गुरुवार, 28 सितंबर 2017

नवरात्र : माँ दुर्गा के नौ रूप : अष्टम् महागौरी / Navaratra : Nine Forms of Maa Durga : Ashtam Mahagauri

-शीतांशु कुमार सहाय
नवरात्र के अष्टम् दिवस को आदिशक्ति दुर्गा के अष्टम् स्वरूप ‘महागौरी’ की आराधना की जाती है। एक बार पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में आदिशक्ति प्रकट हुईं। पार्वती ने शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की। हजारों वर्षों की तपस्या के कारण पार्वती का शरीर पूर्णतः काला हो गया था। उन की तपस्या सफल हुई और शिव ने पत्नी के रूप में उन्हें स्वीकार कर लिया। भगवान शिव ने पवित्र गङ्गाजल से पार्वती के शरीर को धोया तो वह निर्मल होकर अत्यन्त गौर (गोरा) हो गया। अत्यन्त कान्तियुक्त तथा सर्वाधिक गौरवर्णा माँ का यह स्वरूप ‘महागौरी’ कहलाया। इन्हें अष्टम् दुर्गा भी कहा जाता है।
माँ महागौरी की गौरता (गोरापन) की उपमा शङ्ख, चन्द्र और कुन्द के पुष्प से की गयी है। इन के समस्त आभूषण भी श्वेत हैं और वस्त्र भी श्वेत ही धारण करती हैं। अतः इन्हंे ‘श्वेताम्बरा’ भी कहा जाता है। 
अष्टम् दुर्गा महागौरी वृषभ (साँढ़) पर सवार रहती हैं। माता की चार भुजाएँ हैं। ऊपरी दाहिनी भुजा को अभयमुद्रा में रखती हैं और भक्तों को भयमुक्त बनाती हैं। निचली दायीं भुजा में त्रिशूल धारण करती हैं। माँ की बायीं तरफ की ऊपरी भुजा में डमरू और निचली भुजा वरमुद्रा में है। चतुर्भुजा श्वेताम्बरा माता महागौरी का विग्रह अत्यन्त सौम्य और शान्त है। 
महागौरी के रूप में माँ ने कठिन परिश्रम कर शिव को प्राप्त किया। अतः माँ महागौरी परिश्रम कर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं। परिश्रम के दौरान कष्ट होते ही हैं। इन कष्टों को माँ पार्वती की तरह सहन करने से महागौरी की तरह लक्ष्य की प्राप्ति होती है। लक्ष्य प्राप्त हो जाने पर समस्त कष्ट प्रेरणास्वरूप प्रतीत होने लगते हैं और तब सुख की प्राप्ति होती है। लक्ष्य प्राप्त करने के लिए महागौरी देवी की उपासना अवश्य करनी चाहिये। 
देवी महागौरी की उपासना करने से समस्त कार्य सिद्ध होते हैं। भौतिक और आध्यात्मिक जीवन सुखमय व्यतीत होता है। असम्भव को भी सम्भव करनेवाला माता दुर्गा का अष्टम् स्वरूप बहुविध कल्याणकारी है। माता पूर्वजन्म के पापों को नष्ट कर भविष्य को मोक्षगामी बना देती हैं। 
दुःख और दरिद्रता को समाप्त कर अक्षय पुण्य का अधिकार प्रदान करनेवाली माता महागौरी के चरणों में हाथ जोड़कर प्रणाम करें-
श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।

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