सोमवार, 24 अप्रैल 2017

चाहत की भूल

- शीतांशु कुमार सहाय   

ज़िन्दगी में कई भूल किये हैं मगर, 

चाहत की भूल बड़ी भूल थी;

न शिकवा करूँगा न गिला कोई बाकी, 

अफसोस पर ज़िन्दगीभर करूँगा।


चाहा था तुमको हद से ज़्यादा,

निभाया न तुने कोई अपना वायदा;

फिर भी मैं हरदम हँसता रहा हूँ, 

बाकी के दिन अब रोया करूँगा।


ज़ख़्म भरे दिल में थोड़ी जगह थी, 

जिसे ज़ख़्म से भर डाला तुने;

दिल पर जो तुने से ज़ख़्म दिये हैं, 

सहला के उसको ही ज़िन्दा रहूँगा।


मोहब्बत  में कहते हैं सबकुछ मिलेगा, 

मगर सच कहूँ तो हर कुछ लुटेगा;

कंगाल दिल ही साथ है रहता, 

जो कहता है सीने में धड़का करूँगा।


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