिए जयंत का पूरे ब्रह्माण्ड भर में पीछा किया.जयन्त तीनो लोकों में भागता रहा। इस भागदौड के दौरान आकाश से अमृत गिरा वहाँ प्रत्येक 12 वर्ष बाद कुम्भ पर्व मनाया जाता है।
नासिक में कुंभ मेला बड़ी उत्सुकता, से मनाया जाता है। बड़े पैमाने पर तीर्थयात्री अपने पापों और त्राश को दूर करने के लिए पवित्र नदी गोदावरी में स्नान करते है। रामकुंड और कुशावर्त इन दो पवित्र स्नान घाटो में आस्था और विश्वास के साथ स्नान करते है।
सरकार ने इस आयोजन हेतु 2378 करोड़ रुपए का बजट रखा है। पूरा नासिक को 348 सीसीटीवी कैमरों की जद में रखा गया है। चप्पे-चप्पे पर नजर रखने के लिए विशेष तौर पर पुलिस कंट्रोल रूम तैयार किया गया है।
-15000 पुलिसकर्मी संभालेंगे आस्था का सैलाब
नासिक और त्र्यंबकेश्वर में कुंभ का पहला शाही स्नान शनिवार को है। इस दौरान सुरक्षा चाक-चौबंद रखने के लिए कड़े इंतजाम किए गए हैं। नासिक पुलिस ने हरिद्वार के पुलिसकर्मियों से भी मेले के दौरान इंतजाम दुरुस्त रखने के टिप्स लिए हैं। नासिक पुलिस कमिश्नर एस जगन्नाथन ने बताया कि कुंभ के दौरान नासिर में सुरक्षा के लिए 15000 पुलिसकर्मी, स्पेशल फोर्स और एटीएस के 10 स्कॉवड, बम निरोधक दस्ते की 12 टीमें, 350 सीसीटीवी कैमरे निगरानी करेंगे। मुख्य घाट के रास्तों में लोगों को सूचना देने के लिए 1700-1800 लाउडस्पीकर सिस्टम भी लगाए गए हैं। नासिक और त्र्यंबकेश्वर में जगह-जगह बैरिकेड्स लगाए गए हैं। पुलिसकर्मी जरूरत पड़ने पर लोगों की सघनता से जांच भी कर रहे हैं। श्रद्धालुओं को भी इससे ऐतराज नहीं है। प्रशासन को लग रहा है कि पहले शाही स्नान के दिन 70 लाख से एक करोड़ लोग नासिक और त्र्यंबक में डुबकी लगाने जुट सकते हैं, इसलिए वह सुरक्षा के हर मुमकिन इंतजाम करने में जुटा है।

Every 12th entry of Jupiter into Taurus, i.e. once every 144 years, the Purna Kumbh at Prayag is called Maha Kumbh. The year 2013 happens to be one such Maha Kumbh at Prayag after 144 years.

-नागा साधु



निर्वस्त्र होकर चलते, शरीर पर भभूत और रेत लपेटे, नाचते-गाते, उछलते-कूदते, डमरू-ढफली बजाते नागा साधुओं का जीवन हमेशा से ही रहस्यमयी रहा है। वह कहां से आते हैं और कहां गायब हो जाते हैं इस बारे में किसी को ज्यादा जानकारी नहीं होती। जूना अखाड़े के प्रवक्ता महंत हरी गिरि के मुताबिक अखाड़ों में आए यह नागा सन्यासी इलाहाबाद, काशी, उज्जैन, हिमालय की कंदराओं और हरिद्वार से आए हैं। इन में से बहुत से संन्यासी वस्त्र धारण कर और कुछ निर्वस्त्र भी गुप्त स्थान पर रहकर तपस्या करते हैं और फिर 6 वर्ष बाद यानि अगले अर्धकुंभ के मौके पर नासिक आएंगे। आमतौर पर यह नागा सन्यासी अपनी पहचान छुपा कर रखते हैं। कई नागा संन्यासी उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और गुजरात में जूनागढ़ की गुफाओं या पहाडिय़ों से आये हैं। नागा संन्यासी किसी एक गुफा में कुछ साल रहते है और फिर किसी दूसरी गुफा में चले जाते हैं। इस कारण इनकी सटीक स्थिति का पता लगा पाना मुश्किल होता है। एक से दूसरी और दूसरी से तीसरी इसी तरह गुफाओं को बदलते और भोले बाबा की भक्ति में डूबे ये नागा जड़ी-बूटी और कंदमूल के सहारे पूरा जीवन बिता देता हैं। कई नागा जंगलों में घूमते-घूमते सालों काट लेते हैं और अगले कुंभ या अर्ध कुंभ में नजर आते हैं। नागा साधुओं को रात और दिन मिलाकर केवल एक ही समय भोजन करना होता है। वो भोजन भी भिक्षा मांग कर लिया गया होता है। एक नागा साधु को अधिक से अधिक सात घरों से भिक्षा लेने का अधिकार है। अगर सातों घरों से कोई भिक्षा ना मिले, तो उसे भूखा रहना पड़ता है। जो खाना मिले, उसमें पसंद-नापसंद को नजर अंदाज करके प्रेमपूर्वक ग्रहण करना होता है। नागा साधु सोने के लिए पलंग, खाट या अन्य किसी साधन का उपयोग नहीं कर सकते। यहां तक कि नागा साधुओं को गादी पर सोने की भी मनाही होती है। नागा साधु केवल जमीन पर ही सोते हैं। यह बहुत ही कठोर नियम है, जिसका पालन हर नागा साधु को करना पड़ता है।

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